इक दीया रोशनी को जलाऐंगे हम।
रोशनी का ये त्योहार मनाऐंगे हम।
दिलों में है हमारे जो नफरत भरी।
उनको दिलों से सब मिटायेंगे हम।
भाग्य का खेल यह बहुत हो गया।
आदमी ही भगवान खुद हो गया।
धर्म के नाम पर पाखंड रच कर,
ठगने का बहाना अद्भुत हो गया।
अप्प दीपो भवः बचन बुद्ध के दिए।
पंचशील से शुद्ध आचरण भी दिए।
सम्यक की राह पे चलें जन गण मन,
समता बन्धुत्व के भाव बुद्ध ने दिए।
बाईस प्रतिज्ञाओं से वो रोशनी मिले।
भीम के लालों को वो मांशेरनी मिले।
प्रबुद्ध भारत के नव सृजन के लिए,
बाईस प्रतिज्ञाओं की वो रोशनी मिले।