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मंगलवार, 31 मार्च 2020

#ग्रेट पाइनीयर

लोगों का सांसारिकआवागमन शाश्वत सत्य है।इसलिए सभी को जीवन में याद रखना सम्भव नहीं ।कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमारे आदर्श होते हैं हमारे लिए एक उदाहरण होते हैं ।परिवार,समाज व राष्ट्र के लिए जिसने काम किया जिसकी अपनी पहचान रही हो उनकी यादें हमें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।परिवार के कुछ लोग जिन्होंने मुझे समाज व राष्ट्र के अर्थ को समझने के लिए प्रेरित किया उनमें बड़े भाई स्व0देबीराम मेरे एक आदर्श हैं।उनके जीवन के स्कूल के दिनों की मुझे कोई याद नहीं उनसे लगभग दस साल छोटा हूँ इसलिए शिर्फ इतना ही कि कफल्टा प्राइमरी पाठशाला में उनकी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण हुई।हां 1960 में जब वे सेना में भर्ती हो गये तब प्रशिक्षण के बाद जब घर आए तो हम फूला नहीं समाये थे।किताबों में सिपाही के चित्र होते उन चित्रों में हम अपने उस गौरव को देखते।हमको वह सिपाही की पोशाक बहुत अच्छी लगती थी।उनको देखकर हम भी लेफ्ट राइट, लेफ्ट राइट करते थे।
स्व.देबीराम का जन्म 15 नवम्बर 1940 को तल्ला विरलगांव सल्ट अल्मोड़ा में हुआ इनके पिता जी का नाम  स्व.फकिरराम तथा माता जी का नाम श्रीमती चना देवी था ये सात भाई बहन थे अपने माता-पिता की ये चौथी संतान थे जिनमें तीन बहनैं और चार भाई।देबीराम प्राथमिक शिक्षा के बाद मेरठ चले गए ।कुछ समय इधर-उधर काम केलिए भटकते रहे ।कुछ साल मेरठ में अपने भाई लोगों के साथ व्यतीत कर वह मेरठ में जहां सेना की भर्ती हो रही थी भर्ती हो गये।उन्नीस बीस वर्ष की उम्र में वे पायनियर कोर में भर्ती हो गये थे ।शारीरिक रूप से वे अनुकूल थे इसलिए वे  सेना में 15 नवंबर 1960 में बीस साल की उम्र में भर्ती हो गये।साल भर की ट्रेनिंग के बाद जब वे घर आए तो उनको देखकर खुशी से आंखें नम हो गई।वे जब भी छुट्टियों में घर आते खेतों पर काम करने अवश्य जाते ।हर काम बड़े अनुशासन से किया करते ।वे बड़े गम्भीर व्यक्तित्वके थे।अनावश्यक रूप से बातें नहीं करते,हां रेडियो पर गीत विविध भारती सिलौन से गाने अवश्य सुनाते थे।
          सन् 1962 में चीन भारत की जंग छिड़गई तब वे नये रंग रूट थे उनमें जोश उमंग था ।उस साल भारी अकाल भी पड़ा ।भारत ने जीत फतह की ।जब वे सीमा पर थे घरवाले बहुत चिंता में रहते थे ।जब डाकिया चिट्ठी लाता हम चिट्ठी पढ़कर सुनाते थे ।अक्षरत भाईअम्बाप्रसाद ही चिट्ठी पढ कर सुना देते।1964 में आपका विवाह श्रीमतीउदुली देवी ग्राम कनकोट से हुई ।आपके चार पुत्रियां और दो पुत्र का भरा पूरा परिवार रहा।1965 में  भारत पाकिस्तान की लड़ाई में आप रहे इसके साथ ही 1971 पुनः भारत पाकिस्तान की लड़ाई में भी आप सीमा पर वीरता से लड़े।आपको कई बार वीरता के पदकों से सम्मानित किया गया ।आपका सम्मान परिवार व समाज के लिए गौरव की बात है।
        कई संस्मरण आपके साथ होने की मुझे आज भी याद दिलाती हैं।1966जुलाय अगस्त की बात है मैं हाईस्कूल दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था आगे पढ़ने की कोशिश बेकार हुई।आर्थिक कमजोरी के कारण रामनगर रानीखेत जा कर पढ़ाई करना घर वालों के बस की बात नहीं थी।उन दिनों हमारे निकटवर्ती क्षेत्रों में इण्टर कालेज नहीं थे ।मैंने परिवार के अन्य भाइयों की तरह मेरठ जाने का फैसला किया।भाईसाहब देबीराम घर छुट्टियाँ बिता कर वापस अपनी यूनिट में जा रहे थे।उनके साथ में मेरठ के लिए चल दिया।भिक्यासैण से गाड़ी पकड़नी थी।उस दिन काफी बारिश हो रही थी।कुन्हील गांव के नीचे एक पुरानी पुल थी पार कर नदी के किनारे किनारे जाना था मैं पानी को देखकर डर रहा था ।भाई साहब ने मेरा हाथ पकड़कर आगे तक लाये।पनपौ आकर हम बस से रामनगर आये।बड़े भाई गुसांईराम जी मेरठ रहते थे वहां तक में उनके साथ आया ।शहर का कोई ज्ञान मुझे नहीं था ।भाई साहब को अपनी युनिट में जाना था वे चले गए।कुछ दिन मेरठ में रहा वापस गांव लौट आया हताश व निराश होकर कि शहर के लिए हमारे पास वैसी चतुराई नहीं हैं न शब्दों का उतना ज्ञान।
लगभग बीस साल सेना में देश की सेवा कर आप तीस नवम्बर 1980 को सेवा निवृत्त होकर घर लौटे ।घर में बहुत कुछ बदल गया ।9 मई 1980 को कफल्टा कांड हुआ था ।पूरा परिवार शोक संतप्त था।परिवार के लोगों से पूछताछ कर दुःख बांटते रहे।आपने हल्द्वानी में एक प्राइवेट कंपनी में सेवा शुरू कर दी थी ।मेरी नियुक्ति रामनगर एमपी इण्टर कालेज में हो गई थी ।कुछ दिन अस्वस्थ रहने के बाद 13 मार्च  1996 सत्तावन साल की उम्र में आपका देहांत हो गया ।आपका जीवन दर्शन हम सब के लिए प्रेरणा का रहा है ।आप सचमुच परिवार समाज के लिए एक ग्रेट पायनियर रहे ।आपको शत् शत् नमन करते हैं। 

 

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