फूलों का गर शौक हैतो काटों से डर कैसा।
इरादा मजबूत हैतो ख्याल ये मुकद्दर कैसा।
कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में,
साथ न हो हमसफ़र का तो ये सफर कैसा।
राग में डूबे रहो तो मन में ये अनुराग कैसा।
छल कपट प्रपंच हैं भीतर फिर त्याग कैसा।
जागृत नहीं प्रज्ञाऔर चित अशुद्ध रहता हो,
गर्व न हो जिस पर हमें फिर वो काम कैसा।