यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

यादों में आती रहो

मेरे शब्दों को तुम गुनगुनाती रहो। 
सुरों से  मधुर राग अलापती रहो।

मेरी ये धड़कन तुम्हारा ऐहसास है,
तुम यूँ धड़कन बन मुस्कुराती रहो। 

प्यार की धड़कनों में कभी दर्द हो।
तुम धड़कन पे नया गीत गाती रहो। 
 
तन्हाइयों  में गर भूल भी जाऊं तो,
तुम हमेशा मेरी यादों में आती रहो।

कुछ तो थी बात गुजरे हुए जमाने में,
हमको जमाने की याद दिलाती रहो।

मैं चलता  रहूँ हमेशा जीवन पथ पर,
तुम साया  बनकर  पीछे आती रहो।

रविवार, 11 दिसंबर 2022

आग हैं छू नहीं सकते

आग हैं छू नहीं सकते,
 मगर प्यार इसके ताप से।
  कितने काम की है आग,
   जरा पूछिएअपनेआप से।

हर जात की लकड़ियां,
 भष्म हो जातीआग में।
  जात का अभिमान सारा,
   मिल जाता  है खाक में।

आग ही है सब कुछ यहां,
 इसी  पर  तो  हैं  निर्भर।
  छू नहीं सकते इसे हम,
   ये  है  मेहरवां  हम  पर। 

जब  कपकपाती  ठंड हो,
 तब तन अकड़ता ठंड से।
  बर्फ   सी  जमती  परतें,
   अकड़न भरी  घमंड से।

बैठ  कर    पास इसके,
 पिघलने लगती है  परत।
  जान  लेते  हैं अर्थ  हम,
   मिटाकर  दिल से नफरत।

जलकर   राख   जब  हो  ,
 बभूति   माथे  लगा  लेते।
  आस्थावान  होकर   हम, 
   डुबकी सागर में लगा लेते।

जब अछूत के पास जाओ,
 ताप से नफरत मिटा लेना।
  दर्प  हो  जाये राख तो तुम ,
   बभूति को माथे लगा लेना।









शनिवार, 10 दिसंबर 2022

हालात.....

महंगी हो गई  हर चीज, 
 बाजार जा के क्या करूँ।
  पल में नहीं है एक धेला,
   मैं किसको  क्या खरीदूँ।

पास जितना भी प्यार था,
 सब कब का लुट चुका।
  रहने को जो भी ये घर था,
   वो अदद भी बिक चुका।

बस  बेघर हो गया हूँ अब,
 इधर उधर मैं भटक रहा। 
  थर थरा रहे हैं अब कदम,
   चलने में  दम निकल रहा।

अब नजर भी कम हो गई,
  कैसे किसी को पहचान लूँ।
  जाकर किसी दुकानदार से,
   अब थोड़ा सा उधार मांग लूँ।

मशाल

निकल पड़े लेकर मशालें,
हम गांव घर  शहर शहर।
ये कर दिया ऐलान हमने,
चुप्पी नहीं अब जुल्म पर।

यह  जिस्म है फौलाद की,  
शोले  हमारी  मुट्ठियों  में।
जिन्दगी  गुजरी   बहुत  है,
जलती हुई इन भट्टियों में। 

बांधकर सर  कफन अब,
युग बदलने  चल  पड़े हैं।
कारवां के साथ मिल कर, 
हम हर कदमआगे बढ़े हैं। 

हम आग  हैं    छूना  नहीं,
छू  लिया  जल   जाओगे,
वक्त को   समझो नहीं तो,
फिर  बहुत  पछताओगे।

अब तोड़  देंगे  बेड़ियाँ हम, 
आत्म  निर्भर  खुद  बनेंगे।
शिक्षा का अवलम्ब लेकर,
अपना  दीपक  खुद  बनेंगे।

याद बहुत आती है

गुजारे हैं  जो  लम्हें  तुम्हारे साथ,
उन लम्हों की बहुत यादआती है।
वक्त का  कुछ  पता  नहीं चलता,
कब सुबह कब रात ढ़ल जाती है।

लिखता हूँ खत आज भी तुमको,
पर खत काफी लम्बे हो जाते हैं।
मन मोहनी घटाऐं  जब घिरती  हैं,
बरसती नैनों से खत भीग जाते हैं।

तमाम तुम्हारे  भीगे हुए खत यहां,
ये मेरी सारी कविताऐं हो जाती हैं।
प्रकाशित हो जायेगी फिर किताब,
उन लम्हों की बहुत याद आती  है।

शब्दों के साथ खेलते दिन गुजारना,
अक्सरआदत सी होगईअब हमारी।
इन  शब्दों को जब भी तराशता हूँ ,
हरेक शब्दों में देखता सूरत तुम्हारी।

अब वक्त का पता कुछ नहीं चलता,
कब  सुबह कब  रात ढ़ल जाती है।
गुजारे हैं जो लम्हें हम दोनों ने साथ, 
उन लम्हों  की बहुत  याद आती है।







मंगलवार, 29 नवंबर 2022

बचपन

मैंने भी देखा है बचपन,
 गाँव की पगडंडियों में।
  नंगे पैरों  पैदल  चलते-
   लाते कांफल कंडियों में। 

लकड़ी की तख्ती लिए,
 वहां स्कूल को जाते हुए।
  जंगल से लकड़ी बटोरे,
   गाय बकरी चराते हुए। 

गुल्ली डंडा खेल खेल में,
 साथियों से लड़  जाना।
  बातों बातों में ही अपने,
   साथियों से भिड़ जाना।

मैंने भी देखा है बचपन,
 गाँव का  प्यारा बचपन।
  सावन बरसता रोज ही,
   वो बेचारा प्यासा बचपन।

ये बंदिशें.......

