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सोमवार, 4 जुलाई 2022

सुबह का पहर

कितनाअच्छा लगता है सुबह का पहर।
जब रोशन होते हैं सारे गांव और शहर।
मन्द-मन्द पवन कर देती प्रफुल्लित मन,
झंकृत करती है हृदय को उद्वेलित लहर। 

शोर खगों का गुंजन भवरों का फूलों पर,
किरण सुबह दस्तक देती है दरवाजों पर
अँधेरों में ठोकरें अक्सर  लगती बहुत हैं,
अब उजालों में नहीं लगता है कोई डर।

सुबह उठे तो किताबों में डुबकी लगाकर।
दिया जलाया घंटी बजाई पोथियां पढ़कर।
ये अपराध तो होते हैं अंधेरों में ही अक्सर।
दूर करने को पढ़ें संविधानऔरअम्बेेेडकर।



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