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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

#पल पल मंगलमय हो।(50)

जो भटक रहे हैं अंधेरों में, थोड़ी रोशनी उन्हें मिले।
कुपथ त्याग कर जीवन में सब सत्य की राह चले।
रूढ़िवाद का अन्त कर,समतामय बन्धुत्व उदय हो।
हर दिवस जन जन काअब, पल पल मंगलमय हो।
                   जागृत हो संवेदनाऐं, सबको सबका स्नेह मिले।
                   वंचित रहे न कोई अब, सबको ही सम्मान मिले।
                   जाति,धर्म,पाखंड मिटा,बुद्ध सा कोमल हृदय हो।
                   हर दिवस जन जन का, हर पल पल मंगलमय हो।
राग द्वेष विकार न हों,करुणा भाव प्रवाह रहे।
सम्यक दृष्टि हो, जीवन में सतत उल्लास रहे।
जीवन के संघर्षों में,वंचित की सदा विजय हो।
हर दिवस जन जन का, पल पल मंगलमय हो।

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

#वंचित स्वर (51)

सर्द हवा हो या हो चिलचिलाती गरमी ,
बहाता निरन्तर पसीना खूब परिश्रमी।
मयस्सर नहीं उसको दो जून रोटी भी,-
फिरभी हौसलों में, नहीं होती कोई कमी।
            सूरत बदलना चाहते हैं, वे इस पहाड़ की,
            सामने खड़ी हैं उनकी, ये पीड़ पहाड़ सी।
            मालिक लपकते हैं,जौंक की तरह शहर में,
            जो अनवरत चूस रहे हैं,लहु उनके हाड़ की।
लाचार मेहनतकशों की,परवाह किसको पड़ी है?
उनके हकों की लड़ाई,अब तक किसने लड़ी है।
देखिए कुछ तो इधर, राजनीति की बदहाली को।
जिसका कतरा कतरा,जमीन पर बिखरी पड़ी है।
             यूं बुत की तरह खड़े रहना,अच्छा नहीं लगता।
             जंग में सिपाही का भागना,अच्छा नहीं लगता।
             कुछ तो सोचना होगा,देश के नव निर्माण के लिए,
             भीड़ में शामिल तमाशा देखना अच्छा नहीं लगता।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

भौनी दा(27)

दगड़ू भौनी दा,जनुहैं भवान सिंह कौंनी।
आज कल अब ऊं बल दिल्ली हौन रौनी ।
हम ननछना बटि स्कूल,एक दगड़ै  गय।
एकै स्कूलम, हम एकै दर्जम दगड़ै रय।
हमुलि गुल्ली डंडा,घुसघुसि दगड़ै खेलि।
बटपन लुुुुकण पणज्यू मार दगड़ै झेलि।
हम एक बटी दस तक स्कूल दगड़ पढ़।
जो साल पास हय और वी साल विछड़।
अपण दद दगै भौनी दा तलि हैंणि नै गय, 
इज बौज्युक लाडिल हम घर पनै रै गय।
साल द्वी साल तक चिठि पतर लिखनै रय।
बखतक दगड़, फिरि हमलै सब भूलि गय।
भौनीदा कैं वेति दिल्लीक हवा रास ऐगे ।
घरपन मेरि मास्टरीक बस एक तलाश रैगे। 
कब ब्या हौय ? यूॅ कब नन तिन हय ?
बचपना दिन अपण हम  सब भूलि गय।
घरपन सैंणिक कचकचाट  सुणनैं रय।
राती ब्याव हम स्वीणोंक जाव बुणनें रैगय ।
येति दिन रात हम दौड़नै रिश्त बड़नैं गय।
य उमरकि किताबक हर पन्न पलटनै रय।
लोगोंल बतायआज भौनी दा घर ऐ रैंई।
अपण दगै ननतिन पहाड़ घुमुहणि ल्य रैंई।
मैं ब्याव एक झप्पाक  मिलहणि क्य गोय।
चहा  पीनैं गपशप  मारनैं झित वैं रै गोय।
उमर बिति हम पहाड़ हैंणि के नि कर सक।
अपण ठाठ-बाट मारनैं रै गय कोरि फसक।







गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

# मुल मुल हंसनै रया (28)

मिठ-मिठ, भौल बुलानें रया।
खितखित,मुलमुल  हंसनै रया।
            खुटों तुमर कभैं कन झन बुड़ौ।
            मूण कभैं क्वे आँस झन पड़ौ।
             सगुन आंखर तुम लेखनैं रया।
             खित खित,मुल मुल हंसनैं रया।
             नौंसाल तुमुहैंण दैंण है जाऔ।
              दूधभात खूब  खैहण है जाऔ।
              अणी जणियां क्वे भूख न रहौ।
              नाजैल भकार तुमरभरीयै रहौ।
अपण -पराय सब देखनैं रया।
खित खित,मुलमुल हंसनैं रया ।
             घर-बौंण डव बोटि हरिया रहैं।
             खल्यत रुपयोंल तुमरभरियै रहैं।
             बट-घट,व्यापारम  बरकत  रहौ।
             धिनाईल ठेकि-डौकौ भरियै रहौ।
दिन-रात भल स्वींण देखनै रया।
खित खित,मुल मुल हंसनै रया।
             तुमूपरि कभैं कैक दोष न लागौ।
             रौल गध्यरोंक छौव कभैं न जागौ।
             खुशि देखिक चौड़ चाकौ है जया।
             सबोंकैं उज्याव तुम दिखानैं रया।
द्यप्तोंक थानम,तुम द्यू बावनै रया।
खित -खित,मुल- मुल हंसनैं रया।
            नौं साल पारि, तुम नौं गीत गाया।
             परदेश जाई छैं,उनुकैं घर बुलाया।
            अपण मुलुक कैं,छोड़ि झन जया।
             ननों कैं रोजगार,तुम एती दिलाया।
फूलदेई घी त्यौहार, एती मनाया।
खित-खित,मुल- मुल  हंसनैं रया।
           बीती बातों कैं अब भूलि जाणौ।
           बखत कैं नौं उज्याव दिखाणौ।
           खेती-बाड़ीक नई नीति बनाणौ।
           भरपूर फसल फल फूल उगाणौ।
नौं साल पारि सब नौं गीत गाया ।
खित-खित,मुल-मुल  हंसनैं रया।
 

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

#महापरिनिर्वाण दिवस #

शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण।
तुम्हें सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण।
         तुमअमर शब्द बीजअंकुरित हो।
          हर हृदय पटल पर पुष्पित हो ।
           उत्साह उमंग से हो ओतप्रोत,
            धम्म चक्र प्रवर्तन परिलक्षित हो।
             तुम नव युग के नव निर्माण कर्ता।
               तुम हो त्रिशरण शील ज्ञान प्रदाता। 
 तुम्हें सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण।
  शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण ।
                तुम स्वतंत्रता के थे पथ प्रदर्शक।
                तुम स्वाभिमान के महाआकर्षक।
                परतंत्रता का वह दुष्चक्र तोड़ने,
                 तुम संघर्षशील अभय पथ दर्शक।
                 भारत संविधान के तुम निर्माता।
                 अर्थशास्त्री थे तुम  विधि ज्ञाता।
    तुम्हें सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण ।
     शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण ।
                  छः दिसम्बर सन् उन्नीस सौ छप्पन।
                   जब क्रांति वीर की रुक गई धड़कन। 
                    जन गण मन का हृदय संतप्त हुआ, 
                    बुझ गया दीप वह मसीहा अमन।
                    दे गया जो वंचितों को अभय मूल मंत्र।
                     समता मय बन्धुत्व से सींचो प्रजातंत्र ।
शाश्वत सत्य है यह महापरिनिर्वाण ।
सादर श्रद्धांजलि! हे अमर प्राण ।
                   


रविवार, 26 अगस्त 2018

🔰एक नया त्यौहार मनाऐं (52)

एक नया त्यौहार मनाऐं,हम खुशियों से परिवार सजाऐं।

कभी राग न  द्वेष किसी से,कभी न हो विद्वेष किसी से।
हिल मिल रहकर देखें सपना,ऐसा लगे  घर  हो अपना।
अगर रूठ कर कोई बिछुड़े  मिलकर सब उसे मनाऐं।
हम एक नया त्यौहार मनाऐं ,खुशियों से संसार सजायें।
      
जाति धर्म की बात न हो,किसी से अशिष्ट संवाद न हो ।
रिश्तों में हो प्रेम समर्पण प्रबुद्ध राष्ट्र को सब हो अर्पण।
समृद्ध राष्ट्र ,समृद्ध समाज को,मिल कर स्वस्थ बनाऐं ।
हम एक नया त्यौहार मनाऐं खुशियों से संसार सजाऐं ।
      
यहां कोई पूरब पश्चिम रहता,कोई उत्तर दक्षिण वासी ।
भाषा वेश रंग भले अलग हों,हम सब हैं भारतवासी ।
भेदभाव का भ्रम तोड़कर,सुन्दर सा उपहार सजाऐं।
एक नया त्योहार मनाऐं खुशियों का परिवार बनाऐं।



शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

🌹प्रातः स्मरणीय व्यक्तित्व -मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा 🌹

उत्तराखंड में शिल्पकारों के प्रेरणास्रोत रहे  हैं स्वoरायबहादुर मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा।वे सम्पूर्ण उत्तराखंड में ही नहीं,अपितु जहाॅ भी प्रवासी शिल्पकार हैं बड़े गर्व के साथ उनकी जयन्ती मना कर उन्हें याद करते हैं और  उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हैं।आज अम्बेडकरी चेतना के फलस्वरूप समाज सुधार के लिए उनके प्रयासों को दृष्टिगत कर उनको उत्तराखंड का अम्बेडकर कहा जाता है।स्वoरायबहादुर मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा जी का जन्म 26अगस्त1887 को अल्मोड़ा में हुआ ।उनके पिताजी का नाम गोविंद प्रसाद तथा माता जी का नाम गोविंदी देवी था।सन् 1892 में प्राइमरी शिक्षा और1902 में हाईस्कूल परीक्षा उन्होंने उच्च श्रेणी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की।प्रतिभा के धनी स्वo हरिप्रसाद टम्टा जी के लिए तत्कालीन परिस्थितियां बड़ी कठिन थी ।जहाॅ  कि एक ओर देश की आजादी के लिए संघर्ष और दूसरी तरफ जातीय अस्पृश्यता का घोर दंश।संघर्ष के इस दौर में उनको भी अपनी भूमिका निर्धारित करनी थी।उन्होंने सन्  1905 में शिल्पकारों की दशा सुधारने के लिए  टम्टा सुधारिणी सभा का गठन किया जो आगे चलकर शिल्पकार सभा के रूप में परिवर्तित  हो गई।तत्कालीन समय पूर्ण रूप से समाज सुधार के दौर से गुजर  रहाथा।कुमाऊऔर गढवाल लोग धर्मांतरण कर रहे थे समाज में    छुआछूत जैसी कई सामाजिक बुराइयाॅ थी।शिल्पकार शोषित और असंगठित थे।
               कुमाऊ गढवाल मेंआर्य समाज जैसी संस्थाओं के माध्यम से धर्मांतरण  रोकने और अस्पृश्यता उन्मूलन के कार्यक्रम चलाए जा रहे थे ।कुमाऊ में स्व.खुशीरामआर्य तथा गढ़वाल में जयानन्द भारती शिल्पकारों के शुद्धिकरण के लिए जनेऊ आन्दोलन कर रहे थे तो इधर स्व हरिप्रसाद टम्टा जी शिल्पकारों के लिए सरकार से  बेहतर शिक्षा की सिफारिश कर रहे थे,और आर्थिक विकास को लेकर संघर्षरत थे।स्व.टम्टा जी ने कई विद्यालय खोल कर शिल्पकारों के लिए शिक्षा का प्रबंध किया।वे एक कुशल  पत्रकार भी थे उन्होंने 1934 में समता साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन कर शिल्पकार समाज को जागरूक करने एवं उनके साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को प्रकाशित करने का कार्य किया।अल्मोड़ा जिला बोर्ड के मनोनीत सम्मानित सदस्य भी  रहे।उनकी प्रतिभा को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने उन्हें 1935 में विशेष मजिस्ट्रेट मनोनीत किया।उन्होंने कई शिल्पकार सम्मेलनों        की अध्यक्षता की सम्मेलनों के माध्यम से शिल्पकारों के लिए भूमि
आवंटन के लिए संघर्ष किया।आज आजादी के सात दशक बाद भी
शिल्पकार वर्ग सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक रूप से उपेक्षित है। उनकोबोट बैंक के रूप में उपयोग किया जा रहा है।आज हरिप्रसाद टम्टा जी की प्रासंगिकता अधिक है उनके जीवन दर्शन को आज समझने की आवश्यकता है ताकि लोगआर्य समाज की जकड़न से    बाहर निकलकरअम्बेडकरीविचारों को समझें।शिल्पकारों को अब  इस दिशामें हमकोअम्बेडकरी विचारों को प्रोत्साहित एवं प्रसारित करने की आवश्यकता है।
        समतामूलक समाज के लिए सही बुद्ध का सत्पथ ही है।यही स्व.मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा जी की मंशा रही होगी।इसी श्रद्धा के साथ उन्हें कोटि-कोटि नमन।


