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सोमवार, 12 दिसंबर 2022

यादों में आती रहो

मेरे शब्दों को तुम गुनगुनाती रहो। 
सुरों से  मधुर राग अलापती रहो।

मेरी ये धड़कन तुम्हारा ऐहसास है,
तुम यूँ धड़कन बन मुस्कुराती रहो। 

प्यार की धड़कनों में कभी दर्द हो।
तुम धड़कन पे नया गीत गाती रहो। 
 
तन्हाइयों  में गर भूल भी जाऊं तो,
तुम हमेशा मेरी यादों में आती रहो।

कुछ तो थी बात गुजरे हुए जमाने में,
हमको जमाने की याद दिलाती रहो।

मैं चलता  रहूँ हमेशा जीवन पथ पर,
तुम साया  बनकर  पीछे आती रहो।

रविवार, 11 दिसंबर 2022

आग हैं छू नहीं सकते

आग हैं छू नहीं सकते,
 मगर प्यार इसके ताप से।
  कितने काम की है आग,
   जरा पूछिएअपनेआप से।

हर जात की लकड़ियां,
 भष्म हो जातीआग में।
  जात का अभिमान सारा,
   मिल जाता  है खाक में।

आग ही है सब कुछ यहां,
 इसी  पर  तो  हैं  निर्भर।
  छू नहीं सकते इसे हम,
   ये  है  मेहरवां  हम  पर। 

जब  कपकपाती  ठंड हो,
 तब तन अकड़ता ठंड से।
  बर्फ   सी  जमती  परतें,
   अकड़न भरी  घमंड से।

बैठ  कर    पास इसके,
 पिघलने लगती है  परत।
  जान  लेते  हैं अर्थ  हम,
   मिटाकर  दिल से नफरत।

जलकर   राख   जब  हो  ,
 बभूति   माथे  लगा  लेते।
  आस्थावान  होकर   हम, 
   डुबकी सागर में लगा लेते।

जब अछूत के पास जाओ,
 ताप से नफरत मिटा लेना।
  दर्प  हो  जाये राख तो तुम ,
   बभूति को माथे लगा लेना।









शनिवार, 10 दिसंबर 2022

हालात.....

महंगी हो गई  हर चीज, 
 बाजार जा के क्या करूँ।
  पल में नहीं है एक धेला,
   मैं किसको  क्या खरीदूँ।

पास जितना भी प्यार था,
 सब कब का लुट चुका।
  रहने को जो भी ये घर था,
   वो अदद भी बिक चुका।

बस  बेघर हो गया हूँ अब,
 इधर उधर मैं भटक रहा। 
  थर थरा रहे हैं अब कदम,
   चलने में  दम निकल रहा।

अब नजर भी कम हो गई,
  कैसे किसी को पहचान लूँ।
  जाकर किसी दुकानदार से,
   अब थोड़ा सा उधार मांग लूँ।

मशाल

निकल पड़े लेकर मशालें,
हम गांव घर  शहर शहर।
ये कर दिया ऐलान हमने,
चुप्पी नहीं अब जुल्म पर।

यह  जिस्म है फौलाद की,  
शोले  हमारी  मुट्ठियों  में।
जिन्दगी  गुजरी   बहुत  है,
जलती हुई इन भट्टियों में। 

बांधकर सर  कफन अब,
युग बदलने  चल  पड़े हैं।
कारवां के साथ मिल कर, 
हम हर कदमआगे बढ़े हैं। 

हम आग  हैं    छूना  नहीं,
छू  लिया  जल   जाओगे,
वक्त को   समझो नहीं तो,
फिर  बहुत  पछताओगे।

अब तोड़  देंगे  बेड़ियाँ हम, 
आत्म  निर्भर  खुद  बनेंगे।
शिक्षा का अवलम्ब लेकर,
अपना  दीपक  खुद  बनेंगे।

याद बहुत आती है

गुजारे हैं  जो  लम्हें  तुम्हारे साथ,
उन लम्हों की बहुत यादआती है।
वक्त का  कुछ  पता  नहीं चलता,
कब सुबह कब रात ढ़ल जाती है।

लिखता हूँ खत आज भी तुमको,
पर खत काफी लम्बे हो जाते हैं।
मन मोहनी घटाऐं  जब घिरती  हैं,
बरसती नैनों से खत भीग जाते हैं।

तमाम तुम्हारे  भीगे हुए खत यहां,
ये मेरी सारी कविताऐं हो जाती हैं।
प्रकाशित हो जायेगी फिर किताब,
उन लम्हों की बहुत याद आती  है।

शब्दों के साथ खेलते दिन गुजारना,
अक्सरआदत सी होगईअब हमारी।
इन  शब्दों को जब भी तराशता हूँ ,
हरेक शब्दों में देखता सूरत तुम्हारी।

अब वक्त का पता कुछ नहीं चलता,
कब  सुबह कब  रात ढ़ल जाती है।
गुजारे हैं जो लम्हें हम दोनों ने साथ, 
उन लम्हों  की बहुत  याद आती है।







कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...