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रविवार, 26 अगस्त 2018

🔰एक नया त्यौहार मनाऐं (52)

एक नया त्यौहार मनाऐं,हम खुशियों से परिवार सजाऐं।

कभी राग न  द्वेष किसी से,कभी न हो विद्वेष किसी से।
हिल मिल रहकर देखें सपना,ऐसा लगे  घर  हो अपना।
अगर रूठ कर कोई बिछुड़े  मिलकर सब उसे मनाऐं।
हम एक नया त्यौहार मनाऐं ,खुशियों से संसार सजायें।
      
जाति धर्म की बात न हो,किसी से अशिष्ट संवाद न हो ।
रिश्तों में हो प्रेम समर्पण प्रबुद्ध राष्ट्र को सब हो अर्पण।
समृद्ध राष्ट्र ,समृद्ध समाज को,मिल कर स्वस्थ बनाऐं ।
हम एक नया त्यौहार मनाऐं खुशियों से संसार सजाऐं ।
      
यहां कोई पूरब पश्चिम रहता,कोई उत्तर दक्षिण वासी ।
भाषा वेश रंग भले अलग हों,हम सब हैं भारतवासी ।
भेदभाव का भ्रम तोड़कर,सुन्दर सा उपहार सजाऐं।
एक नया त्योहार मनाऐं खुशियों का परिवार बनाऐं।



शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

🌹प्रातः स्मरणीय व्यक्तित्व -मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा 🌹

उत्तराखंड में शिल्पकारों के प्रेरणास्रोत रहे  हैं स्वoरायबहादुर मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा।वे सम्पूर्ण उत्तराखंड में ही नहीं,अपितु जहाॅ भी प्रवासी शिल्पकार हैं बड़े गर्व के साथ उनकी जयन्ती मना कर उन्हें याद करते हैं और  उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हैं।आज अम्बेडकरी चेतना के फलस्वरूप समाज सुधार के लिए उनके प्रयासों को दृष्टिगत कर उनको उत्तराखंड का अम्बेडकर कहा जाता है।स्वoरायबहादुर मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा जी का जन्म 26अगस्त1887 को अल्मोड़ा में हुआ ।उनके पिताजी का नाम गोविंद प्रसाद तथा माता जी का नाम गोविंदी देवी था।सन् 1892 में प्राइमरी शिक्षा और1902 में हाईस्कूल परीक्षा उन्होंने उच्च श्रेणी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की।प्रतिभा के धनी स्वo हरिप्रसाद टम्टा जी के लिए तत्कालीन परिस्थितियां बड़ी कठिन थी ।जहाॅ  कि एक ओर देश की आजादी के लिए संघर्ष और दूसरी तरफ जातीय अस्पृश्यता का घोर दंश।संघर्ष के इस दौर में उनको भी अपनी भूमिका निर्धारित करनी थी।उन्होंने सन्  1905 में शिल्पकारों की दशा सुधारने के लिए  टम्टा सुधारिणी सभा का गठन किया जो आगे चलकर शिल्पकार सभा के रूप में परिवर्तित  हो गई।तत्कालीन समय पूर्ण रूप से समाज सुधार के दौर से गुजर  रहाथा।कुमाऊऔर गढवाल लोग धर्मांतरण कर रहे थे समाज में    छुआछूत जैसी कई सामाजिक बुराइयाॅ थी।शिल्पकार शोषित और असंगठित थे।
               कुमाऊ गढवाल मेंआर्य समाज जैसी संस्थाओं के माध्यम से धर्मांतरण  रोकने और अस्पृश्यता उन्मूलन के कार्यक्रम चलाए जा रहे थे ।कुमाऊ में स्व.खुशीरामआर्य तथा गढ़वाल में जयानन्द भारती शिल्पकारों के शुद्धिकरण के लिए जनेऊ आन्दोलन कर रहे थे तो इधर स्व हरिप्रसाद टम्टा जी शिल्पकारों के लिए सरकार से  बेहतर शिक्षा की सिफारिश कर रहे थे,और आर्थिक विकास को लेकर संघर्षरत थे।स्व.टम्टा जी ने कई विद्यालय खोल कर शिल्पकारों के लिए शिक्षा का प्रबंध किया।वे एक कुशल  पत्रकार भी थे उन्होंने 1934 में समता साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन कर शिल्पकार समाज को जागरूक करने एवं उनके साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को प्रकाशित करने का कार्य किया।अल्मोड़ा जिला बोर्ड के मनोनीत सम्मानित सदस्य भी  रहे।उनकी प्रतिभा को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने उन्हें 1935 में विशेष मजिस्ट्रेट मनोनीत किया।उन्होंने कई शिल्पकार सम्मेलनों        की अध्यक्षता की सम्मेलनों के माध्यम से शिल्पकारों के लिए भूमि
आवंटन के लिए संघर्ष किया।आज आजादी के सात दशक बाद भी
शिल्पकार वर्ग सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक रूप से उपेक्षित है। उनकोबोट बैंक के रूप में उपयोग किया जा रहा है।आज हरिप्रसाद टम्टा जी की प्रासंगिकता अधिक है उनके जीवन दर्शन को आज समझने की आवश्यकता है ताकि लोगआर्य समाज की जकड़न से    बाहर निकलकरअम्बेडकरीविचारों को समझें।शिल्पकारों को अब  इस दिशामें हमकोअम्बेडकरी विचारों को प्रोत्साहित एवं प्रसारित करने की आवश्यकता है।
        समतामूलक समाज के लिए सही बुद्ध का सत्पथ ही है।यही स्व.मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा जी की मंशा रही होगी।इसी श्रद्धा के साथ उन्हें कोटि-कोटि नमन।