मंगलवार, 21 अगस्त 2018

स्वतंत्रता सेनानी स्व.हरकराम आर्य

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम आर्य एक कर्मठ ,मेहनती एवं एक जुझारू व्यक्तित्व के धनी थे ।वे एक लम्बी उम्र 106वर्ष जीए।उनका जन्म 22 सितंबर 1881 को हुआ था ।उनके पिताजी का नाम पनीराम तथा माता जी का नाम श्रीमती मना देवी था।वे हमको जब अपने बारे में बताया करते थे तो अपने दादा जी कुतुबचंद का जिक्र अवश्य किया करते थे।वे बताते थे कि उनके पूर्वज कोटलिया थे जो गढ़वाल से यहाॅ  आये।यहाॅ तल्ला विरलगाॅव सल्ट आकर लोहारी करते थे ।उनके दादा व पिता जी अच्छे खासे सिद्ध हस्त लोहार थे। पिता स्व. पनीराम व माता मना देवी ने पांच पुत्र दो पुत्रियों को जन्म दिया था ।वे कहा करते थे कि उनकी बहिनें भाबर में रहती थी जो भैंसिये थे ।भाइयों में वे सबसे छोटे थे।सबसे बडे भाई दौलत राम फिर काली राम,  धनीराम हंसरामऔर सबसे छोटे हरकराम थे।हंसराम भी भाबर आ कर बस गये थे केवल चार भाई तल्ला विरलगाॅव सल्ट में रहकर लोहारगिरी करते थे।खेती-बाड़ी का काम बड़े भाई लोग संभाल लेते थे ।हरकराम स्कूल तो नहीं गये पर सामाजिक दर्शन को समझने लगे थे ।उनका मन घर पर नहीं लगता था।1918 के बाद उत्तराखंड में समाज में परिवर्तन का दौर चल रहा था एक ओर देश की आजादी के लिए लोग संघर्ष की राह पर चल रहे थे, दूसरी तरफ समाज में छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ खुलकर लोग आगे आ रहे थे।ऐसे समय पर युवा हरकराम कहाॅ चुप बैठने वालों में थे।दिनरात वे अपने साथियों के साथ जन जागरण के लिए संघर्ष कर रहे थे। कुमाऊ गढवाल मेंआर्य समाज सामाजिक कुरीतियों के लिए संघर्ष कर रही थी ।कुमाऊ में स्व.खुशीरामआर्य तथा गढ़वाल में स्वoजयानन्द भारती आर्य समाज में दीक्षित होकर प्रचार-प्रसार कर रहे थे ।शिल्पकार वर्ग जागरूक हो कर संगठित हो रहा था।जगह-जगह आर्यसमाजी प्रचारक यज्ञोपवीत करवा कर शिल्पकार वर्ग को हिन्दुत्व के लिए खड़ा कर रहे थे।वे उन्हें मूर्ति पूजा से अलग कर अन्धविश्वासों से भी मुक्त कर रहे थे।हरकराम जी भी खुशीरामआर्य के भक्त हो गये।आर्यसमाज के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने लगे ।यह काल जनेऊ आन्दोलन के रूप में एक ऐतिहासिक आन्दोलन हो गया।जगह-जगह सवर्ण वर्ग इस आन्दोलन के विरोध में खड़े होकर शिल्पकार वर्ग पर अत्याचार करने लगे ।खुशीरामआर्य जी इस विरोध का डठ कर सामना किया ।हरकराम जी बताते थे कि कई स्थानों पर सवर्णों का इतना विरोध था कि मारपीट मुकदमे बाजी भी बहुत हुई।वे बताते थे कि इन आन्दोलनों ने उनका जीवन ही बदल दिया।सल्ट में जहां भी कांग्रेसियों की बैठकें होती वे वहां रहते ।शिल्पकार समाज मेंअब वे लोगों के पुरोहित बन कर कर्मकांड किया करते।लोगों को सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की शिक्षा दिया करते थे।1933 में उन्होंने अपना मकान बनवाया मकान में ईडा बारखाम के मिस्त्री भीमराम थे जिनका नाम आज भी मकान के पत्थर पर खुदा हुआ है।1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर सम्पूर्ण देश में पूर्ण स्वराज का आन्दोलन प्रारंभ हो गया ।यह आन्दोलन करो या मरो के साथ चला ।क्रांतिकारी हरकराम जी को भी गिरफ्तार किया गया ।अट्ठारह महीने जेल में रहे फिर उन्होंने समाज में रह कर समाज सुधार का कार्य किया ।
       स्व.हरकराम आर्य क्रांतिकारी थे वे सुधार की अपेक्षा परिवर्तन चाहते थे ।परिवर्तन के मूल्यों को उन्होंने स्वयं अपने जीवन में उतारा।"वे कहते थे कि हमें अपने को सुधारने की निरन्तर कोशिश करनी चाहिए"। समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयाॅ हमारे प्रयास से ही दूर होंगी।शादी विवाह के अवसरों पर मैंने उनको भाषण देते हुए देखा।वे लोगों को समझाया करते थे कि हमें कुरीतियों को छोड़ देना चाहिए ।धूम्रपान नशाखोरी से आदमी अपने स्वास्थ्य खोकर स्वाभिमान भी खो देता है।वे कभी मूर्ति पूजक नहीं रहे।जीवन के अन्तिम वर्षों में वे बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर के विचार और बुद्ध के विचारों से प्रभावित थे।उनका मानना था कि उत्तराखंड में शिल्पकारों का डोली पालकी आंदोलन जनेऊ आंदोलन एक सशक्त आंदोलन रहा है ।इन आंदोलनों ने शिल्पकारों की दशा दिशा बदली।वे मानते थे कि आज अब अम्बेडकरी चेतना की आवश्यकता समाज को ज्यादा है।उनकी इच्छा थी कि वे अम्बेडकरी विचारधारा के साथ काम करें परन्तु स्वास्थ्य अब अनुकूल नहीं लग रहा था। 8 अक्टूबर  1986को स्वतंत्रता संग्राम सेनानीस्व.हरकराम आर्य का देहावसान हो गया।
       4 सितम्बर 2014को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम आर्य जी की मूर्ति विश्व कर्म शक्ति पीठ तल्ला विरलगाॅव सल्ट परिसर में स्थापित की गई  सल्ट विधायक मा.सुरेन्द्रसिंह जीना जी के द्वारा मूर्ति का अनावरण किया गया।अब प्रति वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर विश्व कर्म शक्ति पीठ परिसर में बुद्ध  वंदना के साथ  मनाई जाती है।विगत कई वर्षों से 5सितम्बर सल्ट शहीद दिवस के पूर्व दिवस तल्ला विरलगाॅव में स्वंतंत्रता सेनानी हरकराम जी की मूर्ति की अनावरण तिधि मनाई गई ।माननीय विधायक जीना जी के प्रयास से विश्व कर्म शक्ति पीठ तल्ला विरलगाॅव सल्ट में" स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम  स्मारक" बनाया गया।आज मूर्ति अनावरण तिथि पर गांव के लोगों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम को कोटि-कोटि नमन कर श्रध्दांजलि अर्पित की गई ।

