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शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

भोर होने दो***(पी )


"""""""भोर होने दो """"""
मैं मजदूर हूँ बेशक,राह के पत्थर तोड़ने दो।
अन्धेरी बस्तियों में भी, थोड़ा भोर होने दो।
जाग कर फिर पंख, फड़ फड़ायेंगी पंछियां,
उजालों में उनको भी तो,पंख अपने धोने दो।

भला सन्नाटे का शहर,किसे अच्छा लगता है।
जहां अंधेरे में आदमी सौ बार गिर पड़ता है।
चाहता तो है वो भी उड़ना,स्वच्छंदआसमां में,
पर उजालों के लिए उसे दम भरना पड़ता है।

गुनगुनाता है गीत वो,जो गाये कभी जमाने में।
सूरत देख कर डरता है,खड़े सामनेआयने में।
मेहरबानी बड़ी हुई हम पर,अम्बेेेडकर जी की,
जिनकी जिन्दगी बीती,वक्त के चेहरे तराशने में।

शिल्पी का हथौड़ा हूँ, तोड़ दूंगा राह के पत्थर।
गुजरेंगे लोग राहों से ,समतामय बन्धुत्व लेकर।
मेरा यह प्रबुद्ध भारत, ये नया खुशहाल भारत-
होगा समृद्धशाली फिर , बुद्ध का संदेश देकर।


शनिवार, 5 सितंबर 2020

#सल्ट बारडोली -शहीदों को नमन ।(@)



वक्त सन् उन्नीस  सौ बयालीस ,
जब गांधी ने आह्वान किया था।
स्वतंत्रता की इस जन क्रांति को,
"करो या मरो "का नाम दिया था।
इस  स्वतंत्रता  के महा समर  में,
हर  बच्चा- बच्चा कूंद  पड़ा  था।
सिर पर बांधकर कफन क्रांतिवीर,
हरेक वृद्ध युवा निर्भीक खड़ा था।
तब  सल्ट  कहां था रुकने  वाला,
हर  वीर  सल्डिया  निकल पड़ा । 
घर से इन्कलाब का झंडा लेकर,
 निर्भय होकर सामने हुआ खड़ा।
हर  गांव से आकर  वीर  बांकुरे,
सभी  खुमाड़  गांव में जमा हुए।
आंखों में चमक ले आजादी की,
और दिलों में नया उत्साह  लिए।
जिला    कलेक्टर   जॉनसन  ने ,
जब खुमाड़ गांव का हाल सुना।
गुस्से  में  तिलमिला कर  उसने,
अपने हाथों से निज  सिर धुना।
तुरन्त  पुलिस  को  लेकर  उसने,
गांव  खुमाड़ को प्रस्थान किया।
रणसिंह    बजाकर  बिणदेव  ने,
जौनसन के आने का पैगाम दिया।
जब  खुमाड़ में  पहुंचा  जॉनसन,
वहां  वीर खीमानंद  खड़ा  हुआ।
उनके    पीछे  ही  उनका  भाई  ,
क्रांति वीर गंगा राम अड़ा हुआ।
गोरे  अंग्रेज  जॉनसन   निष्ठुर ने,
जब  फायर   का आदेश  दिया ।
वीर बहादुर  सिंह  चूड़ामणी  ने,
निर्भय अपना सीना तान दिया।
गोलियां दनादन चली वहां पर,
कुछ घायल कुछ शहीद हो गए।
भाग गया जॉनसन दुम दबाकर,
वीर सल्डिये इतिहास लिख गये।
अमर शहीदों को शत् शत् नमन, 
करते हैं श्रद्धांजलि अर्पित जन।
गौरवान्वित हो जाता है यह मन।
करके उन वीरों का कृत चिंतन।
"""""" ""@स्नेही""""""""""""










गुरुवार, 27 अगस्त 2020

शिल्पकार जाग

शिल्पकार जाग जाये,अंधकार भाग जाये,
नेक  बदलाव  आये, जब  ये  समाज  में। 
खुशियों के झूले होंगे,मन तब  फूले होंगे,
और संगठित  होंगे , एक  ही आवाज में। 

देख  कर भेद भाव,जीवन की डूबी नाव, 
शिल्पकार नाम पर,नहीं स्वाभिमान था।
भीम का संदेश पढ़ा, तब कुछ ज्ञान गड़ा।
समझ  में आया तब ,ज्ञान संविधान का।

चुप  चाप  रह  कर ,खुद  हार  मान  कर,
कौन है जो जीत पाया,जीवन के जंग को।
सोच  को बदल  कर, धम्म  पथ  चल कर, 
संगठित  रह  कर,  जीत  लेंगे  जंग  को ।









मंगलवार, 14 जुलाई 2020

बेबस आदमी***(पी )


"""""बेवस आदमी """""
कोरोना वाइरस को,देख कर डराहुआ ,
बड़ी मुश्किल में है, आज कलआदमी।
गांव घर शहर में , कोरोना के  कहर में,
बहुत मजबूर हो गया है,मजदूर आदमी ।

कल था जोकुछ पास,सबकुछ खोगया है,
भूखा पेट सो रहा है, काम दारआदमी।
भगवान नाम पर, पाखंड का काम कर,
ठगा जा रहा है आज, ईमानदार आदमी।

दुख सुख जीवन में ,आते धूप छांव जैसे,
काट रहा दिन यहाॅ , बेबसी में आदमी ।
कोरोना को रोना ही है, खाली पेट घर में,
थाली बजा रहा आज,हर भूखा आदमी ।