मंगलवार, 21 अगस्त 2018

स्वतंत्रता सेनानी स्व.हरकराम आर्य

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम आर्य एक कर्मठ ,मेहनती एवं एक जुझारू व्यक्तित्व के धनी थे ।वे एक लम्बी उम्र 106वर्ष जीए।उनका जन्म 22 सितंबर 1881 को हुआ था ।उनके पिताजी का नाम पनीराम तथा माता जी का नाम श्रीमती मना देवी था।वे हमको जब अपने बारे में बताया करते थे तो अपने दादा जी कुतुबचंद का जिक्र अवश्य किया करते थे।वे बताते थे कि उनके पूर्वज कोटलिया थे जो गढ़वाल से यहाॅ  आये।यहाॅ तल्ला विरलगाॅव सल्ट आकर लोहारी करते थे ।उनके दादा व पिता जी अच्छे खासे सिद्ध हस्त लोहार थे। पिता स्व. पनीराम व माता मना देवी ने पांच पुत्र दो पुत्रियों को जन्म दिया था ।वे कहा करते थे कि उनकी बहिनें भाबर में रहती थी जो भैंसिये थे ।भाइयों में वे सबसे छोटे थे।सबसे बडे भाई दौलत राम फिर काली राम,  धनीराम हंसरामऔर सबसे छोटे हरकराम थे।हंसराम भी भाबर आ कर बस गये थे केवल चार भाई तल्ला विरलगाॅव सल्ट में रहकर लोहारगिरी करते थे।खेती-बाड़ी का काम बड़े भाई लोग संभाल लेते थे ।हरकराम स्कूल तो नहीं गये पर सामाजिक दर्शन को समझने लगे थे ।उनका मन घर पर नहीं लगता था।1918 के बाद उत्तराखंड में समाज में परिवर्तन का दौर चल रहा था एक ओर देश की आजादी के लिए लोग संघर्ष की राह पर चल रहे थे, दूसरी तरफ समाज में छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ खुलकर लोग आगे आ रहे थे।ऐसे समय पर युवा हरकराम कहाॅ चुप बैठने वालों में थे।दिनरात वे अपने साथियों के साथ जन जागरण के लिए संघर्ष कर रहे थे। कुमाऊ गढवाल मेंआर्य समाज सामाजिक कुरीतियों के लिए संघर्ष कर रही थी ।कुमाऊ में स्व.खुशीरामआर्य तथा गढ़वाल में स्वoजयानन्द भारती आर्य समाज में दीक्षित होकर प्रचार-प्रसार कर रहे थे ।शिल्पकार वर्ग जागरूक हो कर संगठित हो रहा था।जगह-जगह आर्यसमाजी प्रचारक यज्ञोपवीत करवा कर शिल्पकार वर्ग को हिन्दुत्व के लिए खड़ा कर रहे थे।वे उन्हें मूर्ति पूजा से अलग कर अन्धविश्वासों से भी मुक्त कर रहे थे।हरकराम जी भी खुशीरामआर्य के भक्त हो गये।आर्यसमाज के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने लगे ।यह काल जनेऊ आन्दोलन के रूप में एक ऐतिहासिक आन्दोलन हो गया।जगह-जगह सवर्ण वर्ग इस आन्दोलन के विरोध में खड़े होकर शिल्पकार वर्ग पर अत्याचार करने लगे ।खुशीरामआर्य जी इस विरोध का डठ कर सामना किया ।हरकराम जी बताते थे कि कई स्थानों पर सवर्णों का इतना विरोध था कि मारपीट मुकदमे बाजी भी बहुत हुई।वे बताते थे कि इन आन्दोलनों ने उनका जीवन ही बदल दिया।सल्ट में जहां भी कांग्रेसियों की बैठकें होती वे वहां रहते ।शिल्पकार समाज मेंअब वे लोगों के पुरोहित बन कर कर्मकांड किया करते।लोगों को सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की शिक्षा दिया करते थे।1933 में उन्होंने अपना मकान बनवाया मकान में ईडा बारखाम के मिस्त्री भीमराम थे जिनका नाम आज भी मकान के पत्थर पर खुदा हुआ है।1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर सम्पूर्ण देश में पूर्ण स्वराज का आन्दोलन प्रारंभ हो गया ।यह आन्दोलन करो या मरो के साथ चला ।क्रांतिकारी हरकराम जी को भी गिरफ्तार किया गया ।अट्ठारह महीने जेल में रहे फिर उन्होंने समाज में रह कर समाज सुधार का कार्य किया ।
       स्व.हरकराम आर्य क्रांतिकारी थे वे सुधार की अपेक्षा परिवर्तन चाहते थे ।परिवर्तन के मूल्यों को उन्होंने स्वयं अपने जीवन में उतारा।"वे कहते थे कि हमें अपने को सुधारने की निरन्तर कोशिश करनी चाहिए"। समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयाॅ हमारे प्रयास से ही दूर होंगी।शादी विवाह के अवसरों पर मैंने उनको भाषण देते हुए देखा।वे लोगों को समझाया करते थे कि हमें कुरीतियों को छोड़ देना चाहिए ।धूम्रपान नशाखोरी से आदमी अपने स्वास्थ्य खोकर स्वाभिमान भी खो देता है।वे कभी मूर्ति पूजक नहीं रहे।जीवन के अन्तिम वर्षों में वे बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर के विचार और बुद्ध के विचारों से प्रभावित थे।उनका मानना था कि उत्तराखंड में शिल्पकारों का डोली पालकी आंदोलन जनेऊ आंदोलन एक सशक्त आंदोलन रहा है ।इन आंदोलनों ने शिल्पकारों की दशा दिशा बदली।वे मानते थे कि आज अब अम्बेडकरी चेतना की आवश्यकता समाज को ज्यादा है।उनकी इच्छा थी कि वे अम्बेडकरी विचारधारा के साथ काम करें परन्तु स्वास्थ्य अब अनुकूल नहीं लग रहा था। 8 अक्टूबर  1986को स्वतंत्रता संग्राम सेनानीस्व.हरकराम आर्य का देहावसान हो गया।
       4 सितम्बर 2014को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम आर्य जी की मूर्ति विश्व कर्म शक्ति पीठ तल्ला विरलगाॅव सल्ट परिसर में स्थापित की गई  सल्ट विधायक मा.सुरेन्द्रसिंह जीना जी के द्वारा मूर्ति का अनावरण किया गया।अब प्रति वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर विश्व कर्म शक्ति पीठ परिसर में बुद्ध  वंदना के साथ  मनाई जाती है।विगत कई वर्षों से 5सितम्बर सल्ट शहीद दिवस के पूर्व दिवस तल्ला विरलगाॅव में स्वंतंत्रता सेनानी हरकराम जी की मूर्ति की अनावरण तिधि मनाई गई ।माननीय विधायक जीना जी के प्रयास से विश्व कर्म शक्ति पीठ तल्ला विरलगाॅव सल्ट में" स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम  स्मारक" बनाया गया।आज मूर्ति अनावरण तिथि पर गांव के लोगों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम को कोटि-कोटि नमन कर श्रध्दांजलि अर्पित की गई ।