हमें बांधकर रखा जिसने,
 उसको ही हम   पूज रहे। 
  जीवन  भर बंदिश  में ही,
   हम हर  वक्त   जूझ  रहे।

हमेंअबला कहके जिसने,
 हाथों में  बंधन डाल दिए।
  मर्यादा की चिता लगाकर,
   सपने  हमारे  जला  दिए।

भाग्य  व  भगवान भरोसे,
 लिखी ऐसी जीवन गाथा।
  सीता  और  द्रौपदी जैसी ,
   यह  नारी की रही व्यथा।

जागें अब  हम तोड़ें बंधन,
 शिक्षित हो संविधान पढ़ें। 
  समझेंअपनेअधिकारों को,
   आज विज्ञान कीओर बढ़ें।

अब त्यागें पुरानी परम्परा,
 लड़का लड़की में न भेदकरें।
  रूढ़िवाद के चक्कर में हम,
   कुंडलियों का न उल्लेख करे।













सोमवार, 28 नवंबर 2022

महात्मा फुले परिनिर्वाण

एक राह हमको सत्य की,
तुम  दिखाकर  चले गये।
माली से बन कर महात्मा।
ज्ञान  ज्योति  जला  गये,

नमन  हो  ज्योतिबा  फुले,
तुम्हें कोटि कोटि नमन हो।
भारत के महान राष्ट्र  पिता,
आपका यह अमर चमन हो।

कुरीतियों से जब ये समाज,
विकृत हो सिसक रहा था।
आदमी आदमी से यहाँ पर,
अछूत जान विदक रहा था।

बाल विवाह सती प्रथा से,
नारी  शोषण  हो  रहा था।
छुआ-छूत महा रोग से तब,
वो वंचित पीड़ित हो रहा था।

सत्य शोधक समाज बनाकर,
सबको आपस  में जोड़ा गये।
पत्नी  सावित्री बाई  के  संग,

समाज सुधारक लेखक तुम, 
महान दार्शनिक, शिक्षक हे।
आपके ज्ञान विज्ञान से अब,
भारत का बच्चा बच्चा जागे।




रविवार, 27 नवंबर 2022

मना लिया करो

लग रही है गर आग तो बुझा दिया करो।
तब हाल अपने दिल का सुना दिया करो।

चुप रहने से कभी हालात नहीं बदलते,
रूठे हैंअपने तो उनको मना लिया करो।

दूर रहने से गलत फहमियां हो जाती हैं,
वक्त पर अपनों से बात कर लिया करो।

वो भी इतने बुरे नहीं थे जमाने में कभी,
उन्हें भी जमाने की याद दिला दिया करो।

देख कर दुनिया हमें सपना सा लगता है।
कभी सपनों में अपनों के खो जाया करो।

 



 







शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

संविधान दिवस

ऐतिहसिक छब्बीस नवम्बर, 
है संविधान  दिवस  हमारा। 
इसकी सुचिता संरक्षण को,
यह पावन संकल्प हमारा ।

नफ़रत न हो कभी दिलों में,
आपस में रहे ये भाई-चारा।
मानवता हो हृदय में सबके, 
कहता है  संविधान हमारा। 

कैसे देश चले अपना यह,
कैसी व्यवस्था हो इसकी,
सबको हक मिले यहांपर,
जैसी योग्यता हो जिसकी।

हर हाथ को काम मिले व,
उचित काम के  दाम मिले,
घर घर ढेरों खुशियों फैले,
डाली -डाली  फूल  खिले।

क्या हैं मूलअधिकार हमारे,
संविधान में है सब अंकित।
कर्तव्य हमारे  निर्धारित  हैं, 
कोई न्याय से रहे न वंचित।

समता समानता बन्धुत्व पर,
आधारित संविधान हमारा।
राजनीतिक सामाजिक और-
आर्थिक न्याय से राष्ट्र संवारा।

संविधान के जनक आप हैं,
डाक्टर भीमराव अम्बेडकर।
कोटि कोटि नमन  करते  हैं,
चरणों में हम शीश झुकाकर। 









शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

तस्वीर

आ अधरों से पिला दूँ जाम तुझको,
सब्र कर कुछ देर को मुरली हटा ले।
देखके बंसी मेरे सीने में आग जलती,
तेरे प्यार में पागल हूँ ये प्यास मिटादे।

कृष्ण तुम नटखट तुम्हारा प्रेम छल है,
मुझसे अधिक बांसुरी में प्रेम प्रबल है।
मैं तुमको पूर्ण सर्वस्व अपना दे चुकी ,
और तेरे बिना बेचैन मेरा हरेक पल है।

बाँसुरी को छोड़कर मुझेआगोश में भर, 
जाम अधरों से पिला मुझे मदहोश कर।
मैं तुझमें समा जाऊं तू मुझमें समा जा,
देखती रहूँ  सदा तेरी तस्वीर  मुरलीधर।


रविवार, 23 अक्तूबर 2022

नई रोशनी


इक दीया रोशनी को जलाऐंगे हम।
रोशनी का ये त्योहार मनाऐंगे हम।
दिलों में है हमारे जो नफरत भरी।
उनको दिलों से सब मिटायेंगे हम।

भाग्य का खेल यह बहुत हो गया।
आदमी ही भगवान खुद हो गया।
धर्म के नाम पर  पाखंड रच कर,
ठगने का बहाना अद्भुत  हो गया।

अप्प दीपो भवः बचन बुद्ध के दिए।
पंचशील से शुद्ध आचरण भी दिए।
सम्यक की राह पे चलें जन गण मन,
समता बन्धुत्व के भाव बुद्ध ने दिए।

बाईस प्रतिज्ञाओं से वो रोशनी मिले।
भीम के लालों को वो मांशेरनी मिले।
प्रबुद्ध भारत के नव सृजन के लिए, 
बाईस प्रतिज्ञाओं की वो रोशनी मिले।


बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

दीपोत्सव

आओ रोशन करें हम शहर अपने।
मिलकर सजा लें आज घर अपने ।
टूटकर बिखर गये सपने अंधेरों में,
आज सपनों से सजा लेंशहर अपने।

कभी माटी के दीये जलाये हमने भी।
अँधेरों में भटकते रहे  सब अपने भी।
आंधियों में रुकने का दम कहाँ इनमें,
रोशनी हो ये संकल्प लिया हमने भी।

यहाँ देखिए आस्थाओं का समन्दर है।
कोई  बाहर बैठा है तो कोई अन्दर है।
रोशनी चाहता हर कोई इस दुनियां में,
मगर रोशनी एक है ये घरों में अंतर है।

जिन्हें मयस्सर नहीं रोशनीअब तलक। 
अँधेरों में भटकते रहेंगे ये कब तलक।
प्रेम की रोशनी से ही होते उजले मन,
रोशन हो जाय धरा से आसमां तलक।

दीपोत्सव राष्ट्र का उत्सव मनाऐं हम।
बिना भेदभाव के हर घर सजाऐं हम।
नफ़रतों ने खाक में मिला दिया हमको,
प्रबुद्ध भारत होअब बिगुल बजाऐं हम।









मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

अंधेरा पसरा है


यहांअंधेरा दूर तलक पसरा है अभी।
भोर का तारा निकल रहाअभीअभी।

झरोखों से झांक कर देखो मटकों  में,
छुआछूत कितना भरा हुआ है अभी।

जंग ए आजादी लड़ी मिलकर सबने,
कुछआजादऔर कुछ गुलाम हैंअभी।

मिट्टी से यह मटका बनाया  कुम्हार ने,
मटका सछूत है कुम्हारअछूत है अभी।

बड़ी हँसी आती है उनके ज्ञान पर हमें,
जो कहें मुँह से पैदा हुए थे इन्सान कभी।

अपने मूंह मिट्ठू मत बना करो अब यहां,
जरा दूसरों की भी तो सुन लीजिए कभी।

अंधेरों में ढूढ़ते हैं भोजन उल्लू की तरह,
वो कहते हैं दिन मेंअंधेरा पसरा हैअभी।







गुरुवार, 22 सितंबर 2022

हर नजर उनके नाम

ये सांस वक्त से अनजान होती है।
पता नहीं कब सुबह शाम होती हैं।

मैं मुहब्बत दिल से करता हूँ उनसे,
तभी हर नजर उनके नाम होती है।

ख्यालआता है जब भी उनका हमें,
नियत हमारी बड़ी बदनाम होती है।

उन्होंने भुला दिया तो क्या हो गया,
हर कविता तो उनके नाम होती है।

उनके बिछुड़ने का गम भी इतना है,
हर सड़क यहां की सुनसान होती है।

सोमवार, 15 अगस्त 2022

स्वतंत्रता दिवस

आज अपने राष्ट्र की,आओ उतारें आरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर,तुमको है मां पुकारती।

चोट खाई हैं बहुत ये,दिल पे सारे जख्म हैं।गुस्ताखियां दुश्मन की,मन में सारे दफ्न हैं।
अब नये युग के लिए बनना तुम्हें है सारथी।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको  है मां पुकारती।

आज अपने  राष्ट्र की आओ उतारेंआरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको है माँ पुकारती ।

जाति धर्मों की दीवारें हर तरफ हैं ये खड़ी।
गंदगी छुआछूत की भी है यहां पर ही पड़ी।
तोड़ने अवरोध होंगे आशीष दे मां भारती।
अब नये युग के लिए बनना तुम्हें है सारथी।

आज अपने  राष्ट्र की आओ उतारेंआरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको है माँ पुकारती ।

देश भक्तों की हमेशा याद हों  कुर्बानियां।
इतिहास के पन्नों में हों,वोअमर कहानियां।
नफ़रती परिवेश में है स्वतन्त्रता कराहती।
अब नये युग के लिए बनना तुम्हें है सारथी।

आज अपने  राष्ट्र की आओ उतारेंआरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको है माँ पुकारती ।


स्वतंत्र भारत-आलेख

हम आज स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं।यदि
हम भारत के अतीत में जाकर झांकें तो जानेंगे कि बाहरी आक्रमणकारियों ने समय-समय पर देश को लूटा,हमें गुलाम बनाया।
दो सौ वर्षों तक भारत में ब्रिटिश हुकूमत रही।सन् 1857 से स्वतन्त्रता की  चिगारी सुलगने लगी थी फिर धीरे धीरे आजादी की आग भड़कती चली गई, भारी बलिदानों के बाद पन्द्रह अगस्त सन् 1947 को भारत आजाद हुआ। हम आज स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं।स्वतन्त्रता आन्दोलन मुख्य रूप से कांग्रेस  के नेतृत्व में आगे बढ़ा।महात्मा गांधी ,जवाहरलाल नेहरू, बाणगंगा तिलक सरदार पटेल गोपालकृष्णगोखले, चन्द्रशेखर आजाद सुभाषचंद्र बोस भगतसिंह जैसे अनेकों वीरों के नेतृत्व में आन्दोलन आगे बढ़ा,स्वतंत्रता आंदोलन में केवल नरम दल के ही नही बल्कि गरम दल के रूप में भी कई संगठन आगे आए।1942 में करो या मरो का आह्वान कर आजादी की अन्तिम जंग लड़ी गई। 15अगस्त 1947को हमारा देश
आजाद हो गया।मगर दुर्भाग्य कि चौदह अगस्त को भारत का विभाजन हो गया"भारत और पाकिस्तान।"
आज देश में जो सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक परिदृश्य उभर कर आ रहा है वह बेहद समस्याग्रस्त है।चुनाव प्रणाली दोषपूर्ण है। चुनाव को जातीय व धार्मिक आयने से देखा जाता है।भाई भतीजाबाद परिवारवाद की तूती बोलती है।चुनाव पर बेहिसाब खर्च किया जाता है।आज की सरकार हो या पूर्ववर्ती लगभग सभी की नियत एक जैसी रही है।आज हम आजादी के पचहत्तर वर्ष पूर्ण होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं परन्तु जनता की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाए हैं।समाज में स्वतन्तता समानता व बन्धुत्व कायम नहीं कर सके हैं। समाज की गैर बराबरी को देखकर दुख होता है कि समाज की ये गैरबराबरी जो हमारी गुलामी की जड़ रही है हम आज भी उसे नहीं मिटा पाये। अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों  की सामाजिक ससमस्या अअस्पृश्यता अभी तक नही मिट पाई है यह रााष्ट्र के लिए कलंक है, यदि ध्यान दिया जाता तो उनके शोषण की  घटनाऐं नहीं घद रही होती । जैसे पहले राजतंत्र पर आधारित छोटी छोटी रियासतें आपस में लड़ते रहते थे यहीी आपसी  फूट वर्षों तक  हमें अंग्रेजों के गुलाम बनाये रही। सही मायने में देखें तो आजादी का जो सपना उन क्रांति वीरों ने देखा वह सपना मात्र रह गया।जिनको भी चुनकर संसद तक ले गए पूर्वाग्रह के कारण कुछ भी परिवर्तन नहीं कर पाए।बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर जी ने संविधान सौंपते वक्त कहा था "संविधान कितना ही अच्छा क्यों न हो यदि चलाने वाले अच्छे न हों तो अच्छे संविधान का कोई औचित्य नहीं।"
"जय भारत जय संविधान "

रविवार, 14 अगस्त 2022

मृत महोत्सव



येआजादी का अमृत महोत्सव,
या मृत  महोत्सव आजादी का।
करो फैसला जन गण मन तुम,
क्या ये जश्न नहीं बरबादी  का?
हमें ऐसी आजादी नहीं चाहिए,
जहाँ द्रोण जैसा गुरु रहता हो।
ये पानी का मटका छू लेने पर,
किसी इन्द्र की हत्या करता हो।
जहां दलित कह भोजन माता ,
स्कूल में अपमानित होती हो।
घोड़ी पर चढ़कर जाता दुल्हा,
और वो बारात रोकी जाती हो।
मैं नही मानता अमृत महोत्सव,
है मृत महोत्सव आजादी का।
अब खुद फैसला करना होगा,
बहुजन को अपनी बर्बादी का।