जीना है तो जंग उसे,लड़ना ही होगाअब।
चुपचाप बैठा है जो,कायर है वो आदमी।
दीप खुद बन कर,जलना है खुद उसे,
कल को महान होगा, वही एक आदमी ।

कालचक्र घूमरहा,कोरोना के नाम पर, 
सामाजिक दूरी अब, रख रहा आदमी।
छुआछूत भेदभाव, कलंक था माथे पर,
मूंह छुपाकर आज,भाग रहा आदमी ।

शनिवार, 20 जून 2020

मैं चला गांव अपने .....स




कोरोना से भयभीत और चिंतित हर पहर,
यहां दिख रहा है दौर नाजुक एक मंजर।
बेजान सा हो गया है अब तुम्हारा ये शहर,
मैं चला गांव अपने,तुम्हें मुबारक ये शहर।

मुट्ठी भर सपने लिए गांव से आया शहर।
लौकडाउन में कहीं सब गये हैं वो विखर।
हर तरफ सूनापन है वक्त की टेढ़ी नज़र।
मैं चला गांवअपने ,तुम्हें मुबारक येशहर।
 
सोच छोटी थी मेरी,छोड़आया था मैं घर।
बूढ़ी मेरी मां जहां याद करती हर पहर।
हो गया हूँ खुद अकेला कैसा है ये सफर।
मैं चला गांव अपने,तुम्हें मुबारक ये शहर।



शुक्रवार, 12 जून 2020

दोहावली***स

जैभीमअभिवादन से,जलते हैं जो लोग।
अक्षर उनसे ही बढ़े, छुआछूत का  रोग।
जो कहता पोथी पढ़ो, बनो हमारे  भक्त।
समझो ऐसे जौंक को,जो पी जाते रक्त ।

पोथी में भगवान के, चमत्कार के मंत्र। 
चाटे दीमक की तरह, वो प्रजा के तंत्र।
बामन की पोथी पढ़े,होये भक्त गुलाम।
करे प्रभु के नाम पर,वे ठगने का काम। 

मूलनिवासी जो पढ़े,बाबा का संविधान।
समतामूल समाज की,करते वे निरमान। 
पत्थर को भगवान का,मूरत समझे कोय।
समझो पत्थर की तरह,वो भी निष्ठुर होय।

चेले हैं जो भीम के,  नहीं मानते  हार।
धम्म चक्र प्रवर्तन को, रहते हैं  तैयार ।
वंचित के घर जाइए,सुनिए उनके हाल।
कोरोना लेकर गया,सारा उनका माल।

कोरोना के रोग से,घबराऐ नहिं कोय।
दो गज दूरी राखिये,साबुन से कर धोय।
मन में रखते मैल को,तन को करते शुद्ध।
वे मन अब कैसे बने,इस जीवन में बुद्ध ।

बुद्ध शरण में जो गये,पाये ज्ञान अपार। 
मानवता की रक्षा में, रहते  हैं  तैयार ।

बुधवार, 3 जून 2020

यूं शिल्पकार.......(4)..

पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार ।

अपण ढ़ुगोंकि थात पारि औंगाव किटनी ।
बड़ कृषाण गात लगै औरौं पीड़ उकेरिनी। 
गोरु बकर भैंसौंक टहल कै दूध दै बहार। 
पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार ।

जबअसोज कातीक कामक चुट पड़नी।
कहण महण टिपि गुठ्यारम भट्ट चुटनी।
मडू झुंगर  मानि लोगौंक भरनी  भकार,
पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार।

हौव दन्याव दातुल कुटव सब इनुल बनाइ।
हमर थान घर कुड़िबाड़ि छान इनुल लगाइ।
लोगोंकैं भितेर बैठै आफू रहय देहे  भ्यार।
पहाड़क पहरू बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार।

हमैरि पहाड़क संस्कृति सब छा इनरै लिबै।
हम ज्यौन जागत छोंआज तक इनरै लिबै।
हैं रंगत जब हनी खेल कौतीक बार त्योहर।
पहाड़क पहरू छैं बड़ सिदछैं यूँ शिल्पकार ।

जग न जमीन यूँ भूमि हीन पर भूमी पुजनी,
हर बार चुनाव में यूँ नेता इनुकैंणी खोजनी।
इनर बोटों पारि उनरि बनि  जैं एक सरकार, 
पहाड़क पहरू छैं बड़ सिद यूँ  शिल्पकार ।

आज ठुल छ्वट नेता इनर हिसाब लगानी।
वोट मांग हैंणि आनी इनर खुट पड़ जानी।
चुनाव जित बै सबोंक बदलि जां व्यवहार।
पहाड़क पहरू बड़ सिद छैं यूँ शिल्पकार।

सिद साद हमर यूॅ  शिल्पी सब भूलि जानी।
हिटन हिटनैं धारम बैआफी मूण घुरी जानी।
आमक चुसी हड़्यल जस खेती छैं यूँ भ्यार।
पहाड़क पहरू बड़ सिद छै यूँ  शिल्पकार ।
"""""""""""""""@स्नेही"""""""""""""""









