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गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

वंचित के स्वर (पी)


जोआदमी जीवन के घुमावदार राहों पर,
जीर्ण क्षीर्ण परम्पराओं के,
अनसुलझे पहेलियों के भारी बोझ लेकर अंधेरों से गुजरता है।
वोआदमीअपनी छाया से डरने लगता है।
प्रश्न करने से कतराता है।
स्वयं को भाग्य भगवानभरोसे छोड़ देता है।
शायद इसी लिए वह वंचित रह जाता है।

जब आदमी के जीवन में
अन्धेरे को चीरता हुआ उजाला आता है।
उसका अस्तित्व गरमाता है।
वह कुछ सपने देखने लगता है ।
अपने को ताकतवर समझकर,
उसमें स्वाभिमान जागने लगता है।
तभी वह आदमी वंचितों के न्याय के लिए संघर्ष करने लगता है ।
'अ'से अम्बेेेडकर जानने लगता है ।
जय भीम का अर्थ समझने लगता है।
तभी !वंचित आदमी-
अंधेरों से लड़कर,दुश्मनों से भिड़कर, 
कुपरम्पराओं को तोड़कर,
आदमी से आदमी को जोड़कर।
संघर्ष के लिए अग्रसर होता है ।

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