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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

मैं कैसे भूलूं ?(पी )

""""मैं कैसे भूलूँ"""""
तुमको !और-
तुम्हारी स्नेहिल मुस्कान को,
मैं कैसे भूलूं ?
तुम तो-क्षितिज के पार चली,
मैं तुमको कैसे छूं लूं ?
तुम कल तक-
 मेरे साथ खड़ी थी,
कोरोना से जंग लड़ी थी।
मुझे हौसला देते देते,
तुम स्वयं जंग हार गई।
मुझको तुम पछाड़ गई।
अबअकेला मैं हूँ पथ में, 
मैं कैसे इससे लड़ पाऊंगा।
घिरा घटाओं से आसमां,
प्रतिबिंब कैसे पकड़ पाऊंगा।
मेरा संयम !जोअभी शेष है।
यह वर्तमान !यही विशेष है।
स्मृति स्नेहिल ,
नव काव्य रचा लूं।
स्मृति शेष को,
अब खूब सजा लूं
""""""""स्नेही """"""""


शनिवार, 24 अप्रैल 2021

तंत्र को रोना(पी)

""""तंत्र को रोना """"""
मृत्यु आज  सामने खड़ी हमें डरा  रही।
  प्रकृति भिन्न रूप में छड़ी हमें दिखा रही।
    वीभत्सता मृत्यु की कथा भी कुकृत्य की, 
      कोरोना के नाम पर सरकार बलि चढ़ा रही।
          मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
धर्म जाति नाम पर भी राजनीति चल रही।
  प्रजातंत्र में अनीति खूब  फूल  फल  रही।
    चारों ओर पड़ रही कोरोना कहर की मार,
'      अच्छे दिनों कीआशा व्यवस्था विफल रही।
          मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
शिक्षा व स्वास्थ्य की दशा देश में बिगड़ गई।
  सरकार के इस तंत्र मेंशोषण प्रवृत्ति बड़ गई।
    मुश्किल है शोषण रोकना जनता के सजग हुए,
      जाग कर बदलनी होगीअब राष्ट्र की दिशा नई।
        मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
अब समस्त जनता का इस तंत्र को रोना हुआ।
  एक-एक सांस के लिए जनता को मरना हुआ।
    जर जर व्यवस्था स्वास्थ्य की जहां लोग मर रहे।
      लाशों की दलाली में ये सत्ता सीन पेट भर रहे।
   मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही है।

   """"""""""""""""स्नेही """"""""""""

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

फिर लौट आया कोरोना (पी)

""""फिर लौट कर आया""""
फिर लौटआया काल बनकर कोरोना।
  जिसके लिए है हर आदमी को रोना।
    लौकडाउन से बेबसी का आलम ऐसा,
      जान बचाने को नहीं मिल रहा कोना।

हो गई है दहशत आदमी के दिल में।
  फंस गयाआज वह बड़ी मुश्किल में।
    हर तरफ है कोरोना का कहर पसरा,
      जरा देखिए वह छुपा किस बिल में।

कितने ही घर जिनका चमन लुट गया।
  कितने ही साथियों का संग छूट गया।
    लाशों में लगा है यहां लाशों काअम्बार,
     श्मशानों में लाशों का भी दम घुट गया।

इनआँखों ने देखा है मौत का नजारा।
  मत पूछो कितना तड़फा दिल बेचारा।
    मुसीबत में अच्छा नहीं विचलित होना,
      धैर्य ही है सबका यहां एक मात्र सहारा। 
"""""""""""स्नेही """"""""




शनिवार, 17 अप्रैल 2021

फिर आ जाना***स

श्रेय-प्रेय झंझावातों से मुक्त, 
चिर विश्राम में हो गई सुसुप्त ।
जागोगी ! धरती में पद रखना,
तुम स्वप्निल रथ से उतरना।

प्रिये आकर ज्योति जला जाना, 
तुम फिर सृजन पर्व मना जाना।

कर्मभूमि है शक्ति पर निर्भर,
चलना होता है सम्भलकर।
तन दुर्बल होकर थक जाता,
जीवन पथ में रुक जाता है।

विश्राम करे फिर कुछ पल तन।
तभी कर सकते हैं शक्तिअर्जन। 

तुम यादों का भंडारण कर गये, 
यूँ हमसे हंसते हमसे बिछुड़ गये।
हमको तो पल पल होगा स्मरण ,
बड़ा मुश्किल है करना विस्मरण।

तुम आकर ज्योति जला जाना, 
तुम फिर सृजन पर्व मना जाना ।



रविवार, 11 अप्रैल 2021

मेरी गठरी (पी)

""""""मेरी गठरी """"
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी। 

बड़े जतन से रखा मैंने इसेअब तक।
  ऐसे ही रखूंगा सांस चलेगी जब तक।
    खट्टे-मीठे इसमेंअनुभव हैं जीवन के।
      दर्द भरी हैं साँसें इसमें उत्पीड़न के।  
       भावों से भर पूर सजाकर बांधी गठरी।
         सौंप रहा हूँ तुमको मैं यह अपनी गठरी।
       
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी।

मैली कुचैली जैसी भी है मेरी ही है।
  भारी हल्की जैसी भी है मेरी ही है।
    इसमें कितने दर्द भरे हैं कैसे कह दूँ।
     कितनों को एहसास कराए कैसे कह दूँ।
      तुमसे जितना मिला उसीकी है ये गठरी।
        सौंप रहा हूँ तुमको मैं यह अपनी गठरी।
        
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी।


प्रेम बाती(पी)