रविवार, 19 अप्रैल 2020

# उल्लू का.....

उल्लू! यह कहकर उसने -
मुझको सम्बोधित किया।
उसके इस मृदुभाषी सम्बोधन से ,
मेरा थोड़ा रक्तचाप बढ़ गया।
कुछ देर बाद स्वतःही उतर गया।
लेकिन यह एक सवाल !
मेरा अन्तर्द्वन्द बन गया।
जो बार बार मुझे  चुनौती देता,
और मैं उत्तर खोजने लगता।
मैं शिल्पकार हूँ।
उजालों से क्यों डरता हूँ  ?
पेट भरने को कमाता हूँ।
शिल्पकार बताने में क्यों घबराता हूँ ?
संघर्ष करने से क्यों कतराता हूँ ?
 इत्यादि................ 
उलूक की तरह मुझे भी,
लक्ष्मी का वाहन समझा जाता है ।
चुनावी बैनरों में सजाया जाता है ।
दो चार नारीयल भेंट कर ,
मेरा गुणगान गाया जाता है।
मैं उल्लू ही बना रहता हूँ।
पर अब मैं उल्लू नहीं बनूँगा।
शिक्षित बनूँगा। संगठित रहूँगा।
उजाले से लड़ूँगा।मैं संघर्ष करूंगा।






बुधवार, 15 अप्रैल 2020

#अ से अम्बेडकर होता है** स


अ से अम्बेेेडकर होता है 

जागता है जीवन में कभी नही सोता है। 
महान विधिवेत्ता वो संविधान लिखता है।
वंचितों के न्याय की सदा पहल करता है।
इसी लिए तो 'अ 'से अम्बेेेडकर होता है।
रोशनी में हो कर भीअन्धेरों में रहता है।
आस्तिक हो बात नास्तिक की करता है।
हिन्दू जन्म लेता मगर हिन्दू नहीं मरता है ।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
वंचितों का मसीहा हक की बात करता है।
शोषण के खिलाफ वह लड़ाई लड़ता है ।
नारी सशक्त को हिन्दू कोड विल लाता है ।
इसी लिए तो'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
शिक्षित नहीं है वो जो परम्परा ढोता है ।
शिक्षा का अर्थ वो संघर्ष को बताता है।
तीन मंत्र देकर हमें चलना सिखाता है ।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
नये भारत सृजन का शिल्पकार होता है ।
अन्याय का सदा जो प्रतिकार करता है।
समानता के लिए वो बुद्धपथ खोजता है।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
भारत का मूल है वह भारत में रहता है ।
मनुवाद का विरोधी मनुस्मृति जलाता है।
शोषित व वंचितों का वही मुक्ति दाता है।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है।

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

#चेलेअम्बेडकर जी के

चेले अम्बेेेडकर जी के हम।
है कोरोना मिटाने की कसम।
हाथ धोते हुए,दूरी रखते हुए, 
बढ़तेजायें हमारे कदम।
चेले ................
बड़ा वाइरस भयानक हैये।
विश्व का जनसंहार है ये।
सैनेटाइजर लिए,मास्क पहने हुए,
हर मदद को बढाऐं कदम।
चेले ..........
कोई भूखा पड़ा हो कहीं।
भीम मित्र खड़ा हो वहीं ।
करने उनकी मदद,है करुणा का पथ,
हो करने मदद को ए दम।
चेले...........

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

#संगठित रहो

आज विश्व के ये देश,कोरोना से लड़ रहे हैं।
भगवान कोई नया चमत्कार,नहीं कर रहे हैं।
जग में अगर खोज ले,कोई महारोग की दवा,-
तो समझिए धरती पर विश्वगुरु उतर रहे हैं।
वक्त से ये लड़ाई हम संगठित होकर लड़ेंगे। 
शिक्षा केअवलम्बन से स्वाभिमान जगाऐंगे। 
समता,समानता और बन्धुत्व लेकर हृदय में,
प्रबुद्ध भारत को समृद्धशाली राष्ट्र बनाएंगे।

#शिक्षित बनो***स





दीप जलकर अन्धेरों को रोशनी देता है। 
समय के सितम सारे,स्वयं समेट लेता है। 
तमसोमाज्योतिर्गमय है सत्य जीवन का।
स्वयं दीपक बनो यह संदेश भीम देता है। 

शिक्षा केअवलम्बन से,सत्पथ मिलता है।
अन्धेरों से लड़ने का,हमें संबल मिलता है।
शिक्षित हो वंचित जन,है भीम का सपना।
शिक्षा हक होभीम संविधान में लिखता है।

संघर्ष की जो ताकत दे,वह सच्ची शिक्षा है।
मानवता जगाए मन में वह सच्ची शिक्षा है।
सब कुछ  समर्पित किया राष्ट्र को जिसने,
जो कर्तव्यनिष्ठा बनाता वह सच्ची शिक्षा है।


सोमवार, 6 अप्रैल 2020

#बेई रात#नौ बजे

बेई रात !
नौ बजे,नौ मिनट 
बघतैलि नि मारि फटक।
भितेर अन्ह्यार,देहेम उज्याव।
एक मोमबत्ति ,हमुल लै बाव।
रजकि बात रजै ज्याणौ।
समझी कैं क्य समझाणौ।
एति इतू ठुलि दुनी में- 
हमुल मनखी द्वीऐ देखी।
एक ज्यौन एक मरी-
हमुल इनरै किस्स लेखी।
एक हँसणी,एक रूणी ।
एक जागणी एक सींणी ।
काम कणी एक लुकणी।
एक  दीणी एक मांगणी।
एकैक जीत दूसरैकि हार।
फिरि लै द्वीऐ छैं लाचार।
भौल करला ,भौल हौल।
दूनी सारें तुमुकैं देखौल।
नौक करला नौक हौल, 
दुनी तुमु पारि थुकौल।
नौ बजे, नौ मिनट तक-
बेईरात एक स्वींण,नींद में।
मिलजुलि बै रहौ भागी- 
दिन कटनी उम्मीद में।

