उत्तराखंड में शिल्पकारों के प्रेरणास्रोत रहे हैं स्वoरायबहादुर मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा।वे सम्पूर्ण उत्तराखंड में ही नहीं,अपितु जहाॅ भी प्रवासी शिल्पकार हैं बड़े गर्व के साथ उनकी जयन्ती मना कर उन्हें याद करते हैं और उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हैं।आज अम्बेडकरी चेतना के फलस्वरूप समाज सुधार के लिए उनके प्रयासों को दृष्टिगत कर उनको उत्तराखंड का अम्बेडकर कहा जाता है।स्वoरायबहादुर मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा जी का जन्म 26अगस्त1887 को अल्मोड़ा में हुआ ।उनके पिताजी का नाम गोविंद प्रसाद तथा माता जी का नाम गोविंदी देवी था।सन् 1892 में प्राइमरी शिक्षा और1902 में हाईस्कूल परीक्षा उन्होंने उच्च श्रेणी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की।प्रतिभा के धनी स्वo हरिप्रसाद टम्टा जी के लिए तत्कालीन परिस्थितियां बड़ी कठिन थी ।जहाॅ कि एक ओर देश की आजादी के लिए संघर्ष और दूसरी तरफ जातीय अस्पृश्यता का घोर दंश।संघर्ष के इस दौर में उनको भी अपनी भूमिका निर्धारित करनी थी।उन्होंने सन् 1905 में शिल्पकारों की दशा सुधारने के लिए टम्टा सुधारिणी सभा का गठन किया जो आगे चलकर शिल्पकार सभा के रूप में परिवर्तित हो गई।तत्कालीन समय पूर्ण रूप से समाज सुधार के दौर से गुजर रहाथा।कुमाऊऔर गढवाल लोग धर्मांतरण कर रहे थे समाज में छुआछूत जैसी कई सामाजिक बुराइयाॅ थी।शिल्पकार शोषित और असंगठित थे।
कुमाऊ गढवाल मेंआर्य समाज जैसी संस्थाओं के माध्यम से धर्मांतरण रोकने और अस्पृश्यता उन्मूलन के कार्यक्रम चलाए जा रहे थे ।कुमाऊ में स्व.खुशीरामआर्य तथा गढ़वाल में जयानन्द भारती शिल्पकारों के शुद्धिकरण के लिए जनेऊ आन्दोलन कर रहे थे तो इधर स्व हरिप्रसाद टम्टा जी शिल्पकारों के लिए सरकार से बेहतर शिक्षा की सिफारिश कर रहे थे,और आर्थिक विकास को लेकर संघर्षरत थे।स्व.टम्टा जी ने कई विद्यालय खोल कर शिल्पकारों के लिए शिक्षा का प्रबंध किया।वे एक कुशल पत्रकार भी थे उन्होंने 1934 में समता साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन कर शिल्पकार समाज को जागरूक करने एवं उनके साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को प्रकाशित करने का कार्य किया।अल्मोड़ा जिला बोर्ड के मनोनीत सम्मानित सदस्य भी रहे।उनकी प्रतिभा को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने उन्हें 1935 में विशेष मजिस्ट्रेट मनोनीत किया।उन्होंने कई शिल्पकार सम्मेलनों की अध्यक्षता की सम्मेलनों के माध्यम से शिल्पकारों के लिए भूमि
आवंटन के लिए संघर्ष किया।आज आजादी के सात दशक बाद भी
शिल्पकार वर्ग सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक रूप से उपेक्षित है। उनकोबोट बैंक के रूप में उपयोग किया जा रहा है।आज हरिप्रसाद टम्टा जी की प्रासंगिकता अधिक है उनके जीवन दर्शन को आज समझने की आवश्यकता है ताकि लोगआर्य समाज की जकड़न से बाहर निकलकरअम्बेडकरीविचारों को समझें।शिल्पकारों को अब इस दिशामें हमकोअम्बेडकरी विचारों को प्रोत्साहित एवं प्रसारित करने की आवश्यकता है।
कुमाऊ गढवाल मेंआर्य समाज जैसी संस्थाओं के माध्यम से धर्मांतरण रोकने और अस्पृश्यता उन्मूलन के कार्यक्रम चलाए जा रहे थे ।कुमाऊ में स्व.खुशीरामआर्य तथा गढ़वाल में जयानन्द भारती शिल्पकारों के शुद्धिकरण के लिए जनेऊ आन्दोलन कर रहे थे तो इधर स्व हरिप्रसाद टम्टा जी शिल्पकारों के लिए सरकार से बेहतर शिक्षा की सिफारिश कर रहे थे,और आर्थिक विकास को लेकर संघर्षरत थे।स्व.टम्टा जी ने कई विद्यालय खोल कर शिल्पकारों के लिए शिक्षा का प्रबंध किया।वे एक कुशल पत्रकार भी थे उन्होंने 1934 में समता साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन कर शिल्पकार समाज को जागरूक करने एवं उनके साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को प्रकाशित करने का कार्य किया।अल्मोड़ा जिला बोर्ड के मनोनीत सम्मानित सदस्य भी रहे।उनकी प्रतिभा को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने उन्हें 1935 में विशेष मजिस्ट्रेट मनोनीत किया।उन्होंने कई शिल्पकार सम्मेलनों की अध्यक्षता की सम्मेलनों के माध्यम से शिल्पकारों के लिए भूमि
आवंटन के लिए संघर्ष किया।आज आजादी के सात दशक बाद भी
शिल्पकार वर्ग सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक रूप से उपेक्षित है। उनकोबोट बैंक के रूप में उपयोग किया जा रहा है।आज हरिप्रसाद टम्टा जी की प्रासंगिकता अधिक है उनके जीवन दर्शन को आज समझने की आवश्यकता है ताकि लोगआर्य समाज की जकड़न से बाहर निकलकरअम्बेडकरीविचारों को समझें।शिल्पकारों को अब इस दिशामें हमकोअम्बेडकरी विचारों को प्रोत्साहित एवं प्रसारित करने की आवश्यकता है।
समतामूलक समाज के लिए सही बुद्ध का सत्पथ ही है।यही स्व.मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा जी की मंशा रही होगी।इसी श्रद्धा के साथ उन्हें कोटि-कोटि नमन।
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