""""""""प्रेम बाती """""
मेरे दिल मेरी धड़कन मेरे ईमान में है जो। 
मेरे जीवन की हर सुबह हर शाम में है जो।
प्रेम सागर में उठती हुई लहरों का स्पन्दन,  
सम्यकता भरी प्रेम की  मुस्कान में है जो।

शायद यही चाहत मेरे प्रेम का इजहार हो।।
धड़कनों में  बेताबी किसीका इन्तजार हो।
दिल में जो कसक टीस उठती न देखने में,
शायद वही मोहब्बत  किसी का प्यार हो।

तोड़ तिमिर के द्वार जब मैं राह पर निकला।
राह चिकनाथा बहुतऔरमैं राह में फिसला।
हालात खुद की देख सोचता सहारा मिले, । संघर्ष की राह में वो प्रेम का प्रतिफल मिल।

यूँ बहुत हैं इस दुनियां में मगर तुम एक थी।
खूबसूरत,समझदार व बहुत सरल नेक थी।
तुम्हारे मुस्कुराने से बदली है ये दुनियां मेरी,
मुस्कुराते राह बताना तुम्हारी अदा एक थी। 
 

अनछुए पन्ने(&)

अभी इतिहास केअनछुए पन्ने हैं बाकी।
  कुछ सवालों के जबाब ढूढने हैं बाकी।
   राष्ट्रभक्तों से इतिहास यहां भरा पड़ा है,
    उनकी राष्ट्रभक्ति के प्रमाण ढूंढ़ने हैं बाकी।

सोने की चिड़ियां भारत की सुनी कहानी।
  देशी हुकमरानों ने लूटी इसकी जवानी।
    मुकद्दर बेच शहनशाह होने की ख्वाहिश, 
       लुट गई विरासत हमको मिली  गुलामी।

सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े।
  जातियों की ऐंठन में अभीतक हैंअकड़े।
   आजादी की जंग में नहीं धर्म जात देखी,
     मगर इतिहास में कुछ रह गये हैं पिछड़े।

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

कोरोना महाकाल। स

हों धर्म गुरु या भक्तजन,
   कोरोना के हैं सभी चपेट में।
   अस्पतालों में जनता बेचारी,
      हैं सब डाक्टरों की लपेट में।

भोलेनाथ चुपचाप हिमाल में,
  राम लला का यही हाल है।
    कुम्भ में डुबकी लगान  कुछ,
     सामने खड़ा कोरोना काल है।

आ गई घड़ी अब संयम की,
  मजबूत इरादे कर लेते हैं।
   मानवता के हित हम सब,
    सत्पथ पर बुद्ध के चलते हैं।

विश्वास स्वयं का जाग उठे,
  कर्तव्य परायणता पनप उठे।
   ज्ञान विज्ञान के शोध कर्म कर,
    बांट लें शान्ति के फल मीठे।

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

मन बहल जाता है (10)

उठाता हूँ कलम तो मन बहल जाता है।
जयभीम से मेरा कदम सम्भल जाता है।
मेरा जय भीम है उन पाठकों को अपने,
जिनके हौसलों से भय निकल जाता है।

लिखते रहें अभी विमर्श है बिखरा हुआ।
वंचितों का इतिहास भी है बिसरा हुआ।
कुछ हौसलाअफजाई  हो इस संघर्ष में,
यहां चारों तरफ मनुवाद है पसरा हुआ।

कंटक भरे पथ आज सारे छोड़ दो तुम ।
चलो उस राह जहां हित खोज लो तुम।
हल-चल तो होगी ही यहां इस समन्दर में,
हौंसले के साथ एक पत्थर फैंक दो तुम।
"""""""""स्नेही """"""

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

वंचित के स्वर (पी)


जोआदमी जीवन के घुमावदार राहों पर,
जीर्ण क्षीर्ण परम्पराओं के,
अनसुलझे पहेलियों के भारी बोझ लेकर अंधेरों से गुजरता है।
वोआदमीअपनी छाया से डरने लगता है।
प्रश्न करने से कतराता है।
स्वयं को भाग्य भगवानभरोसे छोड़ देता है।
शायद इसी लिए वह वंचित रह जाता है।

जब आदमी के जीवन में
अन्धेरे को चीरता हुआ उजाला आता है।
उसका अस्तित्व गरमाता है।
वह कुछ सपने देखने लगता है ।
अपने को ताकतवर समझकर,
उसमें स्वाभिमान जागने लगता है।
तभी वह आदमी वंचितों के न्याय के लिए संघर्ष करने लगता है ।
'अ'से अम्बेेेडकर जानने लगता है ।
जय भीम का अर्थ समझने लगता है।
तभी !वंचित आदमी-
अंधेरों से लड़कर,दुश्मनों से भिड़कर, 
कुपरम्पराओं को तोड़कर,
आदमी से आदमी को जोड़कर।
संघर्ष के लिए अग्रसर होता है ।

रविवार, 4 अप्रैल 2021

चुनावी नशा. स

है गजब का नशा चुनावी,जो मतदान के बाद उतरता।
पी ली कभी जोअधिक तो,कुछ वक्त उतरने में लगता।

आम,मध्यावधि या उपचुनाव,रहता इनमें सब प्रभाव।
ग्राम प्रधान एम पी,एम एल ए,है सबका यही स्वभाव। 

हर चुनाव वोटों की खेती,जाति धर्म के बिना न होती।
नशे में बहकते कदम नेता के देख बेचारी जनता रोती। 

उड़ान नशे में भरते हैं नेता,नहीं दिखाई देता आसमान।
लुड़क पड़ते चन्द कदमों पर उन्हें दिखाई देता श्मशान।


कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...