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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

बन गई काल हिमानी ** स


प्रकृति केअनेक रूप,छाया कहीं कहीं है धूप।
जंगल नदी पहाड़ हर,पठार भी इसके स्वरूप।
कहींअतल समतल कहीं,ये बड़े बड़े पहाड़ हैं।
कहीं तलहटी गुफा कहीं,ये घुमावदार पठार हैं।

अनुपम छटा प्रकृति की,जो लगे रानी रूप की।
विकृत जो हुई कभी,लगी कालाग्नि कुरूप भी।
सुन्दर मुकुट हिमाल जो,उत्तराखंड की ढ़ाल है।
जनपद चमोली के लिए,आज बनी महाकाल है।

सात फरवरी इक्कीस को,ऐसी घटी यहआपदा। 
कई लोग हुए हैं जमींदोज,और कई हुए लापता।
बर्फ से लदे शिखर,हिमनद कई यहां हैं ढ़के हुए। 
ताप जब बढ़ा तो हिमनद बहे उफान लिए हुए।

जरा देखिए तो प्रकृति की प्रकृति भी अजीब है।
कहते हैं लोग यहां स्वर्ग और नर्क सब नसीब है।
जी रहा है चैन से यहां  उम्र कम है सौ साल भी।
आपदाओं से घिरा कोई भेंट चढ़ जाता काल की।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

मेरा गांव। स

कल तक था गांव जहां,शहर वहां हो गया।


कल तक था गांव जहां शहर वहां हो गया।
आज चकाचौंध में वो गाँव यहां खो गया।

संसार  के भूल भुलैया में फंसा है आदमी,
कोई मिला हँस दिया दूर हुआ भुला दिया। 
 
पनघट की रौनक चिड़ियों का शोर कहीं।
नैसर्गिकता देख मन भाव विभोर होगया।

बदल गया सब कुछ अब सब नया हो गया। कल तक था गांव जहां,आज शहर हो गया।

ऊंची अट्टालिकाऐं देखकर मन घबराता था।
अब तो नीलाआसमां छूने का मन हो गया।

छोड़ कर अपनों  को घर, सब शहरआ गये,
माता-पिता के बिना साथ अधूरा हो गया है।

 

उजाला हो गया ***(पी)

""""""उजाला हो गया """"""""
रात काअवसान हुआ,और उजाला हो गया।
खूब उजली मोतियों को  हार में पिरो गया। 
क्रांति की मशाल जो भीमराव जला गया ।
बहुजनों को बुद्ध का धम्म पथ दिखा गया। 
कृतज्ञता प्रकट कर, वह बीज नया बो गया।
रात का अवसान हुआ,और उजाला हो गया

तू नया अक्षर तलाश,और शब्द नया तराश।
स्वयं सम्यक कर्म से ,लोक में जगा विश्वास।
वह रात रात जाग कर,अक्षर रहा तलाशता।
इतिहास नया लिख गया,उसकी ये महानता।
लक्ष्य दे गया विशाल,जगा गया वो अन्तराल।
काट करके फैंक गया बंदिशों का तुच्छ जाल।

बुनियाद हो मजबूत समतामूलक समाज की।
प्रबुद्ध राष्ट्र के लिए हो मुखर पुकारआज की।
ज्ञान से विज्ञान का युगअब निराला हो गया।
रात काअवसान हुआऔर उजाला हो गया ।
रूढ़ियों से आज भी इन्सान कुचला जा रहा।
भगवान के ही नाम पर पाखंड रचा जा रहा।

पहचान भीम ज्योतिबा कबीर पेरियार को। 
चन्द्रशेखर भगतसिंह सुभाष के विचार को।
अज्ञानता से तू निकल समाज कोअभेदकर।
लिख गये हैं संविधान भीमरावअम्बेेेडकर।
 मान और सम्मान हक  वंचितों को दे गया। 
 रात का अवसान हुआऔर उजाला हो गया।


सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

एक नागरिक ***स

जनवरी का महीना,बाहर बहुत ठंड ।
चारोंओर धुंध ही धुंध।
आस-पास कोई नजर नहीं आ रहा था। 
इक्का-दुक्का गुजरने वाला भी मूंह ढ़का हुआ जा रहा था , 
कोई किसी को नहीं पहचान पा रहा था।
रेलवे स्टेशन की तरफ भी-
धुंध का कुछ ऐसा ही हाल था।
इसीलिए गाड़ियों के आने में विलम्ब का सवाल था।
मुसाफिरों के लिए सरकारी अलाव जल रहा था।
अलाव के पास एक नव जवान बीड़ी फूक रहा था।
खांसते हुए मुड़कर पीछे दीवार पर थूक रहा था।
जहां लिखा था "स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत"
मैं कुछ सवाल करने की चेष्टा कर ही रहा था,
कि वह तपाक से बोल पड़ा सरकार !
राशन कार्ड,वोटर कार्ड,पैन कार्ड,
सारे दस्तावेज हैं मेरे पास।
क्या पहचान के लिए कुछ और चाहिए खास।
मैंने कहा भाई कहां है आपका निवास ? 
उसने कहा मैं एक पथिक हूँ निवास रहित हूँ।
घर नहीं है तो क्या? 
मैं भारत का एक नागरिक हूँ।
फुटपाथियों का मालिक हूँ।









कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...