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रविवार, 23 अक्तूबर 2022

नई रोशनी


इक दीया रोशनी को जलाऐंगे हम।
रोशनी का ये त्योहार मनाऐंगे हम।
दिलों में है हमारे जो नफरत भरी।
उनको दिलों से सब मिटायेंगे हम।

भाग्य का खेल यह बहुत हो गया।
आदमी ही भगवान खुद हो गया।
धर्म के नाम पर  पाखंड रच कर,
ठगने का बहाना अद्भुत  हो गया।

अप्प दीपो भवः बचन बुद्ध के दिए।
पंचशील से शुद्ध आचरण भी दिए।
सम्यक की राह पे चलें जन गण मन,
समता बन्धुत्व के भाव बुद्ध ने दिए।

बाईस प्रतिज्ञाओं से वो रोशनी मिले।
भीम के लालों को वो मांशेरनी मिले।
प्रबुद्ध भारत के नव सृजन के लिए, 
बाईस प्रतिज्ञाओं की वो रोशनी मिले।


बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

दीपोत्सव

आओ रोशन करें हम शहर अपने।
मिलकर सजा लें आज घर अपने ।
टूटकर बिखर गये सपने अंधेरों में,
आज सपनों से सजा लेंशहर अपने।

कभी माटी के दीये जलाये हमने भी।
अँधेरों में भटकते रहे  सब अपने भी।
आंधियों में रुकने का दम कहाँ इनमें,
रोशनी हो ये संकल्प लिया हमने भी।

यहाँ देखिए आस्थाओं का समन्दर है।
कोई  बाहर बैठा है तो कोई अन्दर है।
रोशनी चाहता हर कोई इस दुनियां में,
मगर रोशनी एक है ये घरों में अंतर है।

जिन्हें मयस्सर नहीं रोशनीअब तलक। 
अँधेरों में भटकते रहेंगे ये कब तलक।
प्रेम की रोशनी से ही होते उजले मन,
रोशन हो जाय धरा से आसमां तलक।

दीपोत्सव राष्ट्र का उत्सव मनाऐं हम।
बिना भेदभाव के हर घर सजाऐं हम।
नफ़रतों ने खाक में मिला दिया हमको,
प्रबुद्ध भारत होअब बिगुल बजाऐं हम।









मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

अंधेरा पसरा है


यहांअंधेरा दूर तलक पसरा है अभी।
भोर का तारा निकल रहाअभीअभी।

झरोखों से झांक कर देखो मटकों  में,
छुआछूत कितना भरा हुआ है अभी।

जंग ए आजादी लड़ी मिलकर सबने,
कुछआजादऔर कुछ गुलाम हैंअभी।

मिट्टी से यह मटका बनाया  कुम्हार ने,
मटका सछूत है कुम्हारअछूत है अभी।

बड़ी हँसी आती है उनके ज्ञान पर हमें,
जो कहें मुँह से पैदा हुए थे इन्सान कभी।

अपने मूंह मिट्ठू मत बना करो अब यहां,
जरा दूसरों की भी तो सुन लीजिए कभी।

अंधेरों में ढूढ़ते हैं भोजन उल्लू की तरह,
वो कहते हैं दिन मेंअंधेरा पसरा हैअभी।







कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...