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शनिवार, 20 नवंबर 2021

मुक्तक

गीत लिखने हैं तो अक्षर खोजने होंगे।
संघर्ष करने के लिए अश्रु पोंछने होंगे।
कभी बात नहीं बनती चुपचाप रहने से,
जब प्रश्न उठने हैं तो उत्तर सोचने होंगे।

लोग ऐसे हैं जो कभी प्रश्न नहीं करते।
रह भरोसे भाग्य के चुप-चाप सह लेते।
तरस आता मुझे उनकी ये नादानी पर ,
बात कहना चाहते पर कह नहीं सकते।
@स्नेही 20-11-21

प्यार के ना बोल समझे कौन है ऐसा।
जानवर भी जानता है प्यार की भाषा।
जानकर भी नफरतों के बीज बोऐं जो,
कैसे करेआदमी उनसे न्याय की आशा।

पत्थरों को तोड़ता हर रोज जो मजदूर।
अन्धविश्वासों में उलझा हो गया मजबूर।
लाचार हो कर वो खड़ा है भाग्य केआगे,
इसलिए होता रहा शोषण उसका भरपूर।
@स्नेही 21-11-21

 
 

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

चर्चा ए चुनाव



हो रही चर्चा कि किसको वोट दोगे,
कांग्रेस को, भा.ज.पा, या आप को।
स.पा.ब.स.पा.भी कहीं कमतर नहीं,
इन निर्दलियों का भीअस्तर नाप लो।

इस बार अब तो वोटरों ने ठान ली है,
वोट नहीं देना है किसी के  नाम पर।
जाति धर्म परिवार से ऊपर  उठे जो,
सब वोट देंगे अबकी उसके काम पर।

गुरुवार, 30 सितंबर 2021

उजाला दिखा जाता!

सुबह आता चमकता चला जाता।
सूरज  नित्य उजाला दिखा जाता।
अटल है क्रम उसकेआने-जाने का,
उसको कभी कोई नहीं मिटा पाता।

उसे देखकर सब मुस्कुराया करते।
गणित  जीवन का  लगाया  करते।
दिन रात महीने वर्षों इतिहास  के,
पन्नों में उजालों को सजाया करते।

समय के साथ हमने बह जाना है।
अपनी बात को यहां कह जाना है।
घटाओं से  घिरा सूरज भले ही हो,
नदी  को तो पिघल कर  आना है।

अवरोध न बनना किसी के राहों में।
पोंधों को पनपने दो कुछ छावों में।
गुलिस्तां खिल उठेगा इक दिन सारा, 
महकता चमन होगा हमारी बाहों में।
"""@स्नेही""



गुरुवार, 16 सितंबर 2021

स्कूल की घंटी

कितनी आनंददायिनी, 
होती थी स्कूल की घंटी -
चाहे प्रार्थना की घंटी हो,
या हो छुट्टी की घंटी ।
बेसब्री से इंतजार करते थे,
स्कूल पढ़ने वाले बच्चे।
पिछले दो साल से -
नहीं बज रही है यह घंटी।
कभी छुट्टी की घंटी का इन्तजार।
उछल कूद कर करते थे इजहार।
स्कूल के नन्हे बच्चे! 
आज पहली घंटी का इन्तजार,
तरसती निगाहों से ।
किताब पाठ्यक्रम स्कूल, 
इन शब्दों को बच्चे गये हैं भूल।
याद कराया गया है,
 शिर्फ मोबाइल।
इसी पर चल रहा है,
आधा अधूरा स्कूल।





बच्चे व खेल

नींद तभी आती बच्चों को ,
जब   वे  खेला  करते   हैं।
माँ से आँख मिचौली करके,
घर   से  निकला  करते  है।

स्कूल  हमेशा  ही जीवन  का,
सृजन का उत्तम साधन होता।
मिलते  रोज  जहाँ   सहपाठी, 
गुरु का नित्यअभिवादन होता।

समय  से  अन्जान हमारे बच्चे,
चुप- चाप  घरों   में   बैठे   हैं।
शिक्षा  की  इस  व्यवस्था  पर,
वक्त   ने  ही  कान  उमैठे   हैं। 

उठते  हुए  सवालों  का  हल,
आओ    मिलकर  खोजें  हम।
जीवन के  इस   परिवर्तन  में,
सम्यकता  की   सोचें    हम।

