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सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

#बीज(47)

बीज गिरता है धरती पर,माॅटी में दब जाता है।
पाकर थोड़ी नमी,चीर धरती से ऊपर आता है।
ताकत है उसमें लड़ने,कुछ साहस भिड़ने की।
चिर सत्यकथा जीवन की,उठने और गिरने की।
उठता वही जो गिरता है,सम्भलता बढ़ता है।
गिरकर उठने का साहस,तो वह नहीं डरता है।
मूल निवासी भारत के,बीजों की तरह उगते हैं।
आँसू की इस नमता से ,बट वृक्ष से बन जाते हैं।
बीज कभी क्षय नहीं होते,ए फूले और फलते हैं।
बीजों से उपवन में ना ना,सुन्दर पुष्प खिलते हैं।
उनसे ही धरती सजती है,हर दिशा महकती है।
सुरमई रंगों की रचना में,प्रेम प्रवाहित करती है।
आओ मूल निवासी,बीजों से सुन्दर चमन बनाऐं।
मूलनिवासी भारतवासी,हम स्वाभिमान जगाऐं।
प्रबुद्ध भारत की रचना में,सर्वस्वअर्पित करते हैं।
हम मूलनिवासी हाथमिलाकरआगे-आगे बढ़ते हैं।

कांटों से डरो नहीं

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