यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

#पल पल मंगलमय हो।(50)

जो भटक रहे हैं अंधेरों में, थोड़ी रोशनी उन्हें मिले।
कुपथ त्याग कर जीवन में सब सत्य की राह चले।
रूढ़िवाद का अन्त कर,समतामय बन्धुत्व उदय हो।
हर दिवस जन जन काअब, पल पल मंगलमय हो।
                   जागृत हो संवेदनाऐं, सबको सबका स्नेह मिले।
                   वंचित रहे न कोई अब, सबको ही सम्मान मिले।
                   जाति,धर्म,पाखंड मिटा,बुद्ध सा कोमल हृदय हो।
                   हर दिवस जन जन का, हर पल पल मंगलमय हो।
राग द्वेष विकार न हों,करुणा भाव प्रवाह रहे।
सम्यक दृष्टि हो, जीवन में सतत उल्लास रहे।
जीवन के संघर्षों में,वंचित की सदा विजय हो।
हर दिवस जन जन का, पल पल मंगलमय हो।

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

#वंचित स्वर (51)

सर्द हवा हो या हो चिलचिलाती गरमी ,
बहाता निरन्तर पसीना खूब परिश्रमी।
मयस्सर नहीं उसको दो जून रोटी भी,-
फिरभी हौसलों में, नहीं होती कोई कमी।
            सूरत बदलना चाहते हैं, वे इस पहाड़ की,
            सामने खड़ी हैं उनकी, ये पीड़ पहाड़ सी।
            मालिक लपकते हैं,जौंक की तरह शहर में,
            जो अनवरत चूस रहे हैं,लहु उनके हाड़ की।
लाचार मेहनतकशों की,परवाह किसको पड़ी है?
उनके हकों की लड़ाई,अब तक किसने लड़ी है।
देखिए कुछ तो इधर, राजनीति की बदहाली को।
जिसका कतरा कतरा,जमीन पर बिखरी पड़ी है।
             यूं बुत की तरह खड़े रहना,अच्छा नहीं लगता।
             जंग में सिपाही का भागना,अच्छा नहीं लगता।
             कुछ तो सोचना होगा,देश के नव निर्माण के लिए,
             भीड़ में शामिल तमाशा देखना अच्छा नहीं लगता।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

भौनी दा(27)

दगड़ू भौनी दा,जनुहैं भवान सिंह कौंनी।
आज कल अब ऊं बल दिल्ली हौन रौनी ।
हम ननछना बटि स्कूल,एक दगड़ै  गय।
एकै स्कूलम, हम एकै दर्जम दगड़ै रय।
हमुलि गुल्ली डंडा,घुसघुसि दगड़ै खेलि।
बटपन लुुुुकण पणज्यू मार दगड़ै झेलि।
हम एक बटी दस तक स्कूल दगड़ पढ़।
जो साल पास हय और वी साल विछड़।
अपण दद दगै भौनी दा तलि हैंणि नै गय, 
इज बौज्युक लाडिल हम घर पनै रै गय।
साल द्वी साल तक चिठि पतर लिखनै रय।
बखतक दगड़, फिरि हमलै सब भूलि गय।
भौनीदा कैं वेति दिल्लीक हवा रास ऐगे ।
घरपन मेरि मास्टरीक बस एक तलाश रैगे। 
कब ब्या हौय ? यूॅ कब नन तिन हय ?
बचपना दिन अपण हम  सब भूलि गय।
घरपन सैंणिक कचकचाट  सुणनैं रय।
राती ब्याव हम स्वीणोंक जाव बुणनें रैगय ।
येति दिन रात हम दौड़नै रिश्त बड़नैं गय।
य उमरकि किताबक हर पन्न पलटनै रय।
लोगोंल बतायआज भौनी दा घर ऐ रैंई।
अपण दगै ननतिन पहाड़ घुमुहणि ल्य रैंई।
मैं ब्याव एक झप्पाक  मिलहणि क्य गोय।
चहा  पीनैं गपशप  मारनैं झित वैं रै गोय।
उमर बिति हम पहाड़ हैंणि के नि कर सक।
अपण ठाठ-बाट मारनैं रै गय कोरि फसक।







गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

# मुल मुल हंसनै रया (28)

मिठ-मिठ, भौल बुलानें रया।
खितखित,मुलमुल  हंसनै रया।
            खुटों तुमर कभैं कन झन बुड़ौ।
            मूण कभैं क्वे आँस झन पड़ौ।
             सगुन आंखर तुम लेखनैं रया।
             खित खित,मुल मुल हंसनैं रया।
             नौंसाल तुमुहैंण दैंण है जाऔ।
              दूधभात खूब  खैहण है जाऔ।
              अणी जणियां क्वे भूख न रहौ।
              नाजैल भकार तुमरभरीयै रहौ।
अपण -पराय सब देखनैं रया।
खित खित,मुलमुल हंसनैं रया ।
             घर-बौंण डव बोटि हरिया रहैं।
             खल्यत रुपयोंल तुमरभरियै रहैं।
             बट-घट,व्यापारम  बरकत  रहौ।
             धिनाईल ठेकि-डौकौ भरियै रहौ।
दिन-रात भल स्वींण देखनै रया।
खित खित,मुल मुल हंसनै रया।
             तुमूपरि कभैं कैक दोष न लागौ।
             रौल गध्यरोंक छौव कभैं न जागौ।
             खुशि देखिक चौड़ चाकौ है जया।
             सबोंकैं उज्याव तुम दिखानैं रया।
द्यप्तोंक थानम,तुम द्यू बावनै रया।
खित -खित,मुल- मुल हंसनैं रया।
            नौं साल पारि, तुम नौं गीत गाया।
             परदेश जाई छैं,उनुकैं घर बुलाया।
            अपण मुलुक कैं,छोड़ि झन जया।
             ननों कैं रोजगार,तुम एती दिलाया।
फूलदेई घी त्यौहार, एती मनाया।
खित-खित,मुल- मुल  हंसनैं रया।
           बीती बातों कैं अब भूलि जाणौ।
           बखत कैं नौं उज्याव दिखाणौ।
           खेती-बाड़ीक नई नीति बनाणौ।
           भरपूर फसल फल फूल उगाणौ।
नौं साल पारि सब नौं गीत गाया ।
खित-खित,मुल-मुल  हंसनैं रया।
 

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

#महापरिनिर्वाण दिवस #

शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण।
तुम्हें सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण।
         तुमअमर शब्द बीजअंकुरित हो।
          हर हृदय पटल पर पुष्पित हो ।
           उत्साह उमंग से हो ओतप्रोत,
            धम्म चक्र प्रवर्तन परिलक्षित हो।
             तुम नव युग के नव निर्माण कर्ता।
               तुम हो त्रिशरण शील ज्ञान प्रदाता। 
 तुम्हें सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण।
  शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण ।
                तुम स्वतंत्रता के थे पथ प्रदर्शक।
                तुम स्वाभिमान के महाआकर्षक।
                परतंत्रता का वह दुष्चक्र तोड़ने,
                 तुम संघर्षशील अभय पथ दर्शक।
                 भारत संविधान के तुम निर्माता।
                 अर्थशास्त्री थे तुम  विधि ज्ञाता।
    तुम्हें सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण ।
     शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण ।
                  छः दिसम्बर सन् उन्नीस सौ छप्पन।
                   जब क्रांति वीर की रुक गई धड़कन। 
                    जन गण मन का हृदय संतप्त हुआ, 
                    बुझ गया दीप वह मसीहा अमन।
                    दे गया जो वंचितों को अभय मूल मंत्र।
                     समता मय बन्धुत्व से सींचो प्रजातंत्र ।
शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण ।
सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण ।
                   


कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...