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सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

मेरा गांव। स

कल तक था गांव जहां,शहर वहां हो गया।


कल तक था गांव जहां शहर वहां हो गया।
आज चकाचौंध में वो गाँव यहां खो गया।

संसार  के भूल भुलैया में फंसा है आदमी,
कोई मिला हँस दिया दूर हुआ भुला दिया। 
 
पनघट की रौनक चिड़ियों का शोर कहीं।
नैसर्गिकता देख मन भाव विभोर होगया।

बदल गया सब कुछ अब सब नया हो गया। कल तक था गांव जहां,आज शहर हो गया।

ऊंची अट्टालिकाऐं देखकर मन घबराता था।
अब तो नीलाआसमां छूने का मन हो गया।

छोड़ कर अपनों  को घर, सब शहरआ गये,
माता-पिता के बिना साथ अधूरा हो गया है।

 

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