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शनिवार, 22 मई 2021

मैं भाव हूँ।

तू   बिन्दु   तो   लकीर  हूँ   मैं ।
तू   दाता  तो   फकीर  हूँ    मैं।
तू   बीज  है   तो  वृक्ष  हूँ    मैं।
तू   चक्षु है तो  दृश्य    हूँ    मैं।
तू   भाव तो   अल्फाज हूँ    मैं।
तू  संगीत तो हर साज हूँ   मैं।
तू   चित्र तो कलाकार हूँ    मैं।
तू    रोग  तो  विकार हूँ     मैं।
तू   गूंज तो  पुकार हूँ      मैं।
तू  रक्त तो तलवार हूँ      मैं।
तू अन्त तो शुरुआत हूँ    मैं।
तू मेघ तो वरषात।   हूँ     मैं।
तू  तिलक  ललाट   हूँ       मैं।
तू द्वार है तो कपाट हूँ।    मैं।
तू  दर्द तो आघात हूँ।      मैं।
तू आश तो विश्वास हूँ।     मै
तू  विचार तो संवाद हूँ।     मैं।
तू कुछ नही बकवास हूँ।    मैं।
तू सत्य है तो इतिहास हूँ।    मैं।
तुम थोड़ा तो अथाह।   हूँ       मैं।
तुम प्रकृति सम्यक भाव हूँ    मैं।
"""""""भावना कृति '""""""

सोमवार, 17 मई 2021

नई सुबह स

एक नया सूरज निकला आसमां में,
  एक नई सुबह उतर आई धरती पर।
    मन प्रफुल्लित रोम रोम सिहर उठा,
      वो सुबह नई किरण थी अम्बेेेडकर। 
सूरज को देख नखत छुप गये सारे ,
  रोशन हुआ घर अब हर आदमी का। 
    कुप्रथाओं का शिकार था युगों से जो,
      स्वाभिमान जाग गया आदमी का। 
अन्धेरों में चमकते रहे हजारों जुगनू ,
   फिर भी न हुआ ये उजाला मयस्सर।
      गुलामी की बेड़ियो  खनकती रही,
        नहीं हुई कृपा कभी वंचितों पर। 
धम्म की रोशनी से विश्व जगमगाया,
  बढ़ता रहा वो मानवता के पथ पर।
    भीमराव ने जगाई धम्म की रोशनी,
      कर गये उपकार बड़ा बहुजनों पर।
एक नया सूरज निकला आसमां में,
  एक नई सुबह उतर आई धरती पर।
    फैला गये धम्म व विज्ञान का परचम,
     नयी सोच के बीज बो गये अम्बेेेडकर।

एक बला*** स

झांक कर अपने झरोखों से,
  लोग कह रहे बाहर शोर है।
    सुनसान पथ पर एक छाया,
      लगता है जैसे कोई चोर है।
मूंह बन्द किए दूर खड़े लोग,
  उस छाया को देख डर रहे हैं।
    फूल रही सांसें बढ़ रही धड़कन,
     खड़े खड़े लोग यूँ ही मर रहें हैं। 
कौन जाने छाया ये क्या बला है।
  काल का यह चक्र नहीं टला है।
    सावधान रहिए व घर पर रहिए, 
      इसी में ही तो हम सबका भला है।

गुरुवार, 6 मई 2021

माँ

          
हमको देती है जो अपनी जुबां,
  अद्भुत स्नेहमयी होती  है 'मां'।
    ममता त्याग की वह प्रतिमूर्ति, 
      देती जीवन में हमको स्फूर्ति।
जब कभी भूख से संतप्त होते,
  गोद मां के बैठआंचल भिगोते।
    गिर पड़े तो मां आकर उठाती,
      हमें राहों पर चलना सिखाती।
नींद न आए  लोरियां सुनाती,
  रात को चन्दा मामा दिखाती।
    स्वयं भूखी प्यासी रह जाती,
      बच्चों को भूखा नहीं सुलाती।
प्रथम शिक्षिका मां संस्कार जगाए।
  जीवन में हमको व्यवहार सिखाए ।
    कोटि-कोटि कृतज्ञ रहैं हम मां के ।
      नतमस्तक नमन चरणों में मां के।
""""""""""स्नेही """""""
 
 

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...