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रविवार, 6 अक्तूबर 2019

क्रान्तिवीर जयानन्द भारती (@)

थे शिल्पकारों का गौरव,वह वीर जयानन्द भारती,
श्रद्धा सुमनअर्पित कर, उनकीआइए उतारेंआरती।
त्याग की प्रतिमूर्ति रहे वे,मन में सेवा का भाव लिए ,
पाखंडवाद के थे विरोधी,वे गुरु कुल के विद्यार्थी।

परतंत्रता से त्रस्त जब, जनाक्रोश फूटने लगा था।
देखकर ,फिरंगियों का भी पसीना छूटने लगा था।
हरतरफ दुन्दुभी बजने लगी थी, जंगे आजादी की,
तब उस जंग में,हर एक भारतवासी कूंदने लगा था।

वीरों की थात बन गयी, कुमाऊं गढवाल की धरती,
जय जयकार का उद्घोष कर, उतारने लगी आरती।
ब्रिटिश सरकार के, दमन चक्र को रोकने के लिए  ,
सिर पर कफन बांध कर ,निकला जयानन्द भारती।

सत्रह अक्टूबर अट्ठारह सौ इक्यासी वह वीर जन्मा,
पौड़ी गढवाल अरकन्डाई, गांव की बनकर गरिमा।
छुआछूत की कुरीतियों से, बड़ा त्रस्त था जो समाज,
उन्हें जगाने कामआया,जयानन्द भारती का करिश्मा।

धन्य वह पट्टी सांवली बीरोंखाल, पौडी गढवाल की,
और आंचल मां रेबुली देवी, और पिता छविलाल की।
अस्पृश्यता का दंश जिसने,एक नहीं सौ सौ बार झेले,
महासंघर्ष की ताकत ,उसमें गम्भीरता बेमिसाल थी।

यहाँ एक ओर थी, फिरंगियों की दमनकारी नीतियां,
दूसरीओर थी ,इन मनुवादियों कीअसहज कुरीतियां।
वहअभय निकल पड़ा,मशाल इन्कलाब का लिए हुए,
नवयुग के नवनिर्माण को,तलाशने कुछ जानकारियां।

इतिहास के पन्नों पर है,पौड़ी काण्ड की कहानी भली,
फहराकर तिरंगा,जयानन्द बोले गोबैक मेलकम हैली।
वहाँ से सब फिरंगीअफसर,तब भागगये दुम दबाकर ।
उस वीरसपूत के मुखसे,भारत मांकी जैकार निकली।

उन्होंने लड़ी मनुवादियों से,डोलापालकी की ए लड़ाई,
कौन करसकता था शिल्पियों के,अपमान की भरपाई।
बीससालों तक लड़े केस,पर फिरभी कभी हार न मानी,
अन्तमें न्यायालय से उन्होंने,ससम्मान कानूनी विजय पाई।

नौसितंबर उन्नीस सौ बावन को,आ गईअवसान की घड़ी,
सम्पूर्ण उत्तराखंड शिल्पकारों केलिए,ये क्षति थी बड़ी।
संतप्त था हरएक,सबने हृदयसे कीश्रद्धांजलि समर्पित,
जुड़ गई उस क्रांतिवीर की,इतिहासश्रृंखला में इक कड़ी।

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