बच्चे राष्ट्र कीअनमोल धरोहर,
तन-मन धन सब इन पर वारें ।
अखण्ड   राष्ट्र  भारत के हित,
हम  शिक्षा  की  नीति  सुधारें।




  

रविवार, 5 सितंबर 2021

कुशाग्री

कुसुम  की हो तुम सुरभि पहचान,
सम्यकता लिए हो स्नेहिल वितान।
यह मुस्कुराना है तुम्हारी हकीकत,
तुम्हारी राह हों यूं ज्ञान से विज्ञान।

शालीनता  में तुम सदा आगे रहो,
जीवन में सदा फूल ‌‌‌‌‌‌‌‌सी मुस्कुराओ।
स्वागत करो हर पल हर खुशी का.
हर खुशी को लक्ष्य तक ले जाओ।

ग्रीष्म वर्षा शरद है ऋतु तुम्हारी हो,
जीवन में  सदा विजय  तुम्हारी हो।
मेरा आशीर्वाद मेरी सद्भावनाऐं हैं,
यह  जन्मदिन तुमको मुबारक हो।


सोमवार, 30 अगस्त 2021

चुनावी रणभेरी

बज  उठी  चुनावी  रणभेरी, 
सम्भाल लिए हैं तीर कमान।
सजने लगी  सेनाऐं  सबकी,
सेना पति  देने लगे हैं बयान।
"कह रहे साथियो उठ जाओ,
गप्प मारोजितना मार सको।
प्रजातंत्र  को  गड्ढे में  तुम, 
गाड़ो जितना गाड़ सको।" 
संसद  की मर्यादा  तोड़  चुके,
तिरंगे को किया तार  तार।
पक्ष- विपक्ष  ये सभी दलों के,
सब  नेता  गण थे  शर्मसार ।
उतर गये फिर सब  समर में,
लज्जा  का  कोई  भान  नहीं।
राज नीति  की  प्रतिद्वंद्विता में,
कोई  मान सम्मान कहीं ।
अब कोई  दूध के धुले नहीं हैं,
हैं  एक  ही थैली  के चट्टे -बट्टे।
खबरदार जागरूक  मतदाता,
कभी लालच में  पैर  न  रपटे।
धर्म  जाति  की बात  करे जो,
उसको  समझो  सबसे  झूठा।
करता  बुराई  औरों  की  जो,
उसने  भी  जनता को  लूटा।
कौन -कौन  दल बदलू  हैं ये -
कौन -कौन   रहे  भ्रष्टाचारी। 
 बहकावे  में तुम मत  आना, 
मतदान की रखना समझदारी।







रविवार, 29 अगस्त 2021

कहाँ गये तुम कृष्ण

कहां गये तुम कृष्ण कन्हैया।
कहां  तुम्हारी  वह  बंशी  हैं।
आज बजा दो  बंशी अपनी।
बाहर खड़ा एक विध्वंसी है।
बड़ी  कथाऐं  सुनी  तुम्हारी,
प्रेम, दया, और  शक्ति  की। 
रक्षा करने को आते थे तुम,
धरती  पर अपनी भक्ति की।
कोरोना का तांडव मचा  है,
घर घर आज यहाॅ धरती में।
क्या कोई  ताकत  नही अब,
रह  गयी  तुम्हारी  शक्ति में।
अबला की  मर्यादा  लुटती,
आज  यहां हर चौराहों पर।
नाम  तुम्हारा  लेकर  लूटते -
वो विध्वंसक  हर राहों पर।
आकर नृत्य दिखाओ अपना,
बंशी  की धुन  सुनाओ  तुम।
करके पाखंड का नाश अब,
भारत अखंड बनाओ तुम ।

बुधवार, 25 अगस्त 2021

मुन्शी हरिप्रसाद टम्टा जयन्ती

हे  श्रमण  संस्कृति के वाहक, 
शिल्पकारों के जननायक तुम, 
सम्मानित मुंशी राय बहादुर से 
हो हरि प्रसाद महानायक तुम।
हे भीमरावअंबेडकर साहब के,
विचारशील महा प्रशंसक तुम।
शत् शत्  नमन हमारी तुमको,
आज ही हुए थे अवतरित तुम।
वंचित समाज के स्वर बनकर,
जन मानस में मुखर हुए तुम। 
शिल्पकारों के प्रदर्शक हो कर,
लड़ते रहे आजीवन भर तुम।
शिक्षा संगठन और संघर्ष  से, 
करते रहे ये राह उजागर तुम।
स्वतंत्र व स्वाभिमान से जीयें, 
बन गये  स्नेह के  सागर तुम।