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

श्रद्धांजलि

तुम अटल, विश्वास अटल ,तुम्हारा ज्ञान अटल था ।
काल चक्र के साथ तुम्हारा हरअभियानसफल था।
तुम बढते गये निरन्तर,तुमने कभी हार नहीं मानी।
तुम मानवता से परिपूर्ण  थे निर्भीक स्वाभिमानी।
तुम जनप्रिय जन नायक नव युग प्रेरणा दायक थे।
जाति धर्म सम्प्रदाय से ऊपर राष्ट्र धर्म सहायक थे।
तुम कवि लेखक रचना धर्मी प्रखर वक्ता युगदृष्टाथे।
इस नवभारत निर्माण के तुम निर्भय अभिकर्ता थे।
हो गये आज तुम मौन! काल चक्र भी रुक गया है।
हे अटल !श्रद्धांजलि !ये राष्ट्रध्वज भी  झुक गया है।
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।  !      भावपूर्ण श्रद्धांजलि  !

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

# स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता महापर्व है,इसेआइए मिलकर मनायें।
अमर शहीदों को नमन कर, हम तिरंगा फहरायें।
           प्यारा है हमको ये तिरंगा,अपने प्राणों से भी ज्यादा।
           कभीआंच भी आने न देंगे, ये किया था हमने  वादा।
शान भारत मां की है,सौहार्द कादीपक जलायें।
स्वतंत्रता महापर्व है, इसेआइए मिलकर मनायें।
                    अमर शहीदों को नमन कर हम तिरंगा फह रायें।
                     स्वतंत्रता महापर्व है इसे आइए मिलकर मनाऐं।
 इतिहास के पन्ने पलट कर, नाप लो गहराइयां।
  कैसे थे वे लाल जिन्होंने , दी स्वयं कुर्बानियां।
                   उन शहीदों की धरा को,हम तिरंगों से सजायें।
                  स्वतंत्रता महापर्व है, इसेआइए मिलकर मनायें।
                        
वो गांधी नेहरू चन्द्रशेखर,वीरभगत सुभाषचंद्र बोस।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई,सब में आजादी का जोश।
                  जंगे आजादी फतह की, गीत उनके गुनगुनाऐं ।
                   स्वतंत्रता महापर्व है,इसेआइए मिलकर मनायें।

                           अमर शहीदों को नमन कर, हम तिरंगा फह रायें।

बुद्ध की धरती है भारत,यहाॅ अमन और शांति हो।
समतामय बन्धुत्व लेकरअबधम्म की नव क्रांति हो।

                 प्रबुद्ध भारत विश्व गुरु हो श्रेष्ठता अपनी दिखायें।
                 स्वतंत्रता महापर्व है, इसे आइए मिलकर मनायें।

                            अमर शहीदों को नमन कर हम तिरंगा फह रायें।

सोमवार, 30 जुलाई 2018

# बरषने दो(53)

बरषने दो बादलों को आज जी भरकर ।
आने दो हवाओं को थोड़ा तूफान बनकर।
हम भी देखते हैं कितना दम है इनमेंआज,
खड़े हैं हम भी यहाॅ अपना  सीना तानकर।
                जानते हैं बादल दो-चार दिन बरसेंगे।
                इनको हवायें कहीं उड़ाकर ले जायेंगे।
                छोड़ जायेंगे जमीं अपनी खामोशियां।
                हम ही उनको खुशियाॅ लौटाने आयेंगे।
बादल नहीं होते, मगर झुलसाती गर्मियां-
होती ,ये हाड़ कपकपाने वाली वो सर्दियां। 
सीख लेते हैं बादलों से उड़ना आसमां में,
छोड़कर आ गये हैं जो अपनी हठधर्मियां।
               बहुत देखा है हमने भी बादलों का फटना।
               लोगों काअन्धेरों से भरे  राहों में भटकना ।
               मगर सम्भलते हैं अपनी राहों में वो अक्षर-
               जो भिज्ञ हैं जीवन में स्वयं सन्तुलन रखना।
               

शनिवार, 21 जुलाई 2018

पर्यावरण (54)


 
क्षीण होआवरण तो जनअसहज होता।
मनआवरण की मलिनता को देख रोता।
हर रोज सुन्दर आवरण की चाह लेकर,
मन स्वस्थ रहने को स्वप्न नया देख लेता।
आवरण की हो सुरक्षा रहे सुन्दरता भी। 
सुरक्षाअभियान है दिवस पर्यावरण की।
एक आवरण ही तो है हमारा पर्यावरण ,
जो सुरक्षा कर रही है हर प्राणियों की।

