सूरज नित्य उजाला दिखा जाता।
अटल है क्रम उसकेआने-जाने का,
उसको कभी कोई नहीं मिटा पाता।
उसे देखकर सब मुस्कुराया करते।
गणित जीवन का लगाया करते।
दिन रात महीने वर्षों इतिहास के,
पन्नों में उजालों को सजाया करते।
समय के साथ हमने बह जाना है।
अपनी बात को यहां कह जाना है।
घटाओं से घिरा सूरज भले ही हो,
नदी को तो पिघल कर आना है।
अवरोध न बनना किसी के राहों में।
पोंधों को पनपने दो कुछ छावों में।
गुलिस्तां खिल उठेगा इक दिन सारा,
महकता चमन होगा हमारी बाहों में।
"""@स्नेही""