ठहर जा वक़्त जरा कुछ दर्द और बाकी है।
हवाओं में भीअभी कुछ सर्दऔर बाकी है।
हवाओं में भीअभी कुछ सर्दऔर बाकी है।
भाई जाना तो है दुनिया से सभी को एक दिन,
पर वक्त के साथ कहीं मेरा एक ठौर बाकी है।
पर वक्त के साथ कहीं मेरा एक ठौर बाकी है।
वक्त के थपेड़ों ने मुझे चलना सिखाया है।
गिर गिर कर सम्भलने का हुनर बताया है।
नहीं हैं कमजोर,बड़े मजबूत हैं इरादे मेरे ,
सपनों का मैंने एक सुन्दर घर सजाया है।
गिर गिर कर सम्भलने का हुनर बताया है।
नहीं हैं कमजोर,बड़े मजबूत हैं इरादे मेरे ,
सपनों का मैंने एक सुन्दर घर सजाया है।
आशाओं के समन्दर में उठ रही हैं लहरें।
हमसे कहती हैं खड़े होने की कोशिश करें।
कहां किसने कभी थामा है वक्त कोअबतक,
हम तो वक्त बदलेंगे तो फिर क्यों शोषित रहें।
हम तो वक्त बदलेंगे तो फिर क्यों शोषित रहें।
आज तोआसमां में काली घटा घिरआई है।
धरती पर वक्त की ये मुसीबतें फिर आई हैं।
पता नहीं कब कहां पर फट जाय ये बादल,
अनहोनी की आशंका से आँख भर आई है।
फर्ज उतना है कि सहिष्णुता जीवित रहे।
जनतंत्र व्यवस्था में मानवता संचित रहे।
देश का हर नागरिक कर्तव्यनिष्ठ बनकर,
अपने मौलिक अधिकारों से वंचित न रहे।
स्वरचित कविता " वक्त """"स्नेही """"
रामनगर नैनीताल (उत्तराखंड )