सदा चला जो राहों पर अपने पैगंबर जीजस की।
राजा के घर जन्मा उसे सदा गरीबों से प्यार रहा।
निर्धन की सेवा करनेको वह दिन-रात तैयार रहा।
नये नये परिधान पहनकर बच्चों को जो भाता था।
बड़े सबेरे उनके घर में वो खिलौने रख जाता था।
हिम प्रदेश का वासी जिसका शुद्ध निर्मल मन था।
हमसे बड़ा होने पर भी उसमें हम सा बचपन था।
एक बार की बात गांव में एक निर्धन बुढिया रहती।
तीन पुत्रियों के साथ वह एक झोपड़ी में वो रहती।
पैसे नहीं थे पास उसके और पुत्रियां जवान हो गई।
अब कैसे शादी हो इनकी वह बहुत परेशान हो गई।
इसकी भनक जब लगी संत को चुपके आया घर में।
सोने के सिक्के थैली में बन्द कर वह रख गया घर में।
सुबह उठी बहनें तीनों उन्होंने दरवाजे पर थैला देखा।
हर्षित हुए सब घर में जाना ये बदली भाग्य की रेखा।
मानवता का कोई पुजारी जब आता है इस धरती पर।
सारे संकट दूर हो जाते रहेंगे समाज में जब मिलकर।