सरकार गिराओ ,हल्ला बोल कर।
उनका भी हल्ला,इनका भी हल्ला ।
आपस में झल्ला, जनता को बहला ।
सब के सब हैं,एक थैली के चट्टे बट्टे।
यूॅ ही चला रहे हैं ,राजनीति के सट्टे ।
ये कभी इधर हैं, तो कभी उधर हैं।
पता नहीं है कि कब कौन किधर हैं ।
गिरगिट की तरह ,खूब रंग बदले हैं ।
ये धरम जाति की खूब चाल चले हैं ।
इनको बस कुर्सी की हवस होती है।