यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 30 जुलाई 2018

# बरषने दो(53)

बरषने दो बादलों को आज जी भरकर ।
आने दो हवाओं को थोड़ा तूफान बनकर।
हम भी देखते हैं कितना दम है इनमेंआज,
खड़े हैं हम भी यहाॅ अपना  सीना तानकर।
                जानते हैं बादल दो-चार दिन बरसेंगे।
                इनको हवायें कहीं उड़ाकर ले जायेंगे।
                छोड़ जायेंगे जमीं अपनी खामोशियां।
                हम ही उनको खुशियाॅ लौटाने आयेंगे।
बादल नहीं होते, मगर झुलसाती गर्मियां-
होती ,ये हाड़ कपकपाने वाली वो सर्दियां। 
सीख लेते हैं बादलों से उड़ना आसमां में,
छोड़कर आ गये हैं जो अपनी हठधर्मियां।
               बहुत देखा है हमने भी बादलों का फटना।
               लोगों काअन्धेरों से भरे  राहों में भटकना ।
               मगर सम्भलते हैं अपनी राहों में वो अक्षर-
               जो भिज्ञ हैं जीवन में स्वयं सन्तुलन रखना।
               

शनिवार, 21 जुलाई 2018

पर्यावरण (54)


 
क्षीण होआवरण तो जनअसहज होता।
मनआवरण की मलिनता को देख रोता।
हर रोज सुन्दर आवरण की चाह लेकर,
मन स्वस्थ रहने को स्वप्न नया देख लेता।
आवरण की हो सुरक्षा रहे सुन्दरता भी। 
सुरक्षाअभियान है दिवस पर्यावरण की।
एक आवरण ही तो है हमारा पर्यावरण ,
जो सुरक्षा कर रही है हर प्राणियों की।

प्रकृति के उपहारों से सुसज्जित है धरा,
देखने की लालसा है इसे सदा हरा-भरा।
चाहते हैं परिपक्वता जन आचरण की।
हो हमारे सामने अचल हिमाल सा खड़ा।
आचरण ही धम्म है ये बात मेरे राष्ट् की।
सुरक्षा अभियान ये दिवस पर्यावरण की।
संकल्प लें अब कभी कोई वृक्ष न काटे,
करेंगे सुरक्षा हम हर एकअभ्यारण्य की।

यहाॅ लोगों ने प्रकृति पर बड़े जुर्म ढ़ाये हैं।
खूब दोहन कर उन्होंनेअपनेघर सजाये हैं।
मौजमस्ती में प्लास्टिक काअक्षय कचडा,
फैलाकर यूँ  बरबादियों के दिन गिनाये हैं।
हमें ही रोकना होगा संकट आपदाओं की।
सुरक्षा अभियान यह दिवस पर्यावरण की।
विश्व पर्यावरण दिवस पर मंगलकामनाऐं। प्रकृति प्रेम होऔर हो संवाद संरक्षण की।



          

रविवार, 8 जुलाई 2018

# बेचारी कविता

गांव से अलग उस बस्ती में, 
  यह बेचारी कविता रहती है। 
     दुत्कार तिरस्कार अपमान -
       वहां बहुत कुछ सहती है।
उसे विरासत में मिला कल,
  एक अदद घर शीलन भरा।
    परिवार समय में समा गया ,
     पहले मां औरअब बाप मरा। 
अब तो  घर  भी उजड़ गया,
  बस खाली  चिंता  है मन में।
    रातों की सिलवट जैसे कुछ, 
     बिखरी  हैं  यादें आंगन  में।
बस्ती की सीमा में  अब  तो,
   पीपल का  तरु उग आया।
     काम से लौटा करती जब वो,
        पाती है उस तरु से छाया।
इस तरुवर  के  नीचे  प्रतिदिन, 
   वह  अ आ क ख पढ़ती है।
    अपने बस्ती के बच्चों के संग ,
      वह मिलकर आगे बढती है।
उसने समय के साथ साथ,
  पढना लिखना सीख लिया।
    अपने मधुर स्वभाव से उसने,
       लोगों का दिल जीत लिया।
आजादी की परिभाषा अब,
    लोगों को समझाती है वह।
     स्वतंत्रता अधिकार हमारा,
      हर बच्चे को बतलाती है वह।
वह पढ़ती है वह लिखती है, -
  हर हक की लड़ाई लड़ती है।
    उस गांव से बाहर उस बस्ती में,
      आज मेधावी कविता रहती है। 
                              


शनिवार, 7 जुलाई 2018

आओ मेरी बस्ती में (56)

