तेवरों से अभी भी विरोधी भयभीत है।
भूल जाइए जनाब बेरुखेअल्फाज़ों को,
अब तो सबसे गले मिलने की रीत है।
भीड़ से उनको अब निकलने दीजिए।
जीत से हो गये हैं होंसले बुलन्द उनके,
उन्हें भी नया अध्याय लिखने दीजिए।
शिकवे शिकायतों में अब रख्खा क्या है,
चुनावी भूख में क्या कच्चा क्या पक्का है।
उतार-चढ़ाव का ये हुनर नहीं सीखा कभी ,
वहीआदमी तो यहांआजअधर में लटका है।