मंगलवार, 24 अगस्त 2021

बेचारे कुत्ते

आज गांव से शहरों में ,कुत्ते ज्यादा रहते हैं।
कुछ गलियों में घूमें, कुछ महलों में रहते हैं।
कुछ कुत्ते  हैं डरे डरे,कुछ कुत्तों से डरते हैं।
सच तो यही है गांव के कुत्ते मजे में रहते हैं।

गांव छोड़कर जब अपना,हम शहर आते हैं।
हमें शहर के रूखे सूखे,सपने हसीन भाते हैं। 
यहांआदमी से ज्यादा,कुत्तों का रुत होता है।
इसीलिए तो कुत्ता भी बड़ा सयाना  होता है। 

एक महाशय सुबह सुबह रोज घूमने जाते हैं।
साथ में अपने उन दोनों कुत्तों को ले जाते हैं।
हिन्दी हो या अंग्रेजी सब बातें वो समझते हैं।
ओरिओ टौमी मोती आपस में खेला करते हैं।

एक बात है कुत्ते जात-पात नहीं माना करते।
भाई-चारा है कि वे एक थाली में खाया करते।
पढ़े-लिखे इन्सानअभीआपस में भेद करते हैं। 
अस्पृश्यता से ग्रसित होकरआपस में लड़ते हैं।










 

मंगलवार, 17 अगस्त 2021

सुबह देखा,
आज बडी़ भीड़ थी,
चौराहे पर ।

शायद बच्चे,
स्कूल जाने लगे हैं, 
अब फिर से ।

स्कूल की बस,
चौराहे पर रुकी,
रामू उतरा।

बच्चे बस में,
सावधानी से चढ़े,
चलते बने।










रविवार, 15 अगस्त 2021

हमारे आस-पास

जो दूर रहकर भी हमारे पास  रहता है।
रिश्ता उसी से ही हमारा खास रहता है।

मिलते बहुत हैं ऐस जिन्दगी में अक्सर, 
वो एक जिस पर हमें विश्वास रहता है। 

बिछुड़ने का  गम हमें बहुत होता यूँ तो,
मगर एक वो जो गम चुपचाप सहता है।

जिधर देखो उधर वोअक्श नजरआता है, हकीकत ये कि वो हम पर नजर रखता है।

आइए यहां जरा नजारा देखिए आस-पास,
कैसा मौसम सावन का  हर पहर रहता है।





शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

आजाद भारत

आजाद भारत देश,दुनिया का न्यारा देश,
थात देश  प्रेमियों  की, दुनियाँ में एक है ।
रंग रूप अलग है , एकता  की झलक है,
भेद-भाव  होते  हुए ,अनेक  में  एक  है।

बरषों  गुलाम  रहे,  खूब  अपमान  सहे, 
गुलामों के भी गुलाम,लोग यहां जीते थे।
आजादी की जंग जब,रहे एक संघ सब ,
भुलाकर भेद-भाव, लोग जान   देते  थे। 

एक साथ चलकर, अहिंसा के बल पर ,
देश  प्रेमियों ने यह,आजादी दिलायी है।
सर पे कफन बांध, हाथ मैं तिरंगा साथ,
वीर  बलिदानियों  ने, रोशनी जलाई  है।

भारत आजाद देश ,रखें  शुद्ध  परिवेश ,
प्रबुद्ध भारत अब,   इसको    बनायेंगे ।
शहीदों को है नमन ,देश में रहे  अमन ,
सुरक्षित संविधान ,की  सौगंध खायेंगे ।



