""""मैं कैसे भूलूँ"""""
तुमको !और-
तुम्हारी स्नेहिल मुस्कान को,
मैं कैसे भूलूं ?
तुम तो-क्षितिज के पार चली,
मैं तुमको कैसे छूं लूं ?
तुम कल तक-
मेरे साथ खड़ी थी,
कोरोना से जंग लड़ी थी।
मुझे हौसला देते देते,
तुम स्वयं जंग हार गई।
मुझको तुम पछाड़ गई।
अबअकेला मैं हूँ पथ में,
मैं कैसे इससे लड़ पाऊंगा।
घिरा घटाओं से आसमां,
प्रतिबिंब कैसे पकड़ पाऊंगा।
मेरा संयम !जोअभी शेष है।
यह वर्तमान !यही विशेष है।
स्मृति स्नेहिल ,
नव काव्य रचा लूं।
स्मृति शेष को,
अब खूब सजा लूं
""""""""स्नेही """"""""