रविवार, 5 अप्रैल 2020

#पांच अप्रेल #नौ बजे #नौ मिनट(27)

घर कीअपनी देहरी से देखता हूँ, 
आज एक अद्भुत नजारा।
उतरकर आ गया मानो जमीं पर ,
नखत लिएआसमां सारा।
खड़े हैं लोग हाथ में दीपक लिए,
खोज रहे हैंअपने चैन को।
कोरोना महारोग व्यथित मन सोचते- 
हैं गुजारनेऔर भी दिनरैन तो।
आज तो प्रमाण है अपने जीवन्त का,
और आगे हम लड़ेंगे ये लड़ाई। 
हार नहीं मानेंगे जबतक सांस होगी,
एकता जन गण ने दिखाई। 
नौ मिनट के बाद फिर से लौट आई, 
रोशनी घरों में फिर सभी के।
शंख ध्वनि की पूर्णता के बाद फिर भी, -
कोरोना का भय मन में है अभी भी।




मंगलवार, 31 मार्च 2020

#ग्रेट पाइनीयर

लोगों का सांसारिकआवागमन शाश्वत सत्य है।इसलिए सभी को जीवन में याद रखना सम्भव नहीं ।कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमारे आदर्श होते हैं हमारे लिए एक उदाहरण होते हैं ।परिवार,समाज व राष्ट्र के लिए जिसने काम किया जिसकी अपनी पहचान रही हो उनकी यादें हमें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।परिवार के कुछ लोग जिन्होंने मुझे समाज व राष्ट्र के अर्थ को समझने के लिए प्रेरित किया उनमें बड़े भाई स्व0देबीराम मेरे एक आदर्श हैं।उनके जीवन के स्कूल के दिनों की मुझे कोई याद नहीं उनसे लगभग दस साल छोटा हूँ इसलिए शिर्फ इतना ही कि कफल्टा प्राइमरी पाठशाला में उनकी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण हुई।हां 1960 में जब वे सेना में भर्ती हो गये तब प्रशिक्षण के बाद जब घर आए तो हम फूला नहीं समाये थे।किताबों में सिपाही के चित्र होते उन चित्रों में हम अपने उस गौरव को देखते।हमको वह सिपाही की पोशाक बहुत अच्छी लगती थी।उनको देखकर हम भी लेफ्ट राइट, लेफ्ट राइट करते थे।
स्व.देबीराम का जन्म 15 नवम्बर 1940 को तल्ला विरलगांव सल्ट अल्मोड़ा में हुआ इनके पिता जी का नाम  स्व.फकिरराम तथा माता जी का नाम श्रीमती चना देवी था ये सात भाई बहन थे अपने माता-पिता की ये चौथी संतान थे जिनमें तीन बहनैं और चार भाई।देबीराम प्राथमिक शिक्षा के बाद मेरठ चले गए ।कुछ समय इधर-उधर काम केलिए भटकते रहे ।कुछ साल मेरठ में अपने भाई लोगों के साथ व्यतीत कर वह मेरठ में जहां सेना की भर्ती हो रही थी भर्ती हो गये।उन्नीस बीस वर्ष की उम्र में वे पायनियर कोर में भर्ती हो गये थे ।शारीरिक रूप से वे अनुकूल थे इसलिए वे  सेना में 15 नवंबर 1960 में बीस साल की उम्र में भर्ती हो गये।साल भर की ट्रेनिंग के बाद जब वे घर आए तो उनको देखकर खुशी से आंखें नम हो गई।वे जब भी छुट्टियों में घर आते खेतों पर काम करने अवश्य जाते ।हर काम बड़े अनुशासन से किया करते ।वे बड़े गम्भीर व्यक्तित्वके थे।अनावश्यक रूप से बातें नहीं करते,हां रेडियो पर गीत विविध भारती सिलौन से गाने अवश्य सुनाते थे।
          सन् 1962 में चीन भारत की जंग छिड़गई तब वे नये रंग रूट थे उनमें जोश उमंग था ।उस साल भारी अकाल भी पड़ा ।भारत ने जीत फतह की ।जब वे सीमा पर थे घरवाले बहुत चिंता में रहते थे ।जब डाकिया चिट्ठी लाता हम चिट्ठी पढ़कर सुनाते थे ।अक्षरत भाईअम्बाप्रसाद ही चिट्ठी पढ कर सुना देते।1964 में आपका विवाह श्रीमतीउदुली देवी ग्राम कनकोट से हुई ।आपके चार पुत्रियां और दो पुत्र का भरा पूरा परिवार रहा।1965 में  भारत पाकिस्तान की लड़ाई में आप रहे इसके साथ ही 1971 पुनः भारत पाकिस्तान की लड़ाई में भी आप सीमा पर वीरता से लड़े।आपको कई बार वीरता के पदकों से सम्मानित किया गया ।आपका सम्मान परिवार व समाज के लिए गौरव की बात है।
        कई संस्मरण आपके साथ होने की मुझे आज भी याद दिलाती हैं।1966जुलाय अगस्त की बात है मैं हाईस्कूल दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ था आगे पढ़ने की कोशिश बेकार हुई।आर्थिक कमजोरी के कारण रामनगर रानीखेत जा कर पढ़ाई करना घर वालों के बस की बात नहीं थी।उन दिनों हमारे निकटवर्ती क्षेत्रों में इण्टर कालेज नहीं थे ।मैंने परिवार के अन्य भाइयों की तरह मेरठ जाने का फैसला किया।भाईसाहब देबीराम घर छुट्टियाँ बिता कर वापस अपनी यूनिट में जा रहे थे।उनके साथ में मेरठ के लिए चल दिया।भिक्यासैण से गाड़ी पकड़नी थी।उस दिन काफी बारिश हो रही थी।कुन्हील गांव के नीचे एक पुरानी पुल थी पार कर नदी के किनारे किनारे जाना था मैं पानी को देखकर डर रहा था ।भाई साहब ने मेरा हाथ पकड़कर आगे तक लाये।पनपौ आकर हम बस से रामनगर आये।बड़े भाई गुसांईराम जी मेरठ रहते थे वहां तक में उनके साथ आया ।शहर का कोई ज्ञान मुझे नहीं था ।भाई साहब को अपनी युनिट में जाना था वे चले गए।कुछ दिन मेरठ में रहा वापस गांव लौट आया हताश व निराश होकर कि शहर के लिए हमारे पास वैसी चतुराई नहीं हैं न शब्दों का उतना ज्ञान।
लगभग बीस साल सेना में देश की सेवा कर आप तीस नवम्बर 1980 को सेवा निवृत्त होकर घर लौटे ।घर में बहुत कुछ बदल गया ।9 मई 1980 को कफल्टा कांड हुआ था ।पूरा परिवार शोक संतप्त था।परिवार के लोगों से पूछताछ कर दुःख बांटते रहे।आपने हल्द्वानी में एक प्राइवेट कंपनी में सेवा शुरू कर दी थी ।मेरी नियुक्ति रामनगर एमपी इण्टर कालेज में हो गई थी ।कुछ दिन अस्वस्थ रहने के बाद 13 मार्च  1996 सत्तावन साल की उम्र में आपका देहांत हो गया ।आपका जीवन दर्शन हम सब के लिए प्रेरणा का रहा है ।आप सचमुच परिवार समाज के लिए एक ग्रेट पायनियर रहे ।आपको शत् शत् नमन करते हैं। 

