रिमझिम बूँद जब , सनन बयार तब,
तन को भिगाए खूब,मन को लुभाती है।
हरियाली सावन की,धरा लगे पावन सी,
कूककर कोयलिया,प्रेमी को बुलाती है।
नभ पर घटा छाए ,नदी नाले भर आए,
सावन को देख मन, फुला न समाती है।
प्रेमिका त्यौहार पर, मौसम बहार पर ,
सावन के झूलों पर, जोभन झुलाती हैं।
कल-कल करती है,दिन-रात चलती है,
नदिया ये सरगम, हमको सुनाती है।
झूले पड़े सावन के, बड़े मनभावन के,
गांव की बालिका हमें,सगुन खिलाती है।
पिया परदेश गये, पिया बिन कैसे रहे,
सावनी फुहार हमें,रात-दिन सताती है।
प्रेमिका का मन तब,पीड़ से कराहे जब,
धक-धक कर फिर, प्रेमी को रुलाती है।
खेत खलिहान सब,हो रहे विरान अब,
सावन के झूले पर सहेली बिठाती है।
सावन पिया के बिना,काट खाएगा महीना,
आकर पिया की याद,मुझको रुलाती है।
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