 
 

शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

स्वतंत्रता दिवस

आज अपने राष्ट्र की,आओ उतारें आरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर,तुमको है मां पुकारती।

चोट खाई हैं बहुत ये,दिल पे सारे जख्म हैं।
गुस्ताखियां दुश्मन की,मन में सारे दफ्न हैं।
अब नये युग के लिए बनना तुम्हें है सारथी।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको  है मां पुकारती।

आज अपने  राष्ट्र की आओ उतारेंआरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको है माँ पुकारती ।

जाति धर्मों की दीवारें हर तरफ हैं ये खड़ी।
गंदगी छुआछूत की भी है यहां पर ही पड़ी।
तोड़ने अवरोध होंगे आशीष दे मां भारती।
अब नये युग के लिए बनना तुम्हें है सारथी।

आज अपने  राष्ट्र की आओ उतारेंआरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको है माँ पुकारती ।

देश भक्तों की हमेशा याद हों  कुर्बानियां।
इतिहास के पन्नों में हों,वोअमर कहानियां।
नफ़रत भरे आवेग से स्वतन्त्रता कराहती।
अब नये युग के लिए बनना तुम्हें है सारथी।

आज अपने  राष्ट्र की आओ उतारेंआरती।
स्वतंत्रता के पर्व पर तुमको है माँ पुकारती ।


बुधवार, 10 अगस्त 2022

रक्षाबंधन-कविता

राखी का त्योहार आ गया,
आओ कर लें अभिनंदन।
प्रेम प्रतीक भाईबहन का,
ये पर्व हमारा रक्षा बंधन।

जाति-धर्म से ऊपर उठ के,
हों बराबरी के पर्व सभी।
स्वाभिमान के साथ खड़े हों,
जागरुक  नागरिक  सभी।

बड़ा महान है भारत  मेरा,
हर भारतवासी का वंदन।
राखी का त्योहार आ गया,
आओ  कर  लें अभिनंदन। 

अबतो भारत स्वतंत्र हो गया,
दफ्न  हो गये  राजा रानी।
उपनिवेश काल भी नहीं रहा,
अब नहीं किसी की मनमानी।

जनता ही अब राजा हो गई ,
जनता  का ही हो वन्दन।
राखी का त्यौहार आ गया,
आओ कर लें  अभिनंदन ।

सदियों से वो सुनती आई, 
बेचारी केवल अबला  है।
शोषित वंचित भले लाचारी,
परिवार उसी से संभला है।

संविधान से मिला उसे ये,
समानता का स्वर्णिम कंगन।
राखी का त्योहार आ गया,
आओ कर  लें  अभिनंदन।

राखी बांधने आज आई है, 
बहना देखो सबला बनकर।
अब कहती आत्मविश्वास से, 
बांधेंगे राखी हमसब परस्पर।

बहना को कष्ट हुआ अगर,
ये राखी याद दिलाएगी।
मुश्किल में हो भाई गर तो,
वो  बहना  दौड़े आयेगी।

भाई  बहन के हृदय में अब,
हो नव युग नव प्रेम स्पन्दन।
राखी  का त्यौहार आया है,
आओ  कर  लें  अभिनंदन। 





बुधवार, 3 अगस्त 2022

बदलता परिवेश

घर-परिवार गांव करूं बात अपने देश की।
अभिलाषा सभी की है अच्छे परिवेश की।
प्रेम हो सबके दिलों में और हो सहिष्णुता।
स्वतंत्र,खुशहाल रहें हो जीवन में संपूर्णता।

पर वक्त के साथ  सारा परिवेश बदला है।
खान-पान औरआचार- व्यवहार बदला है। 
यहां गांव  बदला खेत खलिहान  बदला है।
बार त्यौहार शादी-ब्याह श्मशान बदला है।

रिश्ते कमजोर रिश्तों में चापलूसी ज्यादा है।
रिश्वतखोर अमन चैन में भाग रहा प्यादा है।
त्यौहार में नफरत है शादी महज व्यापार है।
मां बाप आश्रमों में हैं कागजों में परिवार है।

राजनीति उनकी चली जो हैं बड़े बाहुबली।
इसीलिए पार्टियों में खूब रहती है खलबली।
धर्म जाति नाम पर लड़ते चुनाव लोग अब।
पांच साल में नेतागण  लूटना चाहते हैं सब।

बलिदानों से स्वतन्त्रता मिली हम कृतज्ञ हैं।
सामाजिक परिवेश से हम क्यों अनभिज्ञहैं।
नफ़रती हर दीवार गिरे आज ये उद्देश्य हो।
प्रबुद्ध भारत देश में ये मानवीय परिवेश हो।

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

विजय दिवस-2

छब्बीस जुलाई जय,विजय दिवस पर,
अमर रहेगी गाथा,कारगिल वीरों की।
करते नमन आज, ताज सिर बांध कर,
लिख गये इतिहास,वीर रणधीरों की।

साठ दिन तक लड़े, खड़े हिम खंडों पर,
छाती पर मूंग दले,  बहादुरी वीरों की।
उन्नीससौ निरानब्बे,कैसेभूल जाऐं हम,
कारगिल लड़ाई में ,जीत रणवीरों की।

उग्रवादियों को जब,पाकमें पनाह मिली,
सब घुस पैठी हुए,पाकिस्तानी यारों की।
भारतीय सैनिकों ने,ठिकानोंको ढूंढलिया।
रहती थी फौज जहां,दुश्मन कायरों की। 

चुन -चुन  कर मारे,घर- घर जाके  मारे,
छोड़ी पाकसैनिकों ने,आश हथियारों की।
शहादत  देने वाले,शहीदों को नमन हो
विजय दिवस में हो,उद्घोष जैकारों की।

भारत की आन मान,शान कश्मीर है ये,
नजर है इस पर पाकिस्तानी कायरों की।
भारतीय सैनिकों की,बेमिसाल ताकत ने,
तोड़ दी कमर पूरी , पाक  के गद्दारों की।


शनिवार, 30 जुलाई 2022

विजय दिवस -1


हमको फक्र है,वीर सैनिकों पर अपने।
शहादत  देकर भी पूरे कर गए सपने।
छब्बीस जुलाई इस विजय दिवस पर,
ज्योतिर्मय कर गये वे देश को अपने।