 

रविवार, 29 मार्च 2020

#सन्नाटा क्यों है...(पी )


""""""सन्नाटा पसरा है """"
जहां चहल-पहल रहती थी,वहांं ये सन्नाटा पसरा है।
लोगों के दिल में आज कहीं,सदमा ज्यादा गहरा है।
जो तारे रात में दिखते थे,अब वो दिन में दिखते हैं।
सुनसान शहर की सड़कों पर,इक्के-दुक्के मिलते हैं।
जो सपने रात में आते थे,अब दिन मेंआया करते हैं।
आखों में निंदियाआने को,अब गोली खाया करते है

कोरोना क्या हकीकत है या कोई मन का सपना है।
जो भी है वह एक चुनौती है,उससे हमको लड़ना है।
जो डरा है वही मरा है उसने इतिहास कहां लिखा है।
बदल रहा हो कालचक्र फिर वो कायर कहां टिका है।
कोरोना महामारी देश से,ये देश की जनता दूर करेगी।
स्वस्फूर्त जनता को करके,तब जनता की जान बचेगी।

शनिवार, 28 मार्च 2020

हालात

हालात शहर की देख चुप कैसे  रहूँ 
आग घर में लगी हो ताप कैस सहूँ।
कोरोना को रोना है चुपचाप रोने दो।
अब अपने शहर कोआबाद होने दो।

रविवार, 22 मार्च 2020

#कैसि बला छा(7)

गौं गुज्यर गलि शहर,बखत य सुनसान हैरौ।
दुनी में फैली महामारी, कोरोना भ्यार  भैरौ।
लोग बाग छैं चितौव,युं शंक घंटों कैं बजामी।
घर में घुसी घुसपैठी कें, तन्तर मन्तर लगामी।

डाक्टरों की राय छा , लसर पसर न करिया।
द्वी चार दिन मोहरिम बै, नजर भ्यार धरिया।
गौं गुज्यर गलि शहर कब तक सुनसान रैंल।
नजर बन्द छैं घरों में,भोव हैंणि ऊंभ्यारै ऐंल।

कभैं हार नि मानि हो,मिलबै अब जंग लड़ुल।
घुस पैठी कोरोना,त्यर जड़ों कैं हम उखाड़ुल।
त्यर जस कई  बार -बला हमू पारि  आई छा।
कमर बांधि बै दगड़ि ,हमुल लड़ाई  लड़ी छा।

य कोरोना महा बला,आज भ्यार बै पसरी रौ। 
इथैं उथैं जरा देखो कति,उ कोरोना   ठड़ी रौ।  
सबुकैं  है रै  फिकर। भ्यार भितेरक लोगों कैं।
भगवानों कैं भूलि गई को लगां उनर भोगों कैं। 

मंदिर मस्जिद बन्द औसान ऐरौ भगवानों कैं।
राहू केतु शनि लागी देखण लागी श्मशानों कैं।
बीमारी जोआज फैलि रौ,दुनी बतामों कोरोना। 
अब को लगां तन्तर मन्तर को  टुट का  टोना।

अपण सफाई अपण हाथ, हाथों कैं तुम धोना।
अपण घर कैं बैठी रौ,आफी भाजौल कोरोना।
सावधान रहौ घरों में,भ्यार पसरि रौ कोरोना।
दस बीस दिन घर रहौ ,तुम  जरा लै डरो ना।







शनिवार, 21 मार्च 2020

कोरोना कुमाउनी(8)

