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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

#नया सफर ***(41)

चुन लिया जो पथ मैंने,
उस पर चलना अच्छा है।
बार-बार गिरने से तो, 
उठकर संभलनाअच्छा है।
जहां की परवाह नहीं ,
कौन अच्छा बुरा कहता है। 
सच्ची बात तो बस यही,
सुपथ पे चलना अच्छा है । 

बुद्ध वही नित शुद्ध वही 
शान्ति का आधार रहा है।
मानवता पल्लवित होती 
मन भावन संसार रहा है।
यहां ऊंच नहीं कोई नीच, 
हर एक मन बराबर है ।
त्रिशरण शील प्रज्ञा का 
पथ सबको स्वीकार रहा है। 

मुक्ति का बोध हो जाय 
जिससे वह पथ अच्छा है ।
मुश्किलों में भी जो साथ दे,
अपना वो मित्र सच्चा है।
रूढ़िवादी बन करके यहां,
 नफ़रत बढाना ठीक नहीं ,  
अंधभक्ति संलिप्त दूरकर ,
खुद का बदलनाअच्छा है।



गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

#अलघतक चुनाव (21)

पंचायती चुनाव है रैई,हिट इजा हम लै वोट दी औंल।
तलि बाखई काकि जामें,हिट माठूं माठूं हम लै जौंल।

अलघत कैक भौजि कैक ब्वारि,कैक  घरवाइ उठि रै,
चुनाव पारि पढ़ी-लिखी च्यल चेलियोंलऔंगाव किट रै।

हम द्वी,हमर द्वी छैं,य जनुल मानि ली वी चुनाव लड़मीं।
बेरोजगार लिखी पढी लौंड ऊं चुनावक जुगाड़ करमीं।

जिति जैंल जो चुनाव, भो उनर थानम द्यू हमलै बौंल। 
पंचायती चुनाव है रैई,इजा हिट हम लै वोट दी औंल।

है रैआज कल यूं गौं पन, चार दिन चुनाउंक झरफर।
नि देखमय रौंसम एति, यूॅ कुतकी आँख दिन - द्योपर।

हिटन हिटनैं है जानी सब,यूं दगड़ी थाकि बेर अपरौ।
बेई मलि बाखईक बची दा, एति तलि भिड़ घुरी पड़ौ।

ऐलै फ्यर लै एकै परिवारम,द्वी द्वी झण चुनाव लड़मीं।
भ्यारक क्य कर सकनी,यां भितेरकैआपसमें झगड़मीं।

दिल्ली बै ऐरैं बल वोट दी हैंणि, हिटौ हमलै देखि औंल।
पंचायती चुनाव है रैई, हिट इजा हमलै वोट दी औंल। 

कैक जीत हैली कैक हार यूं चुनावौंल बिगै रौ य पहाड़।
गौं घर है रैंई यां उजाड़,दिल्लीवाव उठानी नेता कैं ठाड़।