सोमवार, 9 अगस्त 2021

भारत मेरा देश है

दिल की हर धड़कन कहती है, भारत मेरा देश है। 
सत्य अहिंसाऔर शान्ति का, रहा यहां परिवेश है।
दिल की हर धड़कन ------------- 
श्रमशील संस्कृति हमारी, आदर्श कर्म ही पूजा है।
प्रकृति की अनुपम विरासत, नहीं विश्व में दूजा है। 
बदनियती से लूटा हमको ,मन में भर दिया द्वेष है।
दिल की हर धड़कन कहती है, भारत मेरा देश है।
दिल की हर धड़कन -----------
देश प्रेम की आग दिलों में,नित्य निरन्तर रहती है।
धर्म जाति की राजनीति ही, मन मेंअन्तर करती है।
छुआछूत का रोग आज तक ,यहां युगों का शेष है। 
दिल की हर धड़कन कहती है, भारत मेरा देश है।
दिल की हर धड़कन ----------------     
अशिक्षा के  कारण ही तो, यहाँ  कुप्रथा फैली  है।
आजादी के बाद अभी तक, हरेकआंचल  मैली है। 
दो हरी व्यवस्था पनप रही  है,  गैर बराबरी शेष है।
दिल की हर धड़कन कहती है, भारत मेरा देश है।
दिल की हर धड़कन ----------------
     """@स्नेही """

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

शिक्षा

हिंदी कविता Magic of poetry 
विषय ----शिक्षा 
स्वरचित कविता  एन.आर.स्नेही 
रामनगर नैनीताल उत्तराखंड 
**********************
गुरु शिष्य  के बीच अन्तरंग प्रक्रिया है ,
  चली आ रही यह सीखने की क्रिया है। 
   गुरु से मिले जो ज्ञान हमें वह दीक्षा है।
    कर्तव्य बोध हो जाय  सच्ची शिक्षा है।

शिक्षा को नित भाषा सिंचित करती है, 
  स्वर-व्यंजन से  वह विकसित होती है। 
    कर्मवीर की शक्ति दायिनी ही शिक्षा है,
      कर्मों की ही मुक्ति दायिनी ही शिक्षा है।

अन्धकार में ज्योति दायिनी शिक्षा ही है,
  वंचित कीअधिकार दायिनी शिक्षा ही है।
    अपने  मन  की अभिव्यक्ति शिक्षा ही है।
      राष्ट्रप्रेम  का  बोध हो जाना शिक्षा ही है।

पढ़ना लिखना और समझना शिक्षा ही है।
  आपस में भाई-चारा  बढ़ाना शिक्षा ही है।
    घर-घर  शिक्षा दीप जलाना शिक्षा ही है ।
      राष्ट्रप्रेम के संस्कार जगाना शिक्षा ही है ।

सच्ची शिक्षा वही जो जाने स्वतंत्रता को।
स्वाभिमान से जीये, कुचले परतंत्रता को।

बुधवार, 7 जुलाई 2021

अंधेरों से निकलना है रोशनी की तलाश हो।
अपनों से मिलने की हर मुलाकात खास हो।
निगाहों  में  घूमती  रहे हर वक्त वो  मंजिल- 
जिसको पाने का जुनून व हौसला पास हो।
"""@स्नेही """
देख रहे  मूँह सब, एक दूसरे का अब,
बातें  खूब  बना  रहे,लोग  घर  घर में।
सरकार विजन की,है डबल इंजन की,
चल नहीं पा रही है, राज  के सफर में।
कुछ दिनऔर चले,फिर चले या न चले,
जाने कैसा हाल होगा,चुनावी लहर में।
समय की मार पड़ी,है बेरोजगारी खड़ी,
परेशानी  बढ़  रही, कोरोना  कहर  में।
"""@स्नेही"""
लड़ने के बहाने बहुत हैं पर क्या फायदा।
सुलह कर लेना ये जीवन का हो कायदा।

सोमवार, 28 जून 2021

मानसून

मंच -हिंदी कविता Magic of poetry 
दिनांक 28/6/2021 विषय --"मानसून "
रचयिता -एन.आर.स्नेही रामनगर नैनीताल
 उत्तराखंड 
-------------------- ----------------------------------
मानसून नहींआया अभी,मन में है सूनापन। 
गर्मी से राहत पाने को,बैठा हूँ मैं घर आंगन।