प्रकृति के उपहारों से सुसज्जित है धरा,
देखने की लालसा है इसे सदा हरा-भरा।
चाहते हैं परिपक्वता जन आचरण की।
हो हमारे सामने अचल हिमाल सा खड़ा।
आचरण ही धम्म है ये बात मेरे राष्ट् की।
सुरक्षा अभियान ये दिवस पर्यावरण की।
संकल्प लें अब कभी कोई वृक्ष न काटे,
करेंगे सुरक्षा हम हर एकअभ्यारण्य की।

यहाॅ लोगों ने प्रकृति पर बड़े जुर्म ढ़ाये हैं।
खूब दोहन कर उन्होंनेअपनेघर सजाये हैं।
मौजमस्ती में प्लास्टिक काअक्षय कचडा,
फैलाकर यूँ  बरबादियों के दिन गिनाये हैं।
हमें ही रोकना होगा संकट आपदाओं की।
सुरक्षा अभियान यह दिवस पर्यावरण की।
विश्व पर्यावरण दिवस पर मंगलकामनाऐं। प्रकृति प्रेम होऔर हो संवाद संरक्षण की।



          

रविवार, 8 जुलाई 2018

# बेचारी कविता

गांव से अलग उस बस्ती में, 
  यह बेचारी कविता रहती है। 
     दुत्कार तिरस्कार अपमान -
       वहां बहुत कुछ सहती है।
उसे विरासत में मिला कल,
  एक अदद घर शीलन भरा।
    परिवार समय में समा गया ,
     पहले मां औरअब बाप मरा। 
अब तो  घर  भी उजड़ गया,
  बस खाली  चिंता  है मन में।
    रातों की सिलवट जैसे कुछ, 
     बिखरी  हैं  यादें आंगन  में।
बस्ती की सीमा में  अब  तो,
   पीपल का  तरु उग आया।
     काम से लौटा करती जब वो,
        पाती है उस तरु से छाया।
इस तरुवर  के  नीचे  प्रतिदिन, 
   वह  अ आ क ख पढ़ती है।
    अपने बस्ती के बच्चों के संग ,
      वह मिलकर आगे बढती है।
उसने समय के साथ साथ,
  पढना लिखना सीख लिया।
    अपने मधुर स्वभाव से उसने,
       लोगों का दिल जीत लिया।
आजादी की परिभाषा अब,
    लोगों को समझाती है वह।
     स्वतंत्रता अधिकार हमारा,
      हर बच्चे को बतलाती है वह।
वह पढ़ती है वह लिखती है, -
  हर हक की लड़ाई लड़ती है।
    उस गांव से बाहर उस बस्ती में,
      आज मेधावी कविता रहती है। 
                              


शनिवार, 7 जुलाई 2018

आओ मेरी बस्ती में (56)

संसद को रास्ता यहीं से जाता है।
शायद तुमको याद नहीं।
तुम पिछली बार भी आए थे,
तुमने भी अपने पोस्टर बैनर लगाए थे।
शायद तुमको याद नहीं।
तुम कहते हो भारत अखंड हो ।
भ्रष्टाचारियों के लिए दंड हो।
फिर क्यों भारत खंड खंड हो रहा है ।
संसद निर्द्वन्द सो रहा है ।
निस्तब्धता क्यों है इन वस्तियों में।
क्यों आदमी बेजान हो रहा है ।
शब्दमकड़जाल मत बुनो।
वंचितों के स्वर सुनो।
यहीं अयोध्या है यहीं राम भी।
यहीं गीता यहीं संविधान भी ।
आओ मेरी बस्ती मेरे गांव में ।
उस विशाल पीपल की छांव में।
तुम्हारा तन मन शुद्ध होगा ।
हमारा भारत  प्रबुद्ध होगा ।
शांति अमन मानवता होगी ।
प्रेम बन्धुत्व समानता होगी ।
न कभी किसी में द्वन्द्व होगा।
भारत तभी अखण्ड होगा ।
आओ मेरी बस्ती मेरे गांव में।
उस विशाल पीपल की छांव में।

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

# विश्वास

जब घटाओं के आगोश में आकाश हो ।
मनअकेला तन्हा कोई नआस-पास हो ।
तुमको निर्भय होकर बढ़ना है निरन्तर -
नव सृजन के लिए मन में पूर्णविश्वास हो ।
            लगता है इन घटाओं से कुछ बारिश हो जाय।
            सूखी डाल को फिर कोई वारिस मिल जाय।
            अनगिनत कोपलें फूटें फूलों से चमन महके ।
            हवावों से कह दो अधूरी न ख्वाहिश रह जाय।

मंगलवार, 3 जुलाई 2018

# रखें स्वच्छता चारों ओर

हम रखें स्वच्छता चारों ओर ।
           अपना  घर हो या हो स्कूल, मजबूत हमारे हों उसूल ।
            घर स्कूल की करें सफाई इसी में सबकी छुपी भलाई ।
            बच्चो उठो अब हो गया भोर,रखें स्वच्छता चारों ओर ।
घर को स्वच्छ हर माँ रखती,सभी बच्चों में सद् गुण भरती ।
हमको चलना वही सिखाती।गिर गए अगर तो वही उठाती।
नहीं रहेंगे अब कभी कमजोर।हम रखें स्वच्छता चारों ओर।
         आन स्वच्छता मान स्वच्छता हो सबका अभियान स्वच्छता।
         स्वागत हो इसअभियान का,परिणाम भला हो इम्तिहान का।
         संस्कार जगा आलस्य छोड़,हम रखें स्वच्छता चारों ओर ।
        

