बरषने दो बादलों को आज जी भरकर ।
आने दो हवाओं को थोड़ा तूफान बनकर।
हम भी देखते हैं कितना दम है इनमेंआज,
खड़े हैं हम भी यहाॅ अपना सीना तानकर।
जानते हैं बादल दो-चार दिन बरसेंगे।
इनको हवायें कहीं उड़ाकर ले जायेंगे।
छोड़ जायेंगे जमीं अपनी खामोशियां।
हम ही उनको खुशियाॅ लौटाने आयेंगे।
बादल नहीं होते, मगर झुलसाती गर्मियां-
होती ,ये हाड़ कपकपाने वाली वो सर्दियां।
सीख लेते हैं बादलों से उड़ना आसमां में,
छोड़कर आ गये हैं जो अपनी हठधर्मियां।
बहुत देखा है हमने भी बादलों का फटना।
लोगों काअन्धेरों से भरे राहों में भटकना ।
मगर सम्भलते हैं अपनी राहों में वो अक्षर-
जो भिज्ञ हैं जीवन में स्वयं सन्तुलन रखना।
आने दो हवाओं को थोड़ा तूफान बनकर।
हम भी देखते हैं कितना दम है इनमेंआज,
खड़े हैं हम भी यहाॅ अपना सीना तानकर।
जानते हैं बादल दो-चार दिन बरसेंगे।
इनको हवायें कहीं उड़ाकर ले जायेंगे।
छोड़ जायेंगे जमीं अपनी खामोशियां।
हम ही उनको खुशियाॅ लौटाने आयेंगे।
बादल नहीं होते, मगर झुलसाती गर्मियां-
होती ,ये हाड़ कपकपाने वाली वो सर्दियां।
सीख लेते हैं बादलों से उड़ना आसमां में,
छोड़कर आ गये हैं जो अपनी हठधर्मियां।
बहुत देखा है हमने भी बादलों का फटना।
लोगों काअन्धेरों से भरे राहों में भटकना ।
मगर सम्भलते हैं अपनी राहों में वो अक्षर-
जो भिज्ञ हैं जीवन में स्वयं सन्तुलन रखना।
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