उमड़ घुमड़ कर जब,मेघ गरजता है नभ में।
बिजली के गर्जन का,वो भय रहता है सब में।

झम झम बरषते मेघ,मन मयूर नांचते मन में।
हरियाली छा जाती,खेतों और वन उपवन में।

शोर मचाने बच्चेआते,घर से बाहर गलियों में।
थोड़ी देर राहत मिलती,जानेंआती फलियों में।

धरती को हरियाली देती, मानसून  उपहारों में। 
खेतों व खलिहानों में,सुख सावन के फुहारों में।

जाओ जल्दी मानसून,झमाझम बर्षो धरती पर।
प्रकृति मेंअमरता लाओ,मानवता को धरती  पर।


रविवार, 27 जून 2021

मानसून


जून से सितम्बर तक मेरे देशवासी,
  इन्तजार करते हैं सब मानसून का।
    टकटकी लगाए बैठे है अन्नदाता, 
      कब गगन घेर लें मेघ मानसून का।
दूर पहाड़ों से मैदान तक  मेघों का,
  हाल जानने सब देखते  हैं आसमां।
    आकर जब मेघ खूब बरसने लगे,
      लोगों को लगे धरती ये खुशनुमां।
कृषि की प्रधानता हो जिस देश में,
   सिंचाई के साधनों की हो न्यूनता।
    मानसून पर निर्भर हो जहां किसान,
      कितनी कठिन है जीवन की पूर्णता।
मानसून आकर जो समय पर बरषते, 
  खुशहाल  किसान अभिनन्दन करते।
    समृद्धिशाली है  वही राष्ट्र विश्व भर में,
      जहाँ कभी भी लोग भूख से नहीं मरते।



शुक्रवार, 25 जून 2021

छत्रपति शाहू जी महाराज



सामाजिक लोकतंत्र के आधार स्तम्भ,
महानायक छत्रपति शाहू जी महाराज।
मनुवादी व्यवस्था से पीड़ित समाज के,
बहुजन नायक का जन्म दिन है आज।

जाति विहीन  समाज के पक्षधर थे जो,
आओ  चिंतन मनन स्मरण करें उनका।
अस्पृश्यता भगाओ,शिक्षा दीप जलाओ,  
ये आदर्श संकल्पों का वरण करें उनका।

ब्राह्मणवाद को देकर चुनौती बढ़े  आगे ,
बिखरे समाज को ये नई रोशनी दिखाई।
इतिहास के पन्नों में बन्द हैं जो आज भी, 
जिन्होंने स्वतंत्रता की परिभाषा बतायी।

शत् शत् नमन कोटि-कोटि हम वंदन करें।
छत्रपति शाहू जी महाराज का स्मरण करें।

गुरुवार, 24 जून 2021

वंचित

एक आदमी के पास रोटी नहीं,
   रहने को न उसके पास मकान।
     सामाजिक अधिकारों से वंचित,
       वह बेचारा है,कहाँ करे विश्राम ?

मतदाता है वो बेेेचारा है देश का,
   हाथ फैलाकर माँग रहा है भीख।
      आजादी के नाम  पर वंचित को,
       अपनी  भाषा में दे जाते हैं सीख। 

नेताजी जिनसे वोट मांगने जाते,
   उनको तो  वे कहते  हैं  मतदाता।
     जिनसे मांग- मांग  कर घर भरते,
      नेताजी बन जाते हमारे अन्नदाता। 





शनिवार, 22 मई 2021

मैं भाव हूँ।

तू   बिन्दु   तो   लकीर  हूँ   मैं ।
तू   दाता  तो   फकीर  हूँ    मैं।
तू   बीज  है   तो  वृक्ष  हूँ    मैं।
तू   चक्षु है तो  दृश्य    हूँ    मैं।
तू   भाव तो   अल्फाज हूँ    मैं।
तू  संगीत तो हर साज हूँ   मैं।
तू   चित्र तो कलाकार हूँ    मैं।
तू    रोग  तो  विकार हूँ     मैं।
तू   गूंज तो  पुकार हूँ      मैं।
तू  रक्त तो तलवार हूँ      मैं।
तू अन्त तो शुरुआत हूँ    मैं।
तू मेघ तो वरषात।   हूँ     मैं।
तू  तिलक  ललाट   हूँ       मैं।
तू द्वार है तो कपाट हूँ।    मैं।
तू  दर्द तो आघात हूँ।      मैं।
तू आश तो विश्वास हूँ।     मै
तू  विचार तो संवाद हूँ।     मैं।
तू कुछ नही बकवास हूँ।    मैं।
तू सत्य है तो इतिहास हूँ।    मैं।
तुम थोड़ा तो अथाह।   हूँ       मैं।
तुम प्रकृति सम्यक भाव हूँ    मैं।
"""""""भावना कृति '""""""