रविवार, 1 जुलाई 2018

# मौत की डगर

जीएमओ की बस गिर गई, सैंतालीस लोग मर गये ।
एक झटके में कितने, परिवारों के सपने बिखर गये।
नैनीडांडा क्वीन गांव के पास ही, हुआ है यह हादसा ।
हंसते हुए निकले थे घरों से, क्यों काल आ गया सहसा ।
मच गई चित्कार खाई में, कुछ मौन हुए कुछ घायल थे ।
मरने वालों में, कुछ महिला बच्चे बूढ़े जवान सामिल थे।
इस होनी को अनहोनी को, हम भाग्य कहैं या भूल कहैं ।
किस किस को दोषी ठहरायें ,हम कैसे गुनाह कबूल करें ।
उत्तराखंड पृथक राज्य हो,हमने कितने सपने संजोए थे ।
उन जनसंघर्षों में सहभागी होकर कितने लाल खोये थे ।                                 भूल गये विकास की राहों को,दूर दराज पहाड़ी गावों को।
              बिजली पानी सड़क परिवहन शिक्षा की समस्याओं को ।
             बस नेता बनने की चाहत में,  सब मर्यादाएं तोड़ चुके हैं ।
             हैं चोर चोर मौसेरे भाई ,आपस में  सब गठजोड़ चुके हैं ।
           धिक्कार है ऐसे नेताओं को, यहाॅ जो झूठे गाल बजाते हैं ।
          सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली, कभी हज करने में न सरमाते हैं।
            नेता नैतिकता का पाठ छोड़ दे,तब सत्ता का मद चढ़ता है।
      सरकारों की नाकामी से ही यहाॅ अपराधों का दर बढ़ता है ।
हम भी देश के नागरिक हैं, हमभी हैं उतने ही उत्तरदायी ।
जीवन है अनमोल सभी का ,क्यों  करें कभी लापरवाही ।
घटना से आहत मेरा मन अर्पित करता है ये शब्द सुमन ।
हे चिरविश्रामी -शांति- शांति -शान्ति हो शांति नमन ।


शुक्रवार, 22 जून 2018

#वंचित स्वर # हल्ला बोल

सरकार चलाओ ,हल्ला बोल कर ।
सरकार गिराओ ,हल्ला बोल कर।
          उनका भी हल्ला,इनका भी हल्ला ।
          आपस में झल्ला, जनता को बहला ।
सब के सब हैं,एक थैली के चट्टे बट्टे।
यूॅ ही चला रहे हैं ,राजनीति के सट्टे ।
           ये  कभी इधर हैं, तो कभी उधर हैं।
            पता नहीं है कि कब कौन किधर हैं ।
गिरगिट की तरह ,खूब रंग बदले हैं ।
ये धरम जाति की खूब चाल चले हैं ।
             इनको  बस कुर्सी की हवस होती है।
             बेचारी जनता तो जीवन भर रोती है ।
क्या सोच सके हैं क्यों बंचित जन है ?
नेता के पास कितना संचित धन है ? 
              अब उठ जा तू भी ये हल्ला बोल ।
               सोच समझकर अपना मत तोल ।

