को गौंक रहणी छा ?
तुम तलि बै अणी छा,
या तलि हैणि जणी छा।
आज क्वे नि पुछमय कहैं,
यस क्वे सवाल।
उदेख लैरौ सबोंकैं,-
दुनी में है रौ बबाल।
हालचाल देखि सुणि -
गुणि बेर सरकारैल कैरौ,
द्वी चार दिन भितेरै रैया,
भ्यार कोरोना ऐ रौ ।
मकैं याद छा पैलिया बखत,
इज कैंछी भ्यार बाग ऐ रौ ।
नकल मकल कणियों कैं,
चट पकडि बै खै जै रौ।
उ बखत बेडु तिमिल हिसाव,
गडपापडिक साग खैंछी।
ननतिनों कैं डराणै लिजी,
बुकिलौक तब बाग बनैंछी।
सच्ची कौनी कि हमु पारि-,
छव छेदर सब भ्यार बै आई ।
अपण दगड़ उ हुणी कम,
निहुणी कैं ज्यादा ल्याई ।
चतुर चलाक यूं काव ग्वर -
सब का सब भ्यारै बै आई।
हमर देश में आफू पधान,
हमुकैं गुलाम बनै गई।
भलि भलि चीज दगड़ ली गई।
हमूकैं सिसोंणैल झप्पकै गई।
आज दिन तक हम रटनैं रै गय,
उनरै रंग ढंग उनरै बोलि कैं।
गिटर विटर बुलाण सिख गय,
भूलि गयअपण दुदबोलि कैं।
कोरोना को रोना कोछ यां,
छुआछूत को रूणा छा।
माथा पारिक काव कलंक कैं,
अब हमुल य धूणों छा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें