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सोमवार, 4 जुलाई 2022

अस्पृश्यता कलंक है

छुआछूत से अछूते नहीं हैं अभी लोग।
शिल्पकारों की बारात रोकते हैं लोग।
सब जानते हैं देश आजाद हो गया है,
फिर भी दुल्हे की घोड़ी रोकते लोग।

मित्र की शादी में ढोल बजाते हैं लोग।
पहाड़ वादियाँ में घोड़ी सजाते हैं लोग। 
पत्थर के सायों में है जातीय व्यवस्था,
इसीलिए करते हैं जातीय झगड़े लोग। 

पढ़ायाकिअस्पृश्यता राष्ट्रीय कलंक है।
धर्म जाति भेद  से ये एकता बदरंग है।
त्याग बलिदानों से आजादी मिली हमें,
प्रजातंत्र राज यहां न राजा है न रंक है।

सावधान छुआछूत राष्ट्र का कलंक है।
 



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