हमारे सैनिकों ने खाये,धोखे दुश्मन से।
और टक्कर दी दुश्मन को हमेशा उसने।
कभी आँच न आने दी अपने वतन पर,
हस्तीमिटाई दुश्मन की कारगिल में उसने।

पड़ोसी देश है पाकिस्तान, मगर दुश्मन ,
शरहदों पर करता है हमेशा विष वमन।
कारगिल में जवानों का जो रुतब देखा,
दुम दवाकर भागा अपने घर वो दुश्मन। 

हम घरों में चैन से हैं पहरेदार हैं जवान।
हाथ पर लेकर तिरंगा करते हमें सावथान।
शरहदों पे नफरत के बीज बो रहा है जो,
हमारा पड़ोसी ही है ,वह दुष्ट पाकिस्तान। 

हाथ में बन्दूक,चले तानकर सीना अपना।
कांप उठे दुश्मन,कारगिल का देख सपना।
देशके लाल जो शहीद हुए कारगिल युद्ध में,
आज उन्हे करें नमन शिर झुकाकर अपना।  



 


शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

धम्म प्रशिक्षण शिविर

राष्ट्रीय बौद्ध महासभा के तत्वावधान में (सम्राट अशोक हालआर के राइस मिल के सामने काशीपुर)आयोजित दस दिवसीय धम्म प्रशिक्षण शिविर आज दिनांक 11मई2022 को मा0आजाद बौद्ध के निर्देशन में बुद्ध वंदना से प्रारम्भ हुआ।विभिन्न प्रान्तों से आये लगभग 150 धम्म  शिविरार्थी प्रतिभाग कर रहे हैं।राष्ट्रीय आचार्य मा0 इ.किशोर बौद्ध जी शिविर के मुख्य प्रशिक्षक हैं। 
दस दिवसीय धम्म शिविर केअनमोल पल,
कर गये जागृत शिविरार्थियों का मनोबल।
प्रातःपांच बजे उठना और व्यायाम करना।
यहां  सीखा सबने बड़ों का सम्मान करना।
मिलकर नाश्ता दोपहर या रात का भोजन।
नैतिकता निर्माण के लिए शुद्ध हैआयोजन। 
कोई गुजरात से तो कोई महाराष्ट्र से आया।
कोई उत्तराखंड से  कोई भोपाल से आया।
भिन्न प्रान्तों व भाषाओं का हैअभिन्न संगम।
जाति विहीन समाज निर्माण पर है ये मंथन।
चन्द्रहास गौतम का अनुपम सम्मोहन मिला।
आचार्य किशोर बौद्ध जी का सम्बोधन मिला।
टूट गये है अज्ञानता के ये कठोर बंधन सब।
दिलों में हो रहा है ये स्नेह भरा स्पन्दन अब।


 





रविवार, 17 जुलाई 2022

बुढ़ापा !( घनाक्षरी)

फूलने लगा है सांस,झूलने लगा है मांस,
लगता है जवानी का, जोश गिर गया है।
पूरे हुए सत्तर साल,थोड़ी कम हुई चाल,
बैठे बैठे खाने का ये मौक़ा आ ही गया है।

आ गया है वृद्धापन, हुआ कमजोर तन,
रोगों  से बुढ़ापा अब, तन  घिर गया  है।
कल तक घूमते थे,आगे  पीछे बाबू मेरे,
अब हर  बाबू मेरा ,नाम  भूल  गया  है।

बढ़ जाए उम्र भले,सदा वो निरोगी रहे,
समझो ये प्रेम बर,  दान  मिल  गया है।
खान-पान पर ध्यान,रहा जिसका समान,
व्यसनों से दूर सब,  ज्ञान मिल  गया है।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

सावन के झूले !

रिमझिम  बूँद जब , सनन  बयार  तब,
तन को भिगाए खूब,मन को लुभाती है। 
हरियाली सावन की,धरा लगे पावन सी,
कूककर कोयलिया,प्रेमी को बुलाती है।
नभ पर घटा  छाए ,नदी नाले भर आए,
सावन को देख मन, फुला न समाती है। 
प्रेमिका त्यौहार पर, मौसम  बहार पर ,
सावन के झूलों पर, जोभन झुलाती हैं।
कल-कल करती है,दिन-रात चलती है,
नदिया  ये  सरगम, हमको सुनाती  है।
झूले पड़े सावन के, बड़े मनभावन के,
गांव की बालिका हमें,सगुन खिलाती है।
पिया परदेश गये, पिया बिन कैसे रहे,
सावनी फुहार हमें,रात-दिन सताती  है।
प्रेमिका का मन तब,पीड़ से कराहे जब,
धक-धक कर फिर, प्रेमी को रुलाती है।
खेत खलिहान सब,हो रहे विरान अब,
सावन के झूले पर सहेली बिठाती है।
सावन पिया के बिना,काट खाएगा महीना,
आकर पिया की याद,मुझको रुलाती है।




गुरुवार, 14 जुलाई 2022

आदमी की तलाश

शहर में भीड़ है पर भीड़ में नहीॅआदमी।
देखता हूँ भीड़ में खो गया कहीं आदमी।
गांव में भी देखा वहाँ कोई नहीं आदमी,
जातियाँ के खूँटे से है बधा हुआआदमी।

ज़िन्दगी ही बीत गई यूँ ढूँढने में आदमी, 
लग रहा जैसे चांद खुद ढ़ूढ रहा चांदनी। 
ऐसा हाल दुनिया का जहां बसा आदमी,
भगवान के नाम से ही माल लूटेआदमी।

धरम के नाम पर  गुलाम बना आदमी,
पाखंड के छल से भगवान बनाआदमी।
वासना में डूब कर शैतान बना आदमी,
नैतिकता से हमेशा महान बना आदमी।

निकला हूँ घर से तलाशता हूँ आदमी।
देखता हूँ दासता में रहता है आदमी।
कहने में सच झूठ बोलता है आदमी।
बिकता है मोल तोलता नहीं आदमी।












शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

वृद्धाश्रम

लोग कहते हैं कि सच सच बोला करो,
मगर झूठ से ही पलते हैं अक्सर लोग।
बूढ़े हो जाते हैं माँ बाप अगर आज तो,
वृद्धाश्रम पहुँचाआते उन्हें अक्सर लोग।

परिवार बने हैं मजबूत रिश्तों सेअक्सर।
आज परिवार में ही रिश्ते गये हैं बिखर।
काम काजी ज़िन्दगी रिश्ते मशीनों से है,
माँ बाप निर्भर हो गयेअब वृद्धाश्रम पर।

एकओर मांजी जो छियानब्बे साल की हैं,
खेलती हैं गांव में ,पोते पोतियों के साथ।
पढ़ लिख कर जिसने घर से शहर देखा, 
वृद्धाआश्रमों में हैं सुखी रोटियों के साथ।

दुखी वो लोग जोअनाथ हैं फुटपाथों पर,
जीवन वसर कर रहे हैं वो हाथ फैलाकर।
ऐसे असहाय लोगों के लिए है वृद्धाश्रम,
लेकिन रसूखदार पहले मांगते हैं आकर।


सोमवार, 4 जुलाई 2022

सुबह का पहर

कितनाअच्छा लगता है सुबह का पहर।
जब रोशन होते हैं सारे गांव और शहर।
मन्द-मन्द पवन कर देती प्रफुल्लित मन,
झंकृत करती है हृदय को उद्वेलित लहर। 

शोर खगों का गुंजन भवरों का फूलों पर,
किरण सुबह दस्तक देती है दरवाजों पर
अँधेरों में ठोकरें अक्सर  लगती बहुत हैं,
अब उजालों में नहीं लगता है कोई डर।

सुबह उठे तो किताबों में डुबकी लगाकर।
दिया जलाया घंटी बजाई पोथियां पढ़कर।
ये अपराध तो होते हैं अंधेरों में ही अक्सर।
दूर करने को पढ़ें संविधानऔरअम्बेेेडकर।



अस्पृश्यता कलंक है

छुआछूत से अछूते नहीं हैं अभी लोग।
शिल्पकारों की बारात रोकते हैं लोग।
सब जानते हैं देश आजाद हो गया है,
फिर भी दुल्हे की घोड़ी रोकते लोग।

मित्र की शादी में ढोल बजाते हैं लोग।
पहाड़ वादियाँ में घोड़ी सजाते हैं लोग। 
पत्थर के सायों में है जातीय व्यवस्था,
इसीलिए करते हैं जातीय झगड़े लोग। 

पढ़ायाकिअस्पृश्यता राष्ट्रीय कलंक है।
धर्म जाति भेद  से ये एकता बदरंग है।
त्याग बलिदानों से आजादी मिली हमें,
प्रजातंत्र राज यहां न राजा है न रंक है।

सावधान छुआछूत राष्ट्र का कलंक है।
 



रविवार, 3 जुलाई 2022

भाईचारा

  हिन्दी साहित्य परिवार 
विषय - भाई चारा
दिनांक   1/7/2022से 


मिलकर पहल करें हम भाईचारा।

ये तेरा है ये मेरा यहअंधकार घनेरा।
अलगाववाद का है यहां हमेशा डेरा।
फिर कैसे भाई-चारा परिलक्षित हो।
समता, स्वतंत्रता यहां सुरक्षित हो।

मिलकर पहल करें हम भाई-चारा।
बने समतामूलक ये समाज हमारा। 

त्याग दें निष्ठुरता संवेदनशील बनें।
भेदभाव मिटाकर  प्रगतिशील बनें। 
छल-कपट रहित हो चरित्र  हमारा।
मिलकर पहल करें हम भाई-चारा।

दुनियां में मेरा भारत देश है न्यारा।
युगोंअमर रहे ये प्रबुद्ध राष्ट्र हमारा।
मिलकर पहल करें ऐसा भाई-चारा।
जैसे हिन्दी साहित्य परिवार हमारा।



शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

बुद्ध पथ***स

बुद्ध का पथ है सुगम सम्पूर्ण इसमें शुद्धता।
करुणा दया व प्रेम इसमें पूर्ण है सहिष्णुता ।
भाग्य न भगवान बस इन्सान ही है श्रेष्ठतम।
मुक्ति का ही  मार्ग है बुद्ध का यह श्रेष्ठ धम्म। 

हैआदर,सम्मान सबकाऔर पथ है नेक का ।
है इसी में बुद्ध का धम्म संघ की सत एकता।
इतिहास के पन्नों में है प्रबुद्ध भारत की कथा।
मनुवादियों का छद्म ही बन गई उनकी व्यथा।

श्रमण संस्कृति के वाहक परतंत्र कैसे हो गये।
मनुवाद के गहरे इस दलदल में कैसे धंस गये।
शिक्षा केअवलम्ब से हम खोज सकते हैं कथा।
धम्म के पथ पर चलें तो हम मिटा सकते व्यथा।

गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर लाओ सबेरा।
प्राण जन गण के जगा लुप्त हो जाएअन्धेरा।
स्वतंत्र भारत का विधानअम्बेेेडकर बना गये। 
गणतंत्र का अनुपम नया विधान सिखा गये।
नमन करके भीम को हम वह संविधान पढ़ें ।
लक्ष्य पाने के लिए फिर एक कदम आगे बढ़ें।



मुक्तक

 
जो ऊंची ऊंचीअट्टालिकाओं में रहते हैं।  
सपने अक्सरआसमां छूने के देखते हैं। 
राह भटके हुए फुटपाथों पर रहने वाले, 
आसमान के नीचेअक्सर भूखे मरते हैं।

अपनों की हर बात याद रखनी चाहिए। 
लक्ष्य की ठोस बुनियाद रखनी चाहिए।
उम्मीदों से भरी इस सुहावनी सुबह से,
नव सृजन की सुरुआत करनी चाहिए। 

जीवन को सदा मधुर बनाती है मित्रता।
जीवन मेंअच्छी राह दिखाती है मित्रता।
सुख- दुःख दो पहलू हैं हमारे जीवन के,
हर  पहलू पर  साथ निभाती है  मित्रता।

मंगलवार, 28 जून 2022

आज



गर्मी का वही आलम है आज भी।
सूना सूना सा है मानसूनआज भी।

टकटकी लगाए देखता हूँआसमां,
गरज नहीं रहे हैं बादल आज भी।

विज्ञान का चमत्कार बहुत हुआ है, 
मगर मानसून से रिश्ता हैआज भी।

खेती जुआ है ऐसा पढ़ाया गया है।
भाग्य भरोसे है किसान आज भी।

धान तो पानी का ही पौधा रहा है,
उसे वर्षा का इन्तजार हैआज भी।


मन की बात

दूसरों को देख कर मन कुल बुलाता है।
गर्दिशे हाल अपनाभूल जाना चाहता है। 
कहना चाहता है वोअपने मन की बात,
अपने अनुभव साझा करना चाहता है।

छुपाकर बात वह नहीं रखना चाहता है।
मन में जो भी होउसके कहना चाहता है।
बात छोटी हो या बड़ी ये बात तो बात है ,
ज़िन्दगी को वो सौगात देना चाहता है।

बातें हैं जो जीवन की दशा बदल देती हैं। 
समझ आऐ दुश्मन का सर कुचल देती हैं। 
हर कोई बात सहज में नहीं मान लेता है,
बात भा गई तो परिस्थित बदल देती है।

बातें मन में यूँ मेघों की तरह उमड़ती हैं।
कभी बरसती ,बिजली सी कड़कती हैं।
सब बहरे हो गये हैं श्रोताओं की भीड़ में,
जाकर कान में ही  बात कहनी पड़ती है।


रविवार, 26 जून 2022

अग्निपथ

आज सड़कों पर युवा हैं लामबंद,
अग्निपथ को कौन पूछेगा यहां ?
अग्निवीरों की परीक्षाअग्निपथ में
परिणाम को कौन जूझेगा यहां ?

