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शनिवार, 30 जुलाई 2022

विजय दिवस -1


हमको फक्र है,वीर सैनिकों पर अपने।
शहादत  देकर भी पूरे कर गए सपने।
छब्बीस जुलाई इस विजय दिवस पर,
ज्योतिर्मय कर गये वे देश को अपने।

हमारे सैनिकों ने खाये,धोखे दुश्मन से।
और टक्कर दी दुश्मन को हमेशा उसने।
कभी आँच न आने दी अपने वतन पर,
हस्तीमिटाई दुश्मन की कारगिल में उसने।

पड़ोसी देश है पाकिस्तान, मगर दुश्मन ,
शरहदों पर करता है हमेशा विष वमन।
कारगिल में जवानों का जो रुतब देखा,
दुम दवाकर भागा अपने घर वो दुश्मन। 

हम घरों में चैन से हैं पहरेदार हैं जवान।
हाथ पर लेकर तिरंगा करते हमें सावथान।
शरहदों पे नफरत के बीज बो रहा है जो,
हमारा पड़ोसी ही है ,वह दुष्ट पाकिस्तान। 

हाथ में बन्दूक,चले तानकर सीना अपना।
कांप उठे दुश्मन,कारगिल का देख सपना।
देशके लाल जो शहीद हुए कारगिल युद्ध में,
आज उन्हे करें नमन शिर झुकाकर अपना।  



 


शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

धम्म प्रशिक्षण शिविर

राष्ट्रीय बौद्ध महासभा के तत्वावधान में (सम्राट अशोक हालआर के राइस मिल के सामने काशीपुर)आयोजित दस दिवसीय धम्म प्रशिक्षण शिविर आज दिनांक 11मई2022 को मा0आजाद बौद्ध के निर्देशन में बुद्ध वंदना से प्रारम्भ हुआ।विभिन्न प्रान्तों से आये लगभग 150 धम्म  शिविरार्थी प्रतिभाग कर रहे हैं।राष्ट्रीय आचार्य मा0 इ.किशोर बौद्ध जी शिविर के मुख्य प्रशिक्षक हैं। 
दस दिवसीय धम्म शिविर केअनमोल पल,
कर गये जागृत शिविरार्थियों का मनोबल।
प्रातःपांच बजे उठना और व्यायाम करना।
यहां  सीखा सबने बड़ों का सम्मान करना।
मिलकर नाश्ता दोपहर या रात का भोजन।
नैतिकता निर्माण के लिए शुद्ध हैआयोजन। 
कोई गुजरात से तो कोई महाराष्ट्र से आया।
कोई उत्तराखंड से  कोई भोपाल से आया।
भिन्न प्रान्तों व भाषाओं का हैअभिन्न संगम।
जाति विहीन समाज निर्माण पर है ये मंथन।
चन्द्रहास गौतम का अनुपम सम्मोहन मिला।
आचार्य किशोर बौद्ध जी का सम्बोधन मिला।
टूट गये है अज्ञानता के ये कठोर बंधन सब।
दिलों में हो रहा है ये स्नेह भरा स्पन्दन अब।


 





रविवार, 17 जुलाई 2022

बुढ़ापा !( घनाक्षरी)

फूलने लगा है सांस,झूलने लगा है मांस,
लगता है जवानी का, जोश गिर गया है।
पूरे हुए सत्तर साल,थोड़ी कम हुई चाल,
बैठे बैठे खाने का ये मौक़ा आ ही गया है।

आ गया है वृद्धापन, हुआ कमजोर तन,
रोगों  से बुढ़ापा अब, तन  घिर गया  है।
कल तक घूमते थे,आगे  पीछे बाबू मेरे,
अब हर  बाबू मेरा ,नाम  भूल  गया  है।

बढ़ जाए उम्र भले,सदा वो निरोगी रहे,
समझो ये प्रेम बर,  दान  मिल  गया है।
खान-पान पर ध्यान,रहा जिसका समान,
व्यसनों से दूर सब,  ज्ञान मिल  गया है।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

सावन के झूले !