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

#बहुजन नायक मान्यवर काशीराम

भारत रत्न बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर के विचारों एवं सिद्धांतों से लैस मान्यवर काशीराम ने कारवां को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।उनके प्रयासों वह सफलताओं ने उनको पिच्चासी प्रतिशत दबे कुचले गरीब शिल्पकार समाज का महानायक बना दिया।निस्संदेह उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अविस्मरणीय है।करोड़ों उनके अनुयायी उनको आज श्रद्धा से नमन करते हैं।मान्यवर कांशीराम जी का जन्म पंजाब में एक रैदासी गरीब परिवार में हुआ।ये दो भाई और चार बहनें थी।कांशीराम भाई बहनों में सबसे बड़े एवं पढ़े-लिखे थे।सन्1958 में विज्ञान से स्नातक परीक्षा पास कर' पूना रक्षा उत्पादन विभाग में वैज्ञानिक पद पर सरकारी सेवा में आ गये।
       दबे कुचले इन करोड़ों लोगों की कहानी लम्बी है जो उत्तर बैदिक काल प्रारंभ होती है,जब वर्णव्यवस्था कठोर और रूढ हो गई आम जनजीवन कर्म काण्डों से त्रस्त हो गया शिल्पी वर्ग अपमानित और जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर।जब मानवता तिल तिल कर मर रही थी तब महात्मा गौतम बुद्ध का अवतरण हुआ उन्होंने धम्म चक्र प्रवर्तन कर क्रांति का बिगुल बजाया।मानवता को जगाया ।पल्लवित पुष्पित किया।दुनिया को सत्य अहिंसा प्रेम बन्धुत्व स्वतंत्रता समानता का का उपदेश दिया।चारों तरफ बुद्धं शरणं गच्छामि धम्म शरणं गच्छामि संघं शरणं गच्छामि के उद्घोष से वातावरण गुंजायमान हो उठा।भारत ही नहीं विश्व में यह गूंज विस्तारित होने होने लगी कालान्तर में ब्राह्मण धर्म ने समाज को अपने आगोश में ले लिया।मनुवादियों के सामाजिक अत्याचार बढ़ने लगे।सामाजिक क्रमिक गैरबराबरी की मनुवादी व्यवस्था में सबसे अधिक शूद्र वर्ग अधिक त्रस्त वो शोषित रहा।दोहरी गुलामी के तीक्ष्ण लौह जंजीरों में छटपटाते मानुसों को देखकर ज्योतिबा फुले नारायण स्वामी पेरियार साहू जी महाराज कबीर रैदास जैसे हजारों लाखों क्रांति कारी समाजसुधारक शोषितों के मुक्ति का प्रयास कर संसार से अलविदा कर गये।क्रांति की इन कडियों में आज वे हमारे आदर्श हैं।मनुवादी व्यवस्था दुष्चक्र से समाज विखंडित रहा विदेशियों को भारत में शासन करने का मौका मिला।इसी गैरबराबरी के ढांचे की आड़ में विदेशियों ने भारत को लूटा।दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया ।समाज में फूट डालो राज करो के सिद्धांत पर चलकर खूब ऐश किया।शोषित समाज के ऊपर दोहरी गुलामी थी।अंग्रेजों की दमन कारी नीति के खिलाफ 1857 में स्वतंत्रता की प्रथम चिंगारी सुलगने लगी,जो शोला बन कर दहक उठी वीरों के अभूतपूर्व साहस व बलिदान से 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया।सत्ता के हस्तांतरण पर बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर इन करोड़ों वंचितों के भविष्य और स्वतंत्र भारत में उनके अस्तित्व के विषय में बहुत चिंतित थे।स्वतंत्रता आंदोलन में जहां मनुवादी स्वराज की बात करते वहां बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत स्वतंत्रता समानता की बात करते थे।अपने परम्परागत व्यवसायों से जुड़ा यह वंचित वर्ग  समाज में तिरस्कृत जीवन जी रहा था इस वर्ग के लोगों के जीवन की मान सम्मान स्वाभिमान की क्या गारंटी हो,कैसे उन्हें भारतीय होने का हक मिले इस बात को बाबा साहेब चिंतित थे।स्वतंत्र भारत के संविधान निर्मात्री सभा ने बाबा साहेब को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर संविधान लिखने का उत्तम अवसर प्रदान किया और इसे उन्होंने बखूबी निभाया। संविधान में शोषित समाज महिलाओं मजदूरों तमाम दबे कुचले गरीब नागरिकों के सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकास के लिए समान अवसरों की व्यवस्था संविधान में देकर समतामूलक समाज बना कर महान कार्य किया ।14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहेब ने नागपुुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया।6 दिसंंबर 1956 को उनका महापरिनिर्वाण हो गया । इसके बाद समाज में भारी रिक्तता आ गई।इस रिक्तता को मान्यवर कांशीराम साहेब ने पूरा किया।
    15 मार्च 1934 पंजाब राज्य में मान्यवर कांशीराम जी का अवतरण हुआ ।विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर पूना में वैज्ञानिक पद पर नियुक्ति पा कर राजकीय सेवा से सम्बद्ध हो गये।बाबा साहेब के विचार उन्हें उद्वेलित करते रहे इसी से उन्होंने राजकीय सेवा त्याग कर बाबा साहेब के सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया ।6दिसम्बर1978 को बामसेफ नाम से एक गैर राजनीतिक संगठन बना कर सरकारी सेवाओं से जुड़े अनुसूचित जाति, जन जाति, पिछड़े वर्ग तथाअल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारी कर्मचारियों को संगठित किया।"Pay back to society "की अवधारणा को लेकर अधिकारियों कर्मचारियों को अपने समाज के प्रति उत्तरदायी होने का बोध कराने का प्रयास किया।
 6 दिसंबर 1981 को दलित शोषित समाज संघर्ष समिति DS4 तैयार कर गांव गांव पैदल चल कर संघर्ष के लिए लोगों को जागरूक करने संगठित किया ।साइकिल रैलियों के माध्यम से लोगों के बीच गये।असंगठित वर्ग को संगठित किया बामसेफ के माध्यम से कैडर शिविरों का संचालन कर बहुजन क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया पिच्चासी प्रतिशत लोगों पर केवल पन्द्रह प्रतिशत लोगों की मनुवादी व्यवस्था को चुनौती दीऔर अपना राजनीतिक प्रयोग प्रारंभ किया ।14 अप्रैल 1984 को "बहुजन समाज पार्टी "एक राजनीतिक पार्टी का गठन कर सत्ता में अपनी हिस्सेदारी पाने के लिए संघर्ष किया।यह सत्य है कि मान्यवर कांशीराम साहेब विज्ञान के ही पारखी नहीं थे बल्कि उससे कहीं अधिक मानविकी विज्ञान के पारखी थे।उन्होंने भारतीय राजनीति में बहुत कम समय में क्रांति पैदा कर दी।एक छत्र शासन करने वाली पार्टियों को शासन करने के लिए नाकों तले चने चबवा दिए।राजनीति में गठबंधन सरकार की संस्कृति को जन्म दे दिया।उत्तरप्रदेश जैसे बड़े प्रांत में बहुजन समाज पार्टी का शासन एक बार नहीं बल्कि तीन बार रहा।अस्वस्थ होने के बाद मान्यवर राजनीति से अलग हो गए यद्यपि वे एक बार सांसद भी रहे। भारत के बहुजनों के महानायक मान्यवर काशीराम साहेब हमको कारवां आगे बढाने की प्रेरणा देकर हमसे सदा सदा के लिए अलग हो गए ।
9 अक्टूबर 2006 को लम्बी अस्वस्थता के बाद दिल्ली में आपका महापरिनिर्वाण हो गया ।
"जब तक सूरज चांद रहेगा, मान्यवर कांशीराम साहेब का नाम रहेगा "केवल बहुजन समाज ही नहीं सम्पूर्ण देश उनके कृतित्व के लिए मानवीय मूल्यों के सम्वर्द्धन के लिए उन्हें स्मरण करता है।माननीय कांशीराम साहेब के विचार मूल्य सिद्धांत उनका आचरण प्रजातंत्र का वास्तविक चित्रण करता है ।जातिविहीन समतामूलक समाज में ही "सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय"सुरक्षित रह सकता है ।धन्य हैं ऐसे महानायक शिल्पकार को।