गुरुवार, 21 जून 2018

# नास्तिक बोलता है ----(60)

  • क्यों तुम मौन हो? तुम क्योंअसमर्थ हो? 
पत्थरों में खोजते क्यों जीवन केअर्थ को।

बाहर भूखी भीड़ है बेबस लाचार खड़ी ,

बेजान पत्थरों पर उनकी आस्था जड़ी।

मकडजाल शब्दों के तथ्य हैं तर्कों से परे।

संवेदन हीन भीड़ में सबके सब हैं बहरे।

मुश्किल है समझाना परअसम्भव भी नहीं।

आस्तिक से नास्तिक हो जाना हैअच्छा कहीं।

कहता है जाग जाओ,भीड़ के पीछे न जाओ।

शिक्षित बनो तर्क करो जीवन में संघर्ष करो।

नास्तिक जो तर्क करता बुद्धि से स्वीकारता है।

स्वयं दीप बन कर नित्य जीवन को सवांरता है।

सबको यहां न्याय मिले और न कोई बंचित रहे।

वह नास्तिक जो बोल रहा उम्र भर जीवित रहे।

बुधवार, 20 जून 2018

# विश्व योग दिवस

आज विश्व योग दिवस के आयोजन पर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में लगभग पचास हजार लोगों के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी योगाभ्यास करेंगे ।यह पहली बार है इसलिए यह ऐतिहासिक ही होगी ।योग का आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रयोग होता आया है परन्तु आज योग के अर्थ का विस्तारीकरण हुआ है ।योग का सामान्य अर्थ है जोड़ना ।  
             आर्थिक क्षेत्र में योग का अर्थ जोड़ने से लगा कर राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना  है ।सामाजिक क्षेत्र में बहुत सी बुराइयाॅ हैं जो समाज को तोड़ते रहे हैं योग के माध्यम से समाज के हर वर्ग को यौगिक क्रियाओं का ज्ञान देकर अखण्ड समाज बनाने की कोशिश में योग को  माध्यम बनाना  है ।इसी प्रकार राजनीति की स्थिति में भी सुधार की जरूरत है ताकि व्यक्तिगत हितसाधना से ऊपर उठकर मजबूत राष्ट्र साधना के लिए सबको तैयार करना है ।
            शब्दों के मकड़जाल में फंसी जनता अभी कुछ भी नहीं समझ पा रही है ।क्योंकि आम आदमी विकट आर्थिक स्थिति से जूझ रहा है ।साम्प्रदायिकता व जातीयता का नंगा नाच की घटनाओं पर अंकुश नहीं लगता दिखा है ।राजनीति सत्ता हासिल करने के लिए तोड़ फोड़ खरीद फरोख्त कई अनैतिक साधनों का प्रयोग करते दिख रहा है ।व्यक्ति का योगी बनना इतना सरल नहीं दिखता ।योगी जब सत्ता लोलुप होंगे तो योग का अर्थ राजनीतिक ज्यादा दिखाई देगा ।
     चलो जो भी है योग सीखने की कोशिश करें ।अपने को स्वस्थ बनाए ।निरोगी बनायें।

          

रविवार, 17 जून 2018

हमारा त्यौहार हमारा राष्ट्र

आते हैं त्यौहार बहुत कुछ इनके हैं कुछ उनके हैं ।
देते हैं संदेश प्यार का त्यौहार भले ही जिनके हैं ।
             धर्म एक है राष्ट्र एक है पंथ अनेकों हो सकते हैं ।
              मानवता के लिए हम प्राण निछावर कर सकते हैं।
फिर क्यों नफरत क्यों ए झगड़े हमआपस करते  हैं ।
धर्म जाति के तुच्छ अहंकार से भाई भाई लड़ते हैं ।
               ईद दिवाली होली क्रिसमस और बैसाखी रक्षाबंधन ।
                राष्ट्रीय पर्व हों सभी हमारे सभी करें हम अभिनन्दन ।

रविवार, 10 जून 2018

# स्कूल गीत #

है शहर के आस-पास,गांव में सबसे प्यारा ।
कोलाहल से दूर सुरक्षित है इस्कूल हमारा ।
सुन्दरता में यहां सैंकड़ों कैसे वृक्ष हरे भरे हैं।
कहीं लीची ,कहीं आम के सुन्दर पेड़ लदे हैं ।
प्रदूषण से मुक्त यहां पर,है पवन की धारा -
कहती है हर सुविधा से है ये इस्कूल हमारा ।
आमों की बगियों में जब प्यारी कोयल गाती।
बच्चो को मिलजुल रहने का वो संदेश सुनाती ।
हिलियन्स एकेडमी नाम से,है इस्कूल हमारा ।
है शहर के आस-पास ही, गांव में सबसे प्यारा ।
ममतामयी,मृदुभाषी सब,शिक्षिकाऐं हैं हमारी  ।
खूब पढ़ाती, खेल सिखाती,बातें करती प्यारी।
राष्ट्रीय पर्व पर हम मिलकर सब ध्वज फहराते ।
कदमताल के साथ हम राष्ट्र प्रेम के गीत सुनाते ।
सबका गौरव, है स्कूल वह जहांअमर है स्वच्छता ।
यही कामना करते हैं कि,खूूब मिले हमें सफलता ।


मंगलवार, 29 मई 2018

# मैं नहीं आप# मिट जाये संताप # (61)

हम चिंताओं के बोझ तले दबकर- 
रातभर सोने का उपक्रम करते हैं ।
और प्रातःअलसाई आँखों से- 
अपने मित्रों को गुडमार्निग का संदेश भेजकर,
 दिन की शुरुआत करते हैं। 
लेकिन सारा दिन चिंता में डूबे रहते,
चिन्ताओं से मुक्ति पाने के लिए-
पूजा वंदना, धूप बत्ती करना नहीं भूलते।
चिंताऐं धीरे-धीरे हमारे व्यवहार में,
परिवर्तन के कारण बन जाते हैं।
हम असामाजिक से होने लग जाते हैं ।
इसीलिए हमअस्वस्थ भी हो जाते हैं ।
हमारी अस्वस्थता-
हमें समाज से पृथक कर देती है ।
चिंता मुक्ति के कारण ढूंढने लगती है ।
सच तो यह है कि हम सदा ,
अपने बारे में ही सोचते हैं।
 दूसरों के बारे में नहीं सोचते हैं।
यदि हम दूसरों की सहायता करेंगे ,
तो दूसरे भी निश्चित हमारी सहायता करेंगे ।
इसी सकारात्मक सोच के साथ -
हम चिन्ताओं से मुक्ति पा सकेंगे।  
धार्मिक व्यवहार सेअधिक ,
सामाजिक व्यवहार में बदलाव ला पायेंगे । 
***** मैं नहीं आप,मिट जाये संताप *****

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...