रिमझिम  बूँद जब , सनन  बयार  तब,
तन को भिगाए खूब,मन को लुभाती है। 
हरियाली सावन की,धरा लगे पावन सी,
कूककर कोयलिया,प्रेमी को बुलाती है।
नभ पर घटा  छाए ,नदी नाले भर आए,
सावन को देख मन, फुला न समाती है। 
प्रेमिका त्यौहार पर, मौसम  बहार पर ,
सावन के झूलों पर, जोभन झुलाती हैं।
कल-कल करती है,दिन-रात चलती है,
नदिया  ये  सरगम, हमको सुनाती  है।
झूले पड़े सावन के, बड़े मनभावन के,
गांव की बालिका हमें,सगुन खिलाती है।
पिया परदेश गये, पिया बिन कैसे रहे,
सावनी फुहार हमें,रात-दिन सताती  है।
प्रेमिका का मन तब,पीड़ से कराहे जब,
धक-धक कर फिर, प्रेमी को रुलाती है।
खेत खलिहान सब,हो रहे विरान अब,
सावन के झूले पर सहेली बिठाती है।
सावन पिया के बिना,काट खाएगा महीना,
आकर पिया की याद,मुझको रुलाती है।




गुरुवार, 14 जुलाई 2022

आदमी की तलाश

शहर में भीड़ है पर भीड़ में नहीॅआदमी।
देखता हूँ भीड़ में खो गया कहीं आदमी।
गांव में भी देखा वहाँ कोई नहीं आदमी,
जातियाँ के खूँटे से है बधा हुआआदमी।

ज़िन्दगी ही बीत गई यूँ ढूँढने में आदमी, 
लग रहा जैसे चांद खुद ढ़ूढ रहा चांदनी। 
ऐसा हाल दुनिया का जहां बसा आदमी,
भगवान के नाम से ही माल लूटेआदमी।

धरम के नाम पर  गुलाम बना आदमी,
पाखंड के छल से भगवान बनाआदमी।
वासना में डूब कर शैतान बना आदमी,
नैतिकता से हमेशा महान बना आदमी।

निकला हूँ घर से तलाशता हूँ आदमी।
देखता हूँ दासता में रहता है आदमी।
कहने में सच झूठ बोलता है आदमी।
बिकता है मोल तोलता नहीं आदमी।












शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

वृद्धाश्रम

लोग कहते हैं कि सच सच बोला करो,
मगर झूठ से ही पलते हैं अक्सर लोग।
बूढ़े हो जाते हैं माँ बाप अगर आज तो,
वृद्धाश्रम पहुँचाआते उन्हें अक्सर लोग।

परिवार बने हैं मजबूत रिश्तों सेअक्सर।
आज परिवार में ही रिश्ते गये हैं बिखर।
काम काजी ज़िन्दगी रिश्ते मशीनों से है,
माँ बाप निर्भर हो गयेअब वृद्धाश्रम पर।

एकओर मांजी जो छियानब्बे साल की हैं,
खेलती हैं गांव में ,पोते पोतियों के साथ।
पढ़ लिख कर जिसने घर से शहर देखा, 
वृद्धाआश्रमों में हैं सुखी रोटियों के साथ।

दुखी वो लोग जोअनाथ हैं फुटपाथों पर,
जीवन वसर कर रहे हैं वो हाथ फैलाकर।
ऐसे असहाय लोगों के लिए है वृद्धाश्रम,
लेकिन रसूखदार पहले मांगते हैं आकर।


सोमवार, 4 जुलाई 2022

सुबह का पहर

कितनाअच्छा लगता है सुबह का पहर।
जब रोशन होते हैं सारे गांव और शहर।
मन्द-मन्द पवन कर देती प्रफुल्लित मन,
झंकृत करती है हृदय को उद्वेलित लहर। 

शोर खगों का गुंजन भवरों का फूलों पर,
किरण सुबह दस्तक देती है दरवाजों पर
अँधेरों में ठोकरें अक्सर  लगती बहुत हैं,
अब उजालों में नहीं लगता है कोई डर।

सुबह उठे तो किताबों में डुबकी लगाकर।
दिया जलाया घंटी बजाई पोथियां पढ़कर।
ये अपराध तो होते हैं अंधेरों में ही अक्सर।
दूर करने को पढ़ें संविधानऔरअम्बेेेडकर।