सोमवार, 17 मई 2021

नई सुबह स

एक नया सूरज निकला आसमां में,
  एक नई सुबह उतर आई धरती पर।
    मन प्रफुल्लित रोम रोम सिहर उठा,
      वो सुबह नई किरण थी अम्बेेेडकर। 
सूरज को देख नखत छुप गये सारे ,
  रोशन हुआ घर अब हर आदमी का। 
    कुप्रथाओं का शिकार था युगों से जो,
      स्वाभिमान जाग गया आदमी का। 
अन्धेरों में चमकते रहे हजारों जुगनू ,
   फिर भी न हुआ ये उजाला मयस्सर।
      गुलामी की बेड़ियो  खनकती रही,
        नहीं हुई कृपा कभी वंचितों पर। 
धम्म की रोशनी से विश्व जगमगाया,
  बढ़ता रहा वो मानवता के पथ पर।
    भीमराव ने जगाई धम्म की रोशनी,
      कर गये उपकार बड़ा बहुजनों पर।
एक नया सूरज निकला आसमां में,
  एक नई सुबह उतर आई धरती पर।
    फैला गये धम्म व विज्ञान का परचम,
     नयी सोच के बीज बो गये अम्बेेेडकर।

एक बला*** स

झांक कर अपने झरोखों से,
  लोग कह रहे बाहर शोर है।
    सुनसान पथ पर एक छाया,
      लगता है जैसे कोई चोर है।
मूंह बन्द किए दूर खड़े लोग,
  उस छाया को देख डर रहे हैं।
    फूल रही सांसें बढ़ रही धड़कन,
     खड़े खड़े लोग यूँ ही मर रहें हैं। 
कौन जाने छाया ये क्या बला है।
  काल का यह चक्र नहीं टला है।
    सावधान रहिए व घर पर रहिए, 
      इसी में ही तो हम सबका भला है।

गुरुवार, 6 मई 2021

माँ

          
हमको देती है जो अपनी जुबां,
  अद्भुत स्नेहमयी होती  है 'मां'।
    ममता त्याग की वह प्रतिमूर्ति, 
      देती जीवन में हमको स्फूर्ति।
जब कभी भूख से संतप्त होते,
  गोद मां के बैठआंचल भिगोते।
    गिर पड़े तो मां आकर उठाती,
      हमें राहों पर चलना सिखाती।
नींद न आए  लोरियां सुनाती,
  रात को चन्दा मामा दिखाती।
    स्वयं भूखी प्यासी रह जाती,
      बच्चों को भूखा नहीं सुलाती।
प्रथम शिक्षिका मां संस्कार जगाए।
  जीवन में हमको व्यवहार सिखाए ।
    कोटि-कोटि कृतज्ञ रहैं हम मां के ।
      नतमस्तक नमन चरणों में मां के।
""""""""""स्नेही """""""
 
 

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

मैं कैसे भूलूं ?(पी )

""""मैं कैसे भूलूँ"""""
तुमको !और-
तुम्हारी स्नेहिल मुस्कान को,
मैं कैसे भूलूं ?
तुम तो-क्षितिज के पार चली,
मैं तुमको कैसे छूं लूं ?
तुम कल तक-
 मेरे साथ खड़ी थी,
कोरोना से जंग लड़ी थी।
मुझे हौसला देते देते,
तुम स्वयं जंग हार गई।
मुझको तुम पछाड़ गई।
अबअकेला मैं हूँ पथ में, 
मैं कैसे इससे लड़ पाऊंगा।
घिरा घटाओं से आसमां,
प्रतिबिंब कैसे पकड़ पाऊंगा।
मेरा संयम !जोअभी शेष है।
यह वर्तमान !यही विशेष है।
स्मृति स्नेहिल ,
नव काव्य रचा लूं।
स्मृति शेष को,
अब खूब सजा लूं
""""""""स्नेही """"""""


