जो श्रम करता है जमाने में वही है श्रमजीवी,
दूसरों पर निर्भर रहने वाला तो है परजीवी।
स्वावलंबन की संस्कृति अपनाए जो जीवन में,
वही आदमी तो है जमाने में हमेशा चिरंजीवी।
दूसरों पर निर्भर रहने वाला तो है परजीवी।
स्वावलंबन की संस्कृति अपनाए जो जीवन में,
वही आदमी तो है जमाने में हमेशा चिरंजीवी।
जो श्रम करता है और समय के साथ चलता है,
सबकी सुनता है,मगर बात मन की कहता है।
बेहतर है उस श्रमजीवी का स्वाभिमान में रहना,
सम्यक श्रम से ही जमाने में,चमत्कार करता है।
सबकी सुनता है,मगर बात मन की कहता है।
बेहतर है उस श्रमजीवी का स्वाभिमान में रहना,
सम्यक श्रम से ही जमाने में,चमत्कार करता है।
राग जमाने में बहुत हैं,पर अनुराग अच्छा है।
मुक्ति का बोध हो जिससे, वह ज्ञान सच्चा है।
किताबें जीवन में हम भले ही कितनी पढ़ लें,
सम्यक ज्ञान हो जाय तो वो जीवन अच्छा है।
मुक्ति का बोध हो जिससे, वह ज्ञान सच्चा है।
किताबें जीवन में हम भले ही कितनी पढ़ लें,
सम्यक ज्ञान हो जाय तो वो जीवन अच्छा है।
कहीं मंदिर,गिरजा घर, कहीं मस्जिद बने हैं।
साम्प्रदायिक तनावों में हम कई बार उलझे हैं।
अल्लाह ईश्वर गौड सब बराबर हैं हमारे लिए।
हमें तो एक रोटी चाहिए,बस पेट भरने के लिए।
साम्प्रदायिक तनावों में हम कई बार उलझे हैं।
अल्लाह ईश्वर गौड सब बराबर हैं हमारे लिए।
हमें तो एक रोटी चाहिए,बस पेट भरने के लिए।
पत्थरों मेंआस्था से, किसी का पेट नहीं भरता।
परतंत्रता में कैसे लिखें,स्वाभिमान की कविता।
शुद्ध हैं भाव जिसके,चलता वही है बुद्ध पथ पर,
निकलती है शीलों से ही सम्यक ज्ञान की सरिता।
परतंत्रता में कैसे लिखें,स्वाभिमान की कविता।
शुद्ध हैं भाव जिसके,चलता वही है बुद्ध पथ पर,
निकलती है शीलों से ही सम्यक ज्ञान की सरिता।