अस्पृश्यता कलंक है

छुआछूत से अछूते नहीं हैं अभी लोग।
शिल्पकारों की बारात रोकते हैं लोग।
सब जानते हैं देश आजाद हो गया है,
फिर भी दुल्हे की घोड़ी रोकते लोग।

मित्र की शादी में ढोल बजाते हैं लोग।
पहाड़ वादियाँ में घोड़ी सजाते हैं लोग। 
पत्थर के सायों में है जातीय व्यवस्था,
इसीलिए करते हैं जातीय झगड़े लोग। 

पढ़ायाकिअस्पृश्यता राष्ट्रीय कलंक है।
धर्म जाति भेद  से ये एकता बदरंग है।
त्याग बलिदानों से आजादी मिली हमें,
प्रजातंत्र राज यहां न राजा है न रंक है।

सावधान छुआछूत राष्ट्र का कलंक है।
 



रविवार, 3 जुलाई 2022

भाईचारा

  हिन्दी साहित्य परिवार 
विषय - भाई चारा
दिनांक   1/7/2022से 


मिलकर पहल करें हम भाईचारा।

ये तेरा है ये मेरा यहअंधकार घनेरा।
अलगाववाद का है यहां हमेशा डेरा।
फिर कैसे भाई-चारा परिलक्षित हो।
समता, स्वतंत्रता यहां सुरक्षित हो।

मिलकर पहल करें हम भाई-चारा।
बने समतामूलक ये समाज हमारा। 

त्याग दें निष्ठुरता संवेदनशील बनें।
भेदभाव मिटाकर  प्रगतिशील बनें। 
छल-कपट रहित हो चरित्र  हमारा।
मिलकर पहल करें हम भाई-चारा।

दुनियां में मेरा भारत देश है न्यारा।
युगोंअमर रहे ये प्रबुद्ध राष्ट्र हमारा।
मिलकर पहल करें ऐसा भाई-चारा।
जैसे हिन्दी साहित्य परिवार हमारा।



शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

बुद्ध पथ***स

बुद्ध का पथ है सुगम सम्पूर्ण इसमें शुद्धता।
करुणा दया व प्रेम इसमें पूर्ण है सहिष्णुता ।
भाग्य न भगवान बस इन्सान ही है श्रेष्ठतम।
मुक्ति का ही  मार्ग है बुद्ध का यह श्रेष्ठ धम्म। 

हैआदर,सम्मान सबकाऔर पथ है नेक का ।
है इसी में बुद्ध का धम्म संघ की सत एकता।
इतिहास के पन्नों में है प्रबुद्ध भारत की कथा।
मनुवादियों का छद्म ही बन गई उनकी व्यथा।

श्रमण संस्कृति के वाहक परतंत्र कैसे हो गये।
मनुवाद के गहरे इस दलदल में कैसे धंस गये।
शिक्षा केअवलम्ब से हम खोज सकते हैं कथा।
धम्म के पथ पर चलें तो हम मिटा सकते व्यथा।

गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर लाओ सबेरा।
प्राण जन गण के जगा लुप्त हो जाएअन्धेरा।
स्वतंत्र भारत का विधानअम्बेेेडकर बना गये। 
गणतंत्र का अनुपम नया विधान सिखा गये।
नमन करके भीम को हम वह संविधान पढ़ें ।
लक्ष्य पाने के लिए फिर एक कदम आगे बढ़ें।



मुक्तक

 
जो ऊंची ऊंचीअट्टालिकाओं में रहते हैं।  
सपने अक्सरआसमां छूने के देखते हैं। 
राह भटके हुए फुटपाथों पर रहने वाले, 
आसमान के नीचेअक्सर भूखे मरते हैं।

अपनों की हर बात याद रखनी चाहिए। 
लक्ष्य की ठोस बुनियाद रखनी चाहिए।
उम्मीदों से भरी इस सुहावनी सुबह से,
नव सृजन की सुरुआत करनी चाहिए। 

जीवन को सदा मधुर बनाती है मित्रता।
जीवन मेंअच्छी राह दिखाती है मित्रता।
सुख- दुःख दो पहलू हैं हमारे जीवन के,
हर  पहलू पर  साथ निभाती है  मित्रता।

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...