रविवार, 6 अक्तूबर 2019

क्रान्तिवीर जयानन्द भारती (@)

थे शिल्पकारों का गौरव,वह वीर जयानन्द भारती,
श्रद्धा सुमनअर्पित कर, उनकीआइए उतारेंआरती।
त्याग की प्रतिमूर्ति रहे वे,मन में सेवा का भाव लिए ,
पाखंडवाद के थे विरोधी,वे गुरु कुल के विद्यार्थी।

परतंत्रता से त्रस्त जब, जनाक्रोश फूटने लगा था।
देखकर ,फिरंगियों का भी पसीना छूटने लगा था।
हरतरफ दुन्दुभी बजने लगी थी, जंगे आजादी की,
तब उस जंग में,हर एक भारतवासी कूंदने लगा था।

वीरों की थात बन गयी, कुमाऊं गढवाल की धरती,
जय जयकार का उद्घोष कर, उतारने लगी आरती।
ब्रिटिश सरकार के, दमन चक्र को रोकने के लिए  ,
सिर पर कफन बांध कर ,निकला जयानन्द भारती।

सत्रह अक्टूबर अट्ठारह सौ इक्यासी वह वीर जन्मा,
पौड़ी गढवाल अरकन्डाई, गांव की बनकर गरिमा।
छुआछूत की कुरीतियों से, बड़ा त्रस्त था जो समाज,
उन्हें जगाने कामआया,जयानन्द भारती का करिश्मा।

धन्य वह पट्टी सांवली बीरोंखाल, पौडी गढवाल की,
और आंचल मां रेबुली देवी, और पिता छविलाल की।
अस्पृश्यता का दंश जिसने,एक नहीं सौ सौ बार झेले,
महासंघर्ष की ताकत ,उसमें गम्भीरता बेमिसाल थी।

यहाँ एक ओर थी, फिरंगियों की दमनकारी नीतियां,
दूसरीओर थी ,इन मनुवादियों कीअसहज कुरीतियां।
वहअभय निकल पड़ा,मशाल इन्कलाब का लिए हुए,
नवयुग के नवनिर्माण को,तलाशने कुछ जानकारियां।

इतिहास के पन्नों पर है,पौड़ी काण्ड की कहानी भली,
फहराकर तिरंगा,जयानन्द बोले गोबैक मेलकम हैली।
वहाँ से सब फिरंगीअफसर,तब भागगये दुम दबाकर ।
उस वीरसपूत के मुखसे,भारत मांकी जैकार निकली।

उन्होंने लड़ी मनुवादियों से,डोलापालकी की ए लड़ाई,
कौन करसकता था शिल्पियों के,अपमान की भरपाई।
बीससालों तक लड़े केस,पर फिरभी कभी हार न मानी,
अन्तमें न्यायालय से उन्होंने,ससम्मान कानूनी विजय पाई।

नौसितंबर उन्नीस सौ बावन को,आ गईअवसान की घड़ी,
सम्पूर्ण उत्तराखंड शिल्पकारों केलिए,ये क्षति थी बड़ी।
संतप्त था हरएक,सबने हृदयसे कीश्रद्धांजलि समर्पित,
जुड़ गई उस क्रांतिवीर की,इतिहासश्रृंखला में इक कड़ी।

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...