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

श्रद्धांजलि

तुम अटल, विश्वास अटल ,तुम्हारा ज्ञान अटल था ।
काल चक्र के साथ तुम्हारा हरअभियानसफल था।
तुम बढते गये निरन्तर,तुमने कभी हार नहीं मानी।
तुम मानवता से परिपूर्ण  थे निर्भीक स्वाभिमानी।
तुम जनप्रिय जन नायक नव युग प्रेरणा दायक थे।
जाति धर्म सम्प्रदाय से ऊपर राष्ट्र धर्म सहायक थे।
तुम कवि लेखक रचना धर्मी प्रखर वक्ता युगदृष्टाथे।
इस नवभारत निर्माण के तुम निर्भय अभिकर्ता थे।
हो गये आज तुम मौन! काल चक्र भी रुक गया है।
हे अटल !श्रद्धांजलि !ये राष्ट्रध्वज भी  झुक गया है।
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।  !      भावपूर्ण श्रद्धांजलि  !

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

# स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता महापर्व है,इसेआइए मिलकर मनायें।
अमर शहीदों को नमन कर, हम तिरंगा फहरायें।
           प्यारा है हमको ये तिरंगा,अपने प्राणों से भी ज्यादा।
           कभीआंच भी आने न देंगे, ये किया था हमने  वादा।
शान भारत मां की है,सौहार्द कादीपक जलायें।
स्वतंत्रता महापर्व है, इसेआइए मिलकर मनायें।
                    अमर शहीदों को नमन कर हम तिरंगा फह रायें।
                     स्वतंत्रता महापर्व है इसे आइए मिलकर मनाऐं।
 इतिहास के पन्ने पलट कर, नाप लो गहराइयां।
  कैसे थे वे लाल जिन्होंने , दी स्वयं कुर्बानियां।
                   उन शहीदों की धरा को,हम तिरंगों से सजायें।
                  स्वतंत्रता महापर्व है, इसेआइए मिलकर मनायें।
                        
वो गांधी नेहरू चन्द्रशेखर,वीरभगत सुभाषचंद्र बोस।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई,सब में आजादी का जोश।
                  जंगे आजादी फतह की, गीत उनके गुनगुनाऐं ।
                   स्वतंत्रता महापर्व है,इसेआइए मिलकर मनायें।

                           अमर शहीदों को नमन कर, हम तिरंगा फह रायें।

बुद्ध की धरती है भारत,यहाॅ अमन और शांति हो।
समतामय बन्धुत्व लेकरअबधम्म की नव क्रांति हो।

                 प्रबुद्ध भारत विश्व गुरु हो श्रेष्ठता अपनी दिखायें।
                 स्वतंत्रता महापर्व है, इसे आइए मिलकर मनायें।

                            अमर शहीदों को नमन कर हम तिरंगा फह रायें।

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...