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सोमवार, 26 अगस्त 2019

शिल्पकारों के आदर्श हरिप्रसाद टम्टा

उत्तराखंड में शिल्पकार समाज प्राचीन काल से ही शोषित समाज रहा है।विभिन्न शिल्प कलाओं के ज्ञाता शिल्पकार समाज केवल अपने पेट भरने मात्र तक सीमित नहीं था,बल्कि वह उत्तराखंड की संस्कृति का पोषक संरक्षक एवं वाहक रहा है।कालान्तर में समाज  सामाजिक रूढ़िवादी मानसिकता के कारण उसकी संस्कृति का ह्रास होने लगा तो समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अस्पृश्यता से मुक्ति के लिए जयानन्द भारती बूथा सिंह खुशीराम व  मुंशी हरिप्रसाद टम्टा सरीखे क्रांति वीरों ने आगे आकर पहल कि और आज वे शिल्पकारों के आदर्श हैं।
श्रद्धेय हरिप्रसाद टम्टा जी का जन्म 26अगस्त 1887को अल्मोड़ा में हुआ।प्राथमिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई।1905 में शिल्पकार सुधार सभा का गठन कर सामाजिक सरोकारों से जुड़े ।वे वकील थे।अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे ।वे एक पत्रकार भी थे ।शिल्पकार वर्ग पर होने वाले जुल्म जादतियों को अपने समाचार पत्र समता के माध्यम से प्रकाशित करते थे ।उन्होंने 1934 में समता साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किया।23 फरवरी 1960 को उनका परिनिर्वाण हो गया।
          श्रद्धेय रायबहादुर मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी के जयन्ती पर अथवा  परिनिर्वाण दिवस पर कारक्रम आयोजित करते हैं और श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैैं समाज के उन तमाम लोगों को हृदय से साधुवाद ,जो क्षेत्रों में आयोजित कार्यक्रमों में प्रतिभाग करते हैं।श्रद्धेय हरिप्रसाद टम्टा जी बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर जी के अनुयायी थे यह इस बात से स्पष्ट होता है कि उन्होंने इंग्लैंड मेंआयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में उपस्थित डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर को अनुसूचित जाति का वास्तविक प्रतिनिधि होने में विश्वास व्यक्त करते हुए एक तार प्रेषित किया था।अस्पृश्यता का दंश सह कर बाबा साहेब ने संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई।गणतंत्र की इस व्यवस्था में दलित शोषित समाज,महिलाओं खेती हर मजदूरों के अधिकारों को सुरक्षित रखा।
आज भी जब हम उन महान व्यक्तियों पर चर्चा करते हैं तो हमारी चर्चाऐं आज भी उन्हीं बिन्दुओं तक सीमित रहती हैं।यह इस बात का प्रमाण है कि समाज में आज भी जातिवादी मानसिकता में कोई खास बदलाव नहीं आया है।आरक्षित वर्ग के पढ़े-लिखे नौजवानों और सुरक्षित क्षेत्रों से जीत कर गये सांसद विधायकों की निष्क्रियता के कारण भी इस ठहराव के लिए जिम्मेदार हैं।आज जब हम इक्कीसवीं सदी के पायदान पर हों,चांद मंगल ग्रह पर जाने की बात कर रहे हों तब जातीय बातें विकास का उपहास करती हैं।
          उत्तराखंड में शिल्पकारों के पारंपरिक व्यवसाय के ह्रास का मुख्य कारण भी जातीय भेदभाव रहा है जिसका प्रभाव उनकी आर्थिक विकास पर पड़ा है।आज हमें अपने पारम्परिक व्यवसायों को पुनःस्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि आर्थिक रूप से समाज सुदृढ हो।समाज में उभरते प्रतिभाओं को आदर व सहयोग दे कर आगे बढाया जाय।शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ कर
सकारात्मक सोच विकसित करनी होगी ।मनुवादी ताकतें जो जातीय तानों बानों को बुनकर इस समाज को उलझाए रखना चाहती हैं अम्बेडकर वादी बन कर हमें प्रपंचों से दूर रहना होगा।नयी तथा स्वस्थ परम्पराओं का सृजन कर प्रबुद्ध समाज बनाना होगा, तभी प्रबुद्ध भारत बन सकेगा ।
    आज हमारा संकल्प हो कि हम मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी के बताए हुए मार्ग का अनुसरण करें,और समाज के तमाम उन लोगो को प्रकाश में लायें जो हमारे आस-पास समाज के संगठन के श्रोत हैं।

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

#भावपूर्ण श्रद्धांजलि

तुम अटल विश्वास अटल,
तुम्हारा ज्ञान अटल था।
काल चक्र के साथ तुम्हारा-
हर अभियान सफल था।
तुम बढ़ते गये निरन्तर,
तुमने कभी हार नहीं मानी ।
तुम मानवता से परिपूर्ण,
तुम थे निर्भीक स्वाभिमानी ।
तुम जन प्रिय जन नायक,
नव युग प्रेरणा दायक थे।
जाति धर्म सम्प्रदाय से ऊपर,
राष्ट्र धर्म सहायक थे।
तुम कवि लेखक रचना धर्मी,
प्रखर वक्ता युग दृष्टा थे।
नव भारत निर्माण के तुम,
सशक्त निर्भय अभिकर्ता थे।
हो गये आज तुम मौन,
काल चक्र भी रुक गया है ।
हे अटल श्रद्धांजलि अर्पण में,
ये राष्ट्र ध्वज भी झुक गया है ।
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!
भाव पूर्ण श्रद्धांजलि! 

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...