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मंगलवार, 14 जुलाई 2020

बेबस आदमी***(पी )


"""""बेवस आदमी """""
कोरोना वाइरस को,देख कर डराहुआ ,
बड़ी मुश्किल में है, आज कलआदमी।
गांव घर शहर में , कोरोना के  कहर में,
बहुत मजबूर हो गया है,मजदूर आदमी ।

कल था जोकुछ पास,सबकुछ खोगया है,
भूखा पेट सो रहा है, काम दारआदमी।
भगवान नाम पर, पाखंड का काम कर,
ठगा जा रहा है आज, ईमानदार आदमी।

दुख सुख जीवन में ,आते धूप छांव जैसे,
काट रहा दिन यहाॅ , बेबसी में आदमी ।
कोरोना को रोना ही है, खाली पेट घर में,
थाली बजा रहा आज,हर भूखा आदमी ।

जीना है तो जंग उसे,लड़ना ही होगाअब।
चुपचाप बैठा है जो,कायर है वो आदमी।
दीप खुद बन कर,जलना है खुद उसे,
कल को महान होगा, वही एक आदमी ।

कालचक्र घूमरहा,कोरोना के नाम पर, 
सामाजिक दूरी अब, रख रहा आदमी।
छुआछूत भेदभाव, कलंक था माथे पर,
मूंह छुपाकर आज,भाग रहा आदमी ।

कांटों से डरो नहीं

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