बात भक्ति की नहीं ये शक्ति की है,
शक्ति भी अर्जित होती है सोच से। 
भूख से लड़ना सिखाता है समर्पण,
हार जाता है वह यहाँ  संकोच से।

देश भक्ति है जवानों में एक जज्वा, 
सम्मान ही उसके लिए उपयुक्त है।
तानके सीना कुचलता दुश्मनों को,
निज चिन्ताओं से यदि वो मुक्त है।

अनुबंध मात्र चार वर्षों के लिए जो,
कमजोर करेगा वीरों की आश को।
हरएक सैनिक पर हमें जहाँ गर्व है,
वो अग्निवीर कैसे सहें उपहास को।


शुक्रवार, 24 जून 2022

मुक्ति का बोध

मुक्ति का बोध हो जिससे वह पथअच्छा।
मुश्किलों में साथ दे जो वही मित्र सच्चा।

रूढ़िवादी  बने रहना अज्ञानता है हमारी,
नये  युग में खुद का  बदल जानाअच्छा।

काम से कभी  न कोई  छोटा,बड़ा होता,
काम की सम्यकता खुद जानना अच्छा।

सरकारी नौकरियां तोअब मिलने से रही, 
अब तो खुद शिल्पकार हो जाना अच्छा।



गुरुवार, 9 जून 2022

चलना ही जीवन है।

चलना ही जीवन है बस तो चले चलें।
तोड़कर बंधन मुक्ति के लिए बढ़े चलें।
मानवता का श्रेष्ठ पथ ही बुद्ध धम्म है,
आओ मिलकर भ्रातृभाव से बढ़े चलें।

चुप रहना ये किसकोअच्छा लगता है।
पतझड़ होना किसकोअच्छा लगता है।
परिवर्तन है प्रकृति का शाश्वत नियम,
जीवन में ठहराव किसेअच्छा लगता है।

संसार में है दुख,दुख का कारण भी है।
दुःखों से मुक्त होने का निवारण भी है।
बुद्ध का पथ ही तो मुक्ति का सत्पथ है,
अप्प दीपो भव धम्म काआचरण ही है।

रुकना नहीं जीवन में यू बढ़ते जाना है।
संघर्ष किया है तो यह वक्त पहचाना है।
मित्र सदा अपना सुख दुख का साथी है,
आपस में मिलजुल कर प्रेम निभाना है।

शनिवार, 14 मई 2022

मैंऔर चंदा

मेरी धरती चांद गगन की दोनों दूर अमन में।
रोज निहारू मैं उसको महके फूल चमन में।
चंदा की शीतल चादनी फैलाती जबआंचल।
लिखने को देती हैअपनी आँखों से काजल। 

इसी काजल से लिख लेते हैं नये कोई गीत।
जीवन की इस धारा में बहती  मन की प्रीत।

मुझे धरा पर चंदा की शीतल चांदनी भाती।
शुक्ल पक्ष की चंदा दूध में नहा कर आती।
सोलह कलाऐं हैं उसकी च॔दा रोज बदलती।
अमावस से चंदा खुद सजती और संभलती।

इसी चांदनी में मन खोजे अपने मन का मीत।
नये स्वरों में मिलकर गाते वो नये मन के गीत।

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

नयी सोच नये विचार

"नयी सोच नये विचार "
******************
एनआर स्नेही रामनगर नैनीताल  "स्वरचित "
*********************************
अपनों से नहीं प्यार तो,
औरों से क्या खाक करेंगे।
नफ़रत  फैलाने वाले, 
 देश को क्याआबाद करेंगे।
पत्थर को ईश्वर बतला कर-
 नित नए पाखंड रचना,
अस्पृश्यता फैलाने वाले,
 इन्शां की क्या बात करेंगे।
प्रजातंत्र के दर्पण में जब,
 लोग  विशुद्ध मन देखेंगे।
जन मन को जगाने वाले,
शोषण के विरूद्ध लिखेंगे।
असहिष्णुता से भरे हुए-
 साम्प्रदायिक विचारों वाले,
रूढ़िवादिता हो जिनमें,
क्या नया इतिहास लिखेंगे।
नयी सोच नये विचार से,
 जो युग का आह्वान करेंगे।
शिक्षा केअवलम्बन से -
नव युग का इतिहास लिखेंगे।
दया प्रेम बन्धुत्व जगाकर,
 प्रबुद्ध राष्ट्र निर्माण हेतु में,
अखंड भारत के लिए -
तन-मन धन से प्रयास करेंगे।



बुधवार, 20 अप्रैल 2022

दूर हो अंधेरा

दूर हो अंधेरा उजाला हर पहर हो।
उल्लास भरा यह जीवन सफर हो।
प्रेम व बन्धुत्व के भाव हों हृदय में,
सफलता का प्रयास जीवन भर हो।

सब सम्मान से जीऐं और जीने  दें।
चमन में खूब सुन्दर फूल खिलने दें।
स्नेहिल भाव से सींचकर इस धरा में- 
सहिष्णुता के नये संस्कार पनपने दें।

जाग जाऐं वक्त पर चमन से प्यार करें।
सबके साथ भाईचारे का व्यवहार करें।
नफ़रत जो फैलाए आंगन में वतन के, 
उन दुश्मनों का हम सदा प्रतिकार करें।



बुधवार, 13 अप्रैल 2022

कविता

भावों  से सजती  है कविता,
शब्दों  से निखरा  करती  है।
जितना  उसे  करो अलंकृत,
मनमें उतना उतरा करती है। 

कवि की कल्पना कविता है,
पर  औरों  को भा  जाती है। 
जितना प्यार करो कविता से,
उतना  मन पर  छा जाती है।

कविता  कवि  की  सांसें  हैं,
जब  ठोकर लगती बढती हैं।
तुम छू  कर  तो देखो उनको,
वो  कितनी तेज  धड़कती हैं।

कवि बन जाओ तुम भी अब,
डूबो तुम कविता के सागर में। 
चुन चुन कर मणियां ले आना,
खुश  होकर मन के  गागर में।

बैठो  जब तुम कविता लिखने, 
क्या लिखना है  सोचा करना।
मालिक के प्रशंसक ही हैं सब,
तुम श्रमिक दंश उकेरा करना।
केवल प्रशंसा में गीत लिखोगे,
 

मंगल कामनाओं !