शनिवार, 24 अप्रैल 2021

तंत्र को रोना(पी)

""""तंत्र को रोना """"""
मृत्यु आज  सामने खड़ी हमें डरा  रही।
  प्रकृति भिन्न रूप में छड़ी हमें दिखा रही।
    वीभत्सता मृत्यु की कथा भी कुकृत्य की, 
      कोरोना के नाम पर सरकार बलि चढ़ा रही।
          मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
धर्म जाति नाम पर भी राजनीति चल रही।
  प्रजातंत्र में अनीति खूब  फूल  फल  रही।
    चारों ओर पड़ रही कोरोना कहर की मार,
'      अच्छे दिनों कीआशा व्यवस्था विफल रही।
          मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
शिक्षा व स्वास्थ्य की दशा देश में बिगड़ गई।
  सरकार के इस तंत्र मेंशोषण प्रवृत्ति बड़ गई।
    मुश्किल है शोषण रोकना जनता के सजग हुए,
      जाग कर बदलनी होगीअब राष्ट्र की दिशा नई।
        मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही।
अब समस्त जनता का इस तंत्र को रोना हुआ।
  एक-एक सांस के लिए जनता को मरना हुआ।
    जर जर व्यवस्था स्वास्थ्य की जहां लोग मर रहे।
      लाशों की दलाली में ये सत्ता सीन पेट भर रहे।
   मृत्यु आज सामने खड़ी हमें डरा रही है।

   """"""""""""""""स्नेही """"""""""""

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

फिर लौट आया कोरोना (पी)

""""फिर लौट कर आया""""
फिर लौटआया काल बनकर कोरोना।
  जिसके लिए है हर आदमी को रोना।
    लौकडाउन से बेबसी का आलम ऐसा,
      जान बचाने को नहीं मिल रहा कोना।

हो गई है दहशत आदमी के दिल में।
  फंस गयाआज वह बड़ी मुश्किल में।
    हर तरफ है कोरोना का कहर पसरा,
      जरा देखिए वह छुपा किस बिल में।

कितने ही घर जिनका चमन लुट गया।
  कितने ही साथियों का संग छूट गया।
    लाशों में लगा है यहां लाशों काअम्बार,
     श्मशानों में लाशों का भी दम घुट गया।

इनआँखों ने देखा है मौत का नजारा।
  मत पूछो कितना तड़फा दिल बेचारा।
    मुसीबत में अच्छा नहीं विचलित होना,
      धैर्य ही है सबका यहां एक मात्र सहारा। 
"""""""""""स्नेही """"""""




शनिवार, 17 अप्रैल 2021

फिर आ जाना***स

श्रेय-प्रेय झंझावातों से मुक्त, 
चिर विश्राम में हो गई सुसुप्त ।
जागोगी ! धरती में पद रखना,
तुम स्वप्निल रथ से उतरना।

प्रिये आकर ज्योति जला जाना, 
तुम फिर सृजन पर्व मना जाना।

कर्मभूमि है शक्ति पर निर्भर,
चलना होता है सम्भलकर।
तन दुर्बल होकर थक जाता,
जीवन पथ में रुक जाता है।

विश्राम करे फिर कुछ पल तन।
तभी कर सकते हैं शक्तिअर्जन। 

तुम यादों का भंडारण कर गये, 
यूँ हमसे हंसते हमसे बिछुड़ गये।
हमको तो पल पल होगा स्मरण ,
बड़ा मुश्किल है करना विस्मरण।

तुम आकर ज्योति जला जाना, 
तुम फिर सृजन पर्व मना जाना ।



रविवार, 11 अप्रैल 2021

मेरी गठरी (पी)

""""""मेरी गठरी """"
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी। 

बड़े जतन से रखा मैंने इसेअब तक।
  ऐसे ही रखूंगा सांस चलेगी जब तक।
    खट्टे-मीठे इसमेंअनुभव हैं जीवन के।
      दर्द भरी हैं साँसें इसमें उत्पीड़न के।  
       भावों से भर पूर सजाकर बांधी गठरी।
         सौंप रहा हूँ तुमको मैं यह अपनी गठरी।
       
