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बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

दीपोत्सव

आओ रोशन करें हम शहर अपने।
मिलकर सजा लें आज घर अपने ।
टूटकर बिखर गये सपने अंधेरों में,
आज सपनों से सजा लेंशहर अपने।

कभी माटी के दीये जलाये हमने भी।
अँधेरों में भटकते रहे  सब अपने भी।
आंधियों में रुकने का दम कहाँ इनमें,
रोशनी हो ये संकल्प लिया हमने भी।

यहाँ देखिए आस्थाओं का समन्दर है।
कोई  बाहर बैठा है तो कोई अन्दर है।
रोशनी चाहता हर कोई इस दुनियां में,
मगर रोशनी एक है ये घरों में अंतर है।

जिन्हें मयस्सर नहीं रोशनीअब तलक। 
अँधेरों में भटकते रहेंगे ये कब तलक।
प्रेम की रोशनी से ही होते उजले मन,
रोशन हो जाय धरा से आसमां तलक।

दीपोत्सव राष्ट्र का उत्सव मनाऐं हम।
बिना भेदभाव के हर घर सजाऐं हम।
नफ़रतों ने खाक में मिला दिया हमको,
प्रबुद्ध भारत होअब बिगुल बजाऐं हम।









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