जिनको सुबह शाम याद करते हैं।
दूर रहकर भी हम संवाद करते हैं।
खुशियों से भरी रहे उनकी झोली,
हृदय से उनके लिए दुआ करते हैं।

झुक कर सलाम करता हूँ उनको।
स्रोत प्रेरणा के भूला नहीं जिनको।
जो हमें अँधेरों से रोशनी तक लाए,
कोटि कोटि नमन करता हूँ उनको

भूल से जिन्हें हम अपना समझते हैं,
वो साथ देने वक्तपर पिछड़ जाते हैं।
अपनी मेहनत सेआगे बढ़ रहे हैं तो,
वही आकर रिश्तों में उलझा जाते हैं।

बहुत लोग हैं दुनिया में जान लीजिए।
कौन मित्र हैं अपने  पहचान लीजिए।
भीड़ बहुत है निकलना बड़ा मुश्किल,
ये ज्ञान से विज्ञान का संज्ञान लीजिए।







शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मुक्तक

जागा है जो समय से फिर कहां रूका है वो।
मुसीबतें हजार हों फिर भी नहीं झुका है वो।
आदमी जो कर रहा है नव सृजन का प्रयास,
यही है उसकी श्रेष्ठता स्वयं बदल चुका है वो।

यहां प्रेम को मुकद्दर मान लेते हैंअक्सर लोग।
जब हार जाते हैं तो जान  देते हैंअक्सर लोग।
यह  प्रेम कोई जंग  नहीं है जहां जीत हार हो,
प्रेम तो एहसास है जिसे पहचान लेते हैं लोग। 

तुम झुककर उनको कब तक सलाम करोगे।
कमजोर हो कर खुद को यूंही बदनाम करोगे।
समय है सम्भलकर चलना कुछ सीख लीजिए,
कब तक जिंदगी में गुलामी काअपमान सहोगे।

देख कर निजअक्स शीशे में लगाआदमी सा हूँ।
जीवन की राह चलता मैं भी एक आदमी सा हूँ।
फिर क्यों यहां लोग मेरी पहचान को नकारते हैं,
तुम्हारी तरह मैं भी तो आदमी कुछ काम का हूँ।

सोमवार, 21 मार्च 2022

आशा

फूलों सा कोमल हृदय,
मुख पर नित मुस्कान उदय।
दुर्भाव नहीं तिल भर मन में,
बीते यह जीवन निर्भय।
सौ बार जमीं पर गिरें भले,
सम्भलें आगे बढ़ते जाऐं।
संघर्ष कभी कमजोर न हो,
हम शिखर चढ़ते जाऐं।
हृदय में सहिष्णुता हो,
 इंसान का हम सम्मान करें।
कर्तव्यपरायण हो जाऐं,
ये राष्ट्र पर अभिमान करें।
वंचित न हो कोई यहां,
सबको यहांअधिकार मिले।
शोषित हैंअभी जो यहाँ,
उनको राष्ट्र का प्यार मिले।
 

रविवार, 13 फ़रवरी 2022

हाल एक चुनाव

भीड़ तो बहुत थी परन्तु वे नहीं थे ।
नेता जी के भाषणों में मुद्दे नहीं थे।
ऊॅगते लोगों से सुना कि हद हो गई, 
उत्तराखंड की कहीं तस्वीर खो गई ।

पास हैं डिग्रियाॅ फौज बेरोजगारों की,
शरम है बदनियती पर सरकारों की।
बहुत हुई बरगलाने की बातें अब तक,
अब लूटने की साजिशें हैं पहरेदारों की। 

ये सलाम है उनको जो जंग लड़ते हैं।
परिवर्तन के लिए हमेशा संग रहते हैं।

शनिवार, 15 जनवरी 2022

बच्चो आज सुनो कहानी तुम संत निकोलस की।
सदा चला जो राहों पर अपने पैगंबर जीजस की।
राजा के घर जन्मा उसे सदा गरीबों से प्यार रहा।
निर्धन की सेवा करनेको वह दिन-रात तैयार रहा।
नये नये परिधान पहनकर  बच्चों को जो भाता था।
बड़े सबेरे उनके घर में वो खिलौने रख जाता था।
हिम प्रदेश का वासी जिसका शुद्ध निर्मल मन था।
हमसे बड़ा होने पर भी उसमें हम सा  बचपन था।
एक बार की बात गांव में एक निर्धन बुढिया रहती।
तीन पुत्रियों के साथ वह एक झोपड़ी में वो रहती।
पैसे नहीं थे पास उसके और पुत्रियां जवान हो गई।
अब कैसे शादी हो इनकी वह बहुत परेशान हो गई।
इसकी भनक जब लगी संत को चुपके आया घर में।
सोने के सिक्के थैली में बन्द कर वह रख गया घर में।
सुबह उठी बहनें तीनों उन्होंने दरवाजे पर थैला देखा।
हर्षित हुए सब घर में जाना ये बदली भाग्य की रेखा। 
मानवता का कोई पुजारी जब आता है इस धरती पर।
सारे संकट दूर हो जाते रहेंगे समाज में जब मिलकर।

 



 

गुरुवार, 13 जनवरी 2022

मुक्तक

ज्ञान का दीपक जले हर मन उज्ज्वल हो।
जन जन हो समृद्धिवान दुर्जन विफल हो।
अग्निमय संकल्प ले सत्पथ पर आगे बढ़ें,
लक्ष्य पाने का उनकाअभियान सफल हो।

मोह में जो फंसा सुख भला कहां मिला। 
ये पत्थरों में कभी फूल कोई नहीं खिला। 
धरा पर जब भी गिरा श्रमण का पसीना,
तभी बढ़ा गुलशन में रिश्ते ए सिलसिला।

अग्रणीय है वही जो जागता है वक्त पर।
हमेशा कर्मवीर ही तो बैठता है तख्त पर। 
त्यागकर आलस्य जो रहा हमेशा जागता, 
उसी का त्याग काम आ रहा है  वक्त पर।
@स्नेही



कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...