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी।

मैली कुचैली जैसी भी है मेरी ही है।
  भारी हल्की जैसी भी है मेरी ही है।
    इसमें कितने दर्द भरे हैं कैसे कह दूँ।
     कितनों को एहसास कराए कैसे कह दूँ।
      तुमसे जितना मिला उसीकी है ये गठरी।
        सौंप रहा हूँ तुमको मैं यह अपनी गठरी।
        
फटी पुरानी जैसी भी है है इक गठरी।
रहे हिफाजत से हमेशा अपनी गठरी।


प्रेम बाती(पी)

""""""""प्रेम बाती """""
मेरे दिल मेरी धड़कन मेरे ईमान में है जो। 
मेरे जीवन की हर सुबह हर शाम में है जो।
प्रेम सागर में उठती हुई लहरों का स्पन्दन,  
सम्यकता भरी प्रेम की  मुस्कान में है जो।

शायद यही चाहत मेरे प्रेम का इजहार हो।।
धड़कनों में  बेताबी किसीका इन्तजार हो।
दिल में जो कसक टीस उठती न देखने में,
शायद वही मोहब्बत  किसी का प्यार हो।

तोड़ तिमिर के द्वार जब मैं राह पर निकला।
राह चिकनाथा बहुतऔरमैं राह में फिसला।
हालात खुद की देख सोचता सहारा मिले, । संघर्ष की राह में वो प्रेम का प्रतिफल मिल।

यूँ बहुत हैं इस दुनियां में मगर तुम एक थी।
खूबसूरत,समझदार व बहुत सरल नेक थी।
तुम्हारे मुस्कुराने से बदली है ये दुनियां मेरी,
मुस्कुराते राह बताना तुम्हारी अदा एक थी। 
 

अनछुए पन्ने(&)

अभी इतिहास केअनछुए पन्ने हैं बाकी।
  कुछ सवालों के जबाब ढूढने हैं बाकी।
   राष्ट्रभक्तों से इतिहास यहां भरा पड़ा है,
    उनकी राष्ट्रभक्ति के प्रमाण ढूंढ़ने हैं बाकी।

सोने की चिड़ियां भारत की सुनी कहानी।
  देशी हुकमरानों ने लूटी इसकी जवानी।
    मुकद्दर बेच शहनशाह होने की ख्वाहिश, 
       लुट गई विरासत हमको मिली  गुलामी।

सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े।
  जातियों की ऐंठन में अभीतक हैंअकड़े।
   आजादी की जंग में नहीं धर्म जात देखी,
     मगर इतिहास में कुछ रह गये हैं पिछड़े।

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

कोरोना महाकाल। स

हों धर्म गुरु या भक्तजन,
   कोरोना के हैं सभी चपेट में।
   अस्पतालों में जनता बेचारी,
      हैं सब डाक्टरों की लपेट में।

भोलेनाथ चुपचाप हिमाल में,
  राम लला का यही हाल है।
    कुम्भ में डुबकी लगान  कुछ,
     सामने खड़ा कोरोना काल है।

आ गई घड़ी अब संयम की,
  मजबूत इरादे कर लेते हैं।
   मानवता के हित हम सब,
    सत्पथ पर बुद्ध के चलते हैं।

विश्वास स्वयं का जाग उठे,
  कर्तव्य परायणता पनप उठे।
   ज्ञान विज्ञान के शोध कर्म कर,
    बांट लें शान्ति के फल मीठे।

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

मन बहल जाता है (10)

उठाता हूँ कलम तो मन बहल जाता है।
जयभीम से मेरा कदम सम्भल जाता है।
मेरा जय भीम है उन पाठकों को अपने,
जिनके हौसलों से भय निकल जाता है।

लिखते रहें अभी विमर्श है बिखरा हुआ।
वंचितों का इतिहास भी है बिसरा हुआ।
कुछ हौसलाअफजाई  हो इस संघर्ष में,
यहां चारों तरफ मनुवाद है पसरा हुआ।

कंटक भरे पथ आज सारे छोड़ दो तुम ।
चलो उस राह जहां हित खोज लो तुम।
हल-चल तो होगी ही यहां इस समन्दर में,
हौंसले के साथ एक पत्थर फैंक दो तुम।
"""""""""स्नेही """"""

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

वंचित के स्वर (पी)


जोआदमी जीवन के घुमावदार राहों पर,
जीर्ण क्षीर्ण परम्