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रविवार, 11 अप्रैल 2021

मेरी गठरी (पी)

""""""मेरी गठरी """"
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी। 

बड़े जतन से रखा मैंने इसेअब तक।
  ऐसे ही रखूंगा सांस चलेगी जब तक।
    खट्टे-मीठे इसमेंअनुभव हैं जीवन के।
      दर्द भरी हैं साँसें इसमें उत्पीड़न के।  
       भावों से भर पूर सजाकर बांधी गठरी।
         सौंप रहा हूँ तुमको मैं यह अपनी गठरी।
       
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी।

मैली कुचैली जैसी भी है मेरी ही है।
  भारी हल्की जैसी भी है मेरी ही है।
    इसमें कितने दर्द भरे हैं कैसे कह दूँ।
     कितनों को एहसास कराए कैसे कह दूँ।
      तुमसे जितना मिला उसीकी है ये गठरी।
        सौंप रहा हूँ तुमको मैं यह अपनी गठरी।
        
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी।


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