संसद को रास्ता यहीं से जाता है।
शायद तुमको याद नहीं।
तुम पिछली बार भी आए थे,
तुमने भी अपने पोस्टर बैनर लगाए थे।
शायद तुमको याद नहीं।
तुम कहते हो भारत अखंड हो ।
भ्रष्टाचारियों के लिए दंड हो।
फिर क्यों भारत खंड खंड हो रहा है ।
संसद निर्द्वन्द सो रहा है ।
निस्तब्धता क्यों है इन वस्तियों में।
क्यों आदमी बेजान हो रहा है ।
शब्दमकड़जाल मत बुनो।
वंचितों के स्वर सुनो।
यहीं अयोध्या है यहीं राम भी।
यहीं गीता यहीं संविधान भी ।
आओ मेरी बस्ती मेरे गांव में ।
उस विशाल पीपल की छांव में।
तुम्हारा तन मन शुद्ध होगा ।
हमारा भारत  प्रबुद्ध होगा ।
शांति अमन मानवता होगी ।
प्रेम बन्धुत्व समानता होगी ।
न कभी किसी में द्वन्द्व होगा।
भारत तभी अखण्ड होगा ।
आओ मेरी बस्ती मेरे गांव में।
उस विशाल पीपल की छांव में।

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

# विश्वास

जब घटाओं के आगोश में आकाश हो ।
मनअकेला तन्हा कोई नआस-पास हो ।
तुमको निर्भय होकर बढ़ना है निरन्तर -
नव सृजन के लिए मन में पूर्णविश्वास हो ।
            लगता है इन घटाओं से कुछ बारिश हो जाय।
            सूखी डाल को फिर कोई वारिस मिल जाय।
            अनगिनत कोपलें फूटें फूलों से चमन महके ।
            हवावों से कह दो अधूरी न ख्वाहिश रह जाय।

मंगलवार, 3 जुलाई 2018

# रखें स्वच्छता चारों ओर

हम रखें स्वच्छता चारों ओर ।
           अपना  घर हो या हो स्कूल, मजबूत हमारे हों उसूल ।
            घर स्कूल की करें सफाई इसी में सबकी छुपी भलाई ।
            बच्चो उठो अब हो गया भोर,रखें स्वच्छता चारों ओर ।
घर को स्वच्छ हर माँ रखती,सभी बच्चों में सद् गुण भरती ।
हमको चलना वही सिखाती।गिर गए अगर तो वही उठाती।
नहीं रहेंगे अब कभी कमजोर।हम रखें स्वच्छता चारों ओर।
         आन स्वच्छता मान स्वच्छता हो सबका अभियान स्वच्छता।
         स्वागत हो इसअभियान का,परिणाम भला हो इम्तिहान का।
         संस्कार जगा आलस्य छोड़,हम रखें स्वच्छता चारों ओर ।
        

रविवार, 1 जुलाई 2018

# मौत की डगर

जीएमओ की बस गिर गई, सैंतालीस लोग मर गये ।
एक झटके में कितने, परिवारों के सपने बिखर गये।
नैनीडांडा क्वीन गांव के पास ही, हुआ है यह हादसा ।
हंसते हुए निकले थे घरों से, क्यों काल आ गया सहसा ।
मच गई चित्कार खाई में, कुछ मौन हुए कुछ घायल थे ।
मरने वालों में, कुछ महिला बच्चे बूढ़े जवान सामिल थे।
इस होनी को अनहोनी को, हम भाग्य कहैं या भूल कहैं ।
किस किस को दोषी ठहरायें ,हम कैसे गुनाह कबूल करें ।
उत्तराखंड पृथक राज्य हो,हमने कितने सपने संजोए थे ।
उन जनसंघर्षों में सहभागी होकर कितने लाल खोये थे ।                                 भूल गये विकास की राहों को,दूर दराज पहाड़ी गावों को।
              बिजली पानी सड़क परिवहन शिक्षा की समस्याओं को ।
             बस नेता बनने की चाहत में,  सब मर्यादाएं तोड़ चुके हैं ।
             हैं चोर चोर मौसेरे भाई ,आपस में  सब गठजोड़ चुके हैं ।
           धिक्कार है ऐसे नेताओं को, यहाॅ जो झूठे गाल बजाते हैं ।
          सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली, कभी हज करने में न सरमाते हैं।
            नेता नैतिकता का पाठ छोड़ दे,तब सत्ता का मद चढ़ता है।
      सरकारों की नाकामी से ही यहाॅ अपराधों का दर बढ़ता है ।
हम भी देश के नागरिक हैं, हमभी हैं उतने ही उत्तरदायी ।
जीवन है अनमोल सभी का ,क्यों  करें कभी लापरवाही ।
घटना से आहत मेरा मन अर्पित करता है ये शब्द सुमन ।
हे चिरविश्रामी -शांति- शांति -शान्ति हो शांति नमन ।


कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...