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शनिवार, 20 जून 2020

मैं चला गांव अपने .....स




कोरोना से भयभीत और चिंतित हर पहर,
यहां दिख रहा है दौर नाजुक एक मंजर।
बेजान सा हो गया है अब तुम्हारा ये शहर,
मैं चला गांव अपने,तुम्हें मुबारक ये शहर।

मुट्ठी भर सपने लिए गांव से आया शहर।
लौकडाउन में कहीं सब गये हैं वो विखर।
हर तरफ सूनापन है वक्त की टेढ़ी नज़र।
मैं चला गांवअपने ,तुम्हें मुबारक येशहर।
 
सोच छोटी थी मेरी,छोड़आया था मैं घर।
बूढ़ी मेरी मां जहां याद करती हर पहर।
हो गया हूँ खुद अकेला कैसा है ये सफर।
मैं चला गांव अपने,तुम्हें मुबारक ये शहर।



शुक्रवार, 12 जून 2020

दोहावली***स

जैभीमअभिवादन से,जलते हैं जो लोग।
अक्षर उनसे ही बढ़े, छुआछूत का  रोग।
जो कहता पोथी पढ़ो, बनो हमारे  भक्त।
समझो ऐसे जौंक को,जो पी जाते रक्त ।

पोथी में भगवान के, चमत्कार के मंत्र। 
चाटे दीमक की तरह, वो प्रजा के तंत्र।
बामन की पोथी पढ़े,होये भक्त गुलाम।
करे प्रभु के नाम पर,वे ठगने का काम। 

मूलनिवासी जो पढ़े,बाबा का संविधान।
समतामूल समाज की,करते वे निरमान। 
पत्थर को भगवान का,मूरत समझे कोय।
समझो पत्थर की तरह,वो भी निष्ठुर होय।

चेले हैं जो भीम के,  नहीं मानते  हार।
धम्म चक्र प्रवर्तन को, रहते हैं  तैयार ।
वंचित के घर जाइए,सुनिए उनके हाल।
कोरोना लेकर गया,सारा उनका माल।

कोरोना के रोग से,घबराऐ नहिं कोय।
दो गज दूरी राखिये,साबुन से कर धोय।
मन में रखते मैल को,तन को करते शुद्ध।
वे मन अब कैसे बने,इस जीवन में बुद्ध ।

बुद्ध शरण में जो गये,पाये ज्ञान अपार। 
मानवता की रक्षा में, रहते  हैं  तैयार ।

बुधवार, 3 जून 2020

यूं शिल्पकार.......(4)..

पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार ।

अपण ढ़ुगोंकि थात पारि औंगाव किटनी ।
बड़ कृषाण गात लगै औरौं पीड़ उकेरिनी। 
गोरु बकर भैंसौंक टहल कै दूध दै बहार। 
पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार ।

जबअसोज कातीक कामक चुट पड़नी।
कहण महण टिपि गुठ्यारम भट्ट चुटनी।
मडू झुंगर  मानि लोगौंक भरनी  भकार,
पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार।

हौव दन्याव दातुल कुटव सब इनुल बनाइ।
हमर थान घर कुड़िबाड़ि छान इनुल लगाइ।
लोगोंकैं भितेर बैठै आफू रहय देहे  भ्यार।
पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार।

हमैरि पहाड़क संस्कृति सब छा इनरै लिबै।
हम ज्यौन जागत छोंआज तक इनरै लिबै।
हैं रंगत जब हनी खेल कौतीक बार त्योहर।
पहाड़क पहरू छैं बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार ।

जग न जमीन यूँ भूमि हीन पर भूमी पुजनी,
हर बार चुनाव में यूँ नेता इनुकैंणी खोजनी।
इनर बोटों पारि उनरि बनि  जैं एक सरकार, 
पहाड़क पहरू छैं बड़ सिद यूँ  शिल्पकार ।

आज ठुल छ्वट नेता इनर हिसाब लगानी।
वोट मांग हैंणि आनी इनर खुट पड़ जानी।
चुनाव जित बै सबोंक बदलि जां व्यवहार।
पहाड़क पहरू बड़ सिद छैं यूँ शिल्पकार।

सिद साद हमर यूॅ  शिल्पी सब भूलि जानी।
हिटन हिटनैं धारम बैआफी मूण घुरी जानी।
आमक चुसी हड़्यल जस खेती छैं यूँ भ्यार।
पहाड़क पहरू बड़ सिद छै यूँ  शिल्पकार ।
"""""""""""""""@स्नेही"""""""""""""""









कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...