खबरदार ! 
आज भ्यार झन जया,
भ्यार कोरोना ऐ रौ बल।
भन कुनों पारि जब हाथ लगाला, 
साबोंणैंल हाथ धो लिया बल।
नन तिनों कैं घर कथ सुणैंया ,
कसिक मरौल कोरोना बल।
नाक मुख भलिक ढकि बै धरिया, 
भ्यार ऐ रौ कोरोना बल।
सारै देश में जनता कर्फ्यू, 
घर घर लोग बतामी बल।
थाली ताली बजै बजै बै, 
कोरोना वाइरस भजाणी बल।

# भ्यार कोरोना ऐ रौ(9)

तुम कोछा,कतिक छा, 
को गौंक रहणी छा ? 
तुम तलि बै अणी छा,
या तलि हैणि जणी छा।
आज क्वे नि पुछमय कहैं, 
यस क्वे सवाल।
उदेख लैरौ सबोंकैं,-
दुनी में है रौ बबाल।
हालचाल देखि सुणि -
गुणि बेर सरकारैल कैरौ,
द्वी चार दिन भितेरै रैया,
भ्यार कोरोना ऐ रौ ।

मकैं याद छा पैलिया बखत,
इज कैंछी भ्यार बाग ऐ रौ ।
नकल मकल कणियों कैं,
चट पकडि बै खै जै रौ।
उ बखत बेडु तिमिल हिसाव,
गडपापडिक साग खैंछी।
ननतिनों कैं डराणै लिजी,
बुकिलौक तब बाग बनैंछी। 

सच्ची कौनी कि हमु पारि-,
छव छेदर सब भ्यार बै आई ।
अपण दगड़ उ हुणी कम,
निहुणी कैं ज्यादा ल्याई ।
चतुर चलाक यूं काव ग्वर -
सब का सब भ्यारै बै आई।
हमर देश में आफू पधान,
हमुकैं गुलाम बनै गई।
भलि भलि चीज दगड़ ली गई।
हमूकैं सिसोंणैल झप्पकै गई।
आज दिन तक हम रटनैं रै गय, 
उनरै रंग ढंग उनरै बोलि कैं।
गिटर विटर बुलाण सिख गय,
भूलि गयअपण दुदबोलि कैं। 
कोरोना को रोना कोछ यां,
छुआछूत को रूणा छा।
माथा पारिक काव कलंक कैं, 
अब हमुल य धूणों छा।
 





शनिवार, 7 मार्च 2020

#हो लीआकत हम में(@)


इतनी हो लीआकत हम में,
  कि वतन मेंअमन रहने दें। 
    इन रंगों को बदरंग न करके,
      इसे खुशहाल चमन रहने दें।
हमारी मानसिक विकृतियां,
  खंडित करती हैं धर्म जातियां।
    गुलामी की जंजीरों से जकड़े, 
      गुजारे हैं हमने बहुत शदियां।
अब तो हो लीआकत हम में,
  सब मिलकर एक हो जाऐं।
    सम्यकता से उजले राहों पर,
      चलकर विश्व गुरु बन जाऐं।
ऐसी हो लीआकत हम में,
  हर मन आनंद में रम जाये।
    दिलों से नफ़रत मिटा करके,
      दिलों की दूरियां कम हो जाये।






#महिला दिवस(@)



नारी ने यह श्रृष्टि रची है।
      नारी से यह श्रृष्टि बची है।
          धरती सिंचित करती नारी।
             फिरभी हक से वंचित नारी।
पवित्र धरोहर है समाज की।
        नारीअसुरक्षित है आज भी।
            यदि सशक्त नहीं होगी नारी।
                तब कहलायेगी वह बेचारी।
नारी आज संकल्पित होकर,
        बढे सशक्तिकरण को लेकर।
           जाग उठे अब नारी संसय से,
               चढे शिखर वोआज विजय के।  
हक के हों हर पथ उजले।
   नारी समय की पहचान बने।
         इस धरती सेअंधकार मिटे।
             नारी शोषण अत्याचार मिटे।
                
              जाग उठे नारी संसय से,
                 चढ़े शिखर वह विजय के।
                  संघर्षों में चरण धरेअभय के,
                  पहिचान बने वोआज समय के। 


सोमवार, 2 मार्च 2020

#होली आई रे(पी )


""""होलीआई """
होली को!रंगों का त्योहार रहने दो।
  सबसे प्रेम मधुर व्यवहार रहने दो।
    जीवन के बदलते परिवेश में आज, 
      समय का सत्य स्वीकार करने दो।

ये होली बसन्त की मधुर उमंग है।
  स्नेहिल भावों से भरा अन्तरंग है। 
     परिवर्तन प्रकृति की शाश्वत धारा-,
       सद्भावनाओं से भरा अंग अंग है।

यहां न राग द्वेष की कोई कथा है ।
  और जाति धर्म की बात मिथ्या है।
    संकीर्ण सोच से भरी बदनियती की,
      कुत्सित परम्परा की एक व्यथा है।

मिल कर ज्ञान को विज्ञान बना दो।
  सम्मान से नारी का जीवन सजा दो।
    जीर्ण क्षीर्ण परम्पराओं को मिटाकर,
       भारत महान और प्रबुद्ध बना दो।

फिर होलिका बहन का दहन न हो।
   शोषित जन का कोई दमन न हो।
    सदा स्वस्थ सबल रहे राष्ट्र हमारा,
       सुखशांति से हर जन गण मन हो ।




गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

#आरक्षण***स


बहस बहुत होतीआरक्षण पर,समाधान नहीं कर पाते हैं।
जातिवादी मानसिकता के कारणआपस में लड़ जाते हैं।
क्यों नहीं मिटी यहअस्पृश्यता,यही सवाल आज खड़ा है।
क्या सोचा कभी किसीने ?अस्पृश्यता ने क्यों जकड़ा है।

यह जाति व्यवस्था थोपी ,किसने वर्णव्यवस्था कहकर। 
दास बनाये हैं मूलनिवासी,पत्थरों की प्राण प्रतिष्ठा कर।
परिवर्तन नियम प्रकृति का,विकास उसी का जो बदला।
शाश्वत नियमों को जाना जिसने,अन्याय उसी ने कुचला।

शाश्वत सत्य को जाना बुद्ध ने,भारत को प्रबुद्ध बनाया ।
मानवता की पूजा करके ,विश्व शान्ति का पाठ पढाया।
इसी भाव से भीमराव ने  गणतंत्रात्मक संविधान बनाया।
बहुजनों को प्रतिनिधित्व मिले,आरक्षण प्रावधान बनाया।

थी अस्पृश्यता दूर करने की ,संविधान में वचन बद्धता।
आजादी के अन्तराल तक,मिटी नहीं हैअभीअसमानता।
नहीं खोजा निदानअभी तक,फिर विरोध के स्वर क्यों हैं। 
संविधान को पढ़े बिना ही,आरक्षण हटाने मुखर क्यों हैं।

तन मन धन से यहाॅ सभी ने,इसआजादी की लड़ी लड़ाई ।
सबको सम्मान मिले देश में,है यही श्रेष्ठ और यही भलाई ।
मिटे कुत्सित वर्णव्यवस्था,येआरक्षण का यही निदान है।
प्रबुद्ध राष्ट्र हो अपना भारत, यही भारत का संविधान है।












शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

बुद्ध वंदना कुमाऊनी(11)

मैं अरहत सम्यक समबुद्ध कैं पैलाक करनू।
मैं अरहत सम्यक समबुद्ध कें पैलाक करनू
मैं अरहत सम्यक समबुद्ध कें पैलाक करनू ।

मैं बुद्धक सरण में जानू।
मैं धम्मक सरण में जानू।
मैं संघक सरण में जानू ।

मैं दुबारा बुद्धक सरण में जानू।
मैं दुबारा धम्मक सरण में जानू ।
मैं दुबारा संघक सरण में जानू।

मैं तिबारा बुद्धक सरण में जानू।
मैं तिबारा धम्मक सरण में जानू।
मैं तिबारा संघक सरण में जानू।

मानवता
मैं जीवहन्त्या नि करणक शिक्षा लिनू।
मैं दान करणक शिक्षा लिनू।
मैं चोरि नि करणक शिक्षा लिनू।
मैं व्यभिचार नि करण तथा चरित्र वान हणक शिक्षा लिनू।
मैं शराब नि पिणक शिक्षा लिनू।

सब जी रहैं।
सब सुखी रहैं।
सब स्वस्थ रहैं।

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

हिलियन्स एकेडमी

हिलियन्स एकेडमी हिंदी / अंग्रेजी माध्यम प्री प्राइमरी से कक्षा पांच तक विगत दस वर्षों से रामनगर के ग्रामीण क्षेत्र गोबरा बन्दोबस्ती जस्सागांजा में शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही है ।प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में स्थित विद्यालय चारों ओर लीची आम के बाग से घिरा हुआ है ।अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य है।
स्कूल मेें शिक्षण कार्यकेे लिए प्रशिक्षित अध्यापक अध्यापिकाओं की नियुक्ति की गई हैं।छात्रों के चहुंमुखी विकास के लिए अध्य्यापिकाऐं एवं विद्यालय प्रबंधन हर समय तैयार रहता है।बच्चों के लिए खेलकूद के लिए मैदान उपलब्ध है जहांपर बच्चे भलीी-भांति खेेेल सकें।
विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ।वार्षिकोत्सव तथा राष्ट्रीय पर्वों का भी आयोजन बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जाता है समस्त अभिभावक समारोहों में उपस्थित हो कर आनन्दित होते हैं।

सोमवार, 20 जनवरी 2020

गणतंत्र(12)

छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिना,
मिलजुलि रौंला जौंला अघिना।

जब जब हम आपस लड़,
भ्यारक मैंस एती आपड़।
द्वी सौ बरस ग्वरों अधीना,
आयो हमों पे भारी अदीना।

आयो हमों पे भारी अदीना।मिलजुलि रौंला जौंला अघिना।
छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिना,मिलजुलि रौंला जौंलाअघिना।

ग्वरोंक जब एति बढ़ों जुलमा।
विरोध कर हणि उठि गय हमा।
घरबार छोड़ि सब ऐगय अघिना,
जवान बुढ़व सब नन तिना।

जवान बुढ़व सब नना-तिना,मिलजुलि रौंला जौंला अघिना।
छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिना,मिलजुलि रौंला जौंला अघिना।


चन्द्रशेखर,भगतसिंह सुभाष,गांधी,
बलिदान दी बेर पायी आजादी ।
मिलिगे आजादी मिलगो सम्मान ।
अम्बेडकर लिख गय संविधान।

अम्बेडकर लिखगय संविधान,छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिना।
किलैकि चाणौं हमुलै पछिना,मिलजुलि रौंला जौंला अघिना।

अब हमेंछों जनता  हमें पधान।
हमर राष्ट्र अब हमरौ विधान।
हमरि आजादी हमर सम्मान।
अमर रह जो हमर संविधान।
 
अमर रह जो हमर संविधान,धन धन गणतंत्र धन हो विधान।
छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिना।मिलजुली बेर हिटो अघीना । 


सोमवार, 13 जनवरी 2020

#मा0नन्दराम बौद्ध

🌹🌹🌹अम्बेडकर विचारधारा से लैस मा0नन्दराम बौद्ध जी हमेशाअग्रणीय रहे हैं।रूढ़िवादी विचारों से ऊपर उठकर उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के लिए संघर्ष की अलख जगाने का प्रयास किया।जब कभी रामनगर में गोष्ठियों सभाओं या समाज सुधार सम्मेलनों का आयोजन होगा मा0नन्दराम बौद्ध जी हमेशा याद आयेंगे।लगभग 1983-84 में वे रामनगर में आये मूल कोटाबाग निवासी बौद्ध जी राजकीय सेवा में सहायक विकास अधिकारी पंचायत बाजपुर में कार्यरत रहे।अवकाश प्राप्त करने के बाद उनका सम्पूर्ण जीवन अम्बेेेडकर मिशन को समर्पित रहा।वे सन्  2010 के बाद राष्ट्रीय बौद्ध महासभा के सदस्य व उत्तराखंड के प्रभारी के रूप में पूर्ण रूप से कार्य क्रम करते रहे।अपने अध्ययन एवं चिंतन-मनन से लेखन को गतिवद्ध किया और बहुजनों का इतिहास के संदर्भ में दो पुस्तकों का प्रकाशन भी किया।
    प्रसन्नचित व्यक्तित्व के धनी बौद्ध जी व्यसनों से दूर रहते थे और साथियों को भी व्यसनों से दूर रहने को प्रेरित करते थे।ध्यान व्यायाम व सुबह-शाम घूमना उनकी दिनचर्या थी। हास्य व्यंग्य उनकी चर्चाओं में होता ही था।खूब मनोविनोदी बौद्ध जी उत्तराखंड के शिल्पकार समाज के लिए आर्य समाज आन्दोलन उचित नहीं मानते थे।उनका मानना था कि इससे शिल्पकार समाज और अधिक मानसिक गुलाम हुआ है।उत्तराखंड शिल्पकार समाज के लिए आज बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर जी द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धम्म उचित है।वे बामसेफ के रामनगर संयोजक भी रहे ।कई कैडर शिविर संचालित किए ।
   आपका जन्म  3 मार्च 1940 कोटाबाग में हुआ।यहीं शिक्षा प्राप्त की 14 जनवरी 2016लगभग पचहत्तर वर्ष की उम्र में उनका परिनिर्वाण हो गया ।आज बौद्ध जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे अपनी शिक्षाओं के लिए हमेशा हमारे हृदय में रहेंगे।उनके परिनिर्वाण दिवस पर उन्हें शत् शत् नमन।🌹🌹🌹

बुधवार, 8 जनवरी 2020

अपणि बोलि-भाषा(14)

कतुक भौल अपण मुलुक,कतु मिठि छा दुदबोलि।
हमुकैं बिगाड़ि गई जो ,डाव लागि जो उनरि झगुलि।
के अपणि मति बिगड़ि के हमुकैं भ्यारक बिगै गय।
भौल बखतक इन्तजारम,येति नन तिन भूकै रह गय।

हम घर कुड़ि छोड़ि पेट भर हैंणि शहर ऐ गय।
एतिक फरफराटम हम लै एतिक शहरी है गय।
एतिक रंगचंगाटम हमअपण बोलि भूलि गय।
शहरोंक भीड़ भड़ाकम हम लै इफनें डोई गय।

कोशिश करमों यांअपणि दुद बोलि सिख हैणि।
क्य खबर क्यहौं कब लौटण पडौल पहाड हैंणि।
आजकल लेखण लैरैं,अपण दुद बोलिक गीत।
खोजण लैरें ढोल दमाऊ हुड़ुक बिणाइ संगीत।

सायद के छा इनुमें आजि लै,गौं रिश्तोंक मिठास।
छोड़ि बै ऐगय जनोंकैं उनरि लैरैं हमुकैं निशास।
अपणि बोलि भाषा अपणि पछ्याण,हम बनोंल।
शहरोंक कैं उत्तराखंडी नयी गीत संगीत सिखोंल।

हमरि संस्कृति हमरि पछ्याण,रैगे अपण उ पहाड़।
जाकें लिबेर चौड़ चाकव हैरैंछी ऊं मारमें वां डाड़।
दद भूलिक आदर नि निभै सक सब बगै दी गाड़। 
लम्ब नाक लगै बेर लै नि उठ सक आजतक ठाड़।

झ्वड़ चांचरि न्योलि चैत्वाल हुड़ुकैकि थापम छाजी।
हुड़ुकैकि घमघमाटम वां  हुड़ुकी  पछिल छैं आजि।
हिटो हिकौव लगाओ उनू परि येति अब बखत ऐगो।
इसिक छटकी कब तक रहला सब एक दगड़ि लागो।

जरा सोचों हम कतुक ठुल,और ऊ कतुक छुअट छैं।
जोअघिलअघिल हिटमैं,उनरै पछिल हमर रुअट छैं।
हमों हबै ऊं छ् वट किलै?उनुकें अपण जस बनाओ ।
वघतक पारि हाथ पकड़ि उनुकैं लै उज्याव दिखाओ।










कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...