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शनिवार, 23 अप्रैल 2022

नयी सोच नये विचार

"नयी सोच नये विचार "
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एनआर स्नेही रामनगर नैनीताल  "स्वरचित "
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अपनों से नहीं प्यार तो,
औरों से क्या खाक करेंगे।
नफ़रत  फैलाने वाले, 
 देश को क्याआबाद करेंगे।
पत्थर को ईश्वर बतला कर-
 नित नए पाखंड रचना,
अस्पृश्यता फैलाने वाले,
 इन्शां की क्या बात करेंगे।
प्रजातंत्र के दर्पण में जब,
 लोग  विशुद्ध मन देखेंगे।
जन मन को जगाने वाले,
शोषण के विरूद्ध लिखेंगे।
असहिष्णुता से भरे हुए-
 साम्प्रदायिक विचारों वाले,
रूढ़िवादिता हो जिनमें,
क्या नया इतिहास लिखेंगे।
नयी सोच नये विचार से,
 जो युग का आह्वान करेंगे।
शिक्षा केअवलम्बन से -
नव युग का इतिहास लिखेंगे।
दया प्रेम बन्धुत्व जगाकर,
 प्रबुद्ध राष्ट्र निर्माण हेतु में,
अखंड भारत के लिए -
तन-मन धन से प्रयास करेंगे।



बुधवार, 20 अप्रैल 2022

दूर हो अंधेरा

दूर हो अंधेरा उजाला हर पहर हो।
उल्लास भरा यह जीवन सफर हो।
प्रेम व बन्धुत्व के भाव हों हृदय में,
सफलता का प्रयास जीवन भर हो।

सब सम्मान से जीऐं और जीने  दें।
चमन में खूब सुन्दर फूल खिलने दें।
स्नेहिल भाव से सींचकर इस धरा में- 
सहिष्णुता के नये संस्कार पनपने दें।

जाग जाऐं वक्त पर चमन से प्यार करें।
सबके साथ भाईचारे का व्यवहार करें।
नफ़रत जो फैलाए आंगन में वतन के, 
उन दुश्मनों का हम सदा प्रतिकार करें।



बुधवार, 13 अप्रैल 2022

कविता

भावों  से सजती  है कविता,
शब्दों  से निखरा  करती  है।
जितना  उसे  करो अलंकृत,
मनमें उतना उतरा करती है। 

कवि की कल्पना कविता है,
पर  औरों  को भा  जाती है। 
जितना प्यार करो कविता से,
उतना  मन पर  छा जाती है।

कविता  कवि  की  सांसें  हैं,
जब  ठोकर लगती बढती हैं।
तुम छू  कर  तो देखो उनको,
वो  कितनी तेज  धड़कती हैं।

कवि बन जाओ तुम भी अब,
डूबो तुम कविता के सागर में। 
चुन चुन कर मणियां ले आना,
खुश  होकर मन के  गागर में।

बैठो  जब तुम कविता लिखने, 
क्या लिखना है  सोचा करना।
मालिक के प्रशंसक ही हैं सब,
तुम श्रमिक दंश उकेरा करना।
केवल प्रशंसा में गीत लिखोगे,
 

मंगल कामनाओं !

जिनको सुबह शाम याद करते हैं।
दूर रहकर भी हम संवाद करते हैं।
खुशियों से भरी रहे उनकी झोली,
हृदय से उनके लिए दुआ करते हैं।

झुक कर सलाम करता हूँ उनको।
स्रोत प्रेरणा के भूला नहीं जिनको।
जो हमें अँधेरों से रोशनी तक लाए,
कोटि कोटि नमन करता हूँ उनको

भूल से जिन्हें हम अपना समझते हैं,
वो साथ देने वक्तपर पिछड़ जाते हैं।
अपनी मेहनत सेआगे बढ़ रहे हैं तो,
वही आकर रिश्तों में उलझा जाते हैं।

बहुत लोग हैं दुनिया में जान लीजिए।
कौन मित्र हैं अपने  पहचान लीजिए।
भीड़ बहुत है निकलना बड़ा मुश्किल,
ये ज्ञान से विज्ञान का संज्ञान लीजिए।







शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मुक्तक

जागा है जो समय से फिर कहां रूका है वो।
मुसीबतें हजार हों फिर भी नहीं झुका है वो।
आदमी जो कर रहा है नव सृजन का प्रयास,
यही है उसकी श्रेष्ठता स्वयं बदल चुका है वो।

यहां प्रेम को मुकद्दर मान लेते हैंअक्सर लोग।
जब हार जाते हैं तो जान  देते हैंअक्सर लोग।
यह  प्रेम कोई जंग  नहीं है जहां जीत हार हो,
प्रेम तो एहसास है जिसे पहचान लेते हैं लोग। 

तुम झुककर उनको कब तक सलाम करोगे।
कमजोर हो कर खुद को यूंही बदनाम करोगे।
समय है सम्भलकर चलना कुछ सीख लीजिए,
कब तक जिंदगी में गुलामी काअपमान सहोगे।

देख कर निजअक्स शीशे में लगाआदमी सा हूँ।
जीवन की राह चलता मैं भी एक आदमी सा हूँ।
फिर क्यों यहां लोग मेरी पहचान को नकारते हैं,
तुम्हारी तरह मैं भी तो आदमी कुछ काम का हूँ।

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...