""""तंत्र को रोना """"""
मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही। प्रकृति भिन्न रूप में छड़ी हमें दिखा रही।
वीभत्सता मृत्यु की कथा भी कुकृत्य की,
कोरोना के नाम पर सरकार बलि चढ़ा रही।
मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
धर्म जाति नाम पर भी राजनीति चल रही।
प्रजातंत्र में अनीति खूब फूल फल रही।
चारों ओर पड़ रही कोरोना कहर की मार,
' अच्छे दिनों कीआशा व्यवस्था विफल रही।
मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
शिक्षा व स्वास्थ्य की दशा देश में बिगड़ गई।
सरकार के इस तंत्र मेंशोषण प्रवृत्ति बड़ गई।
मुश्किल है शोषण रोकना जनता के सजग हुए,
जाग कर बदलनी होगीअब राष्ट्र की दिशा नई।
मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
अब समस्त जनता का इस तंत्र को रोना हुआ।
एक-एक सांस के लिए जनता को मरना हुआ।
जर जर व्यवस्था स्वास्थ्य की जहां लोग मर रहे।
लाशों की दलाली में ये सत्ता सीन पेट भर रहे।
मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही है।
""""""""""""""""स्नेही """"""""""""
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