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शनिवार, 20 जून 2020

मैं चला गांव अपने .....स




कोरोना से भयभीत और चिंतित हर पहर,
यहां दिख रहा है दौर नाजुक एक मंजर।
बेजान सा हो गया है अब तुम्हारा ये शहर,
मैं चला गांव अपने,तुम्हें मुबारक ये शहर।

मुट्ठी भर सपने लिए गांव से आया शहर।
लौकडाउन में कहीं सब गये हैं वो विखर।
हर तरफ सूनापन है वक्त की टेढ़ी नज़र।
मैं चला गांवअपने ,तुम्हें मुबारक येशहर।
 
सोच छोटी थी मेरी,छोड़आया था मैं घर।
बूढ़ी मेरी मां जहां याद करती हर पहर।
हो गया हूँ खुद अकेला कैसा है ये सफर।
मैं चला गांव अपने,तुम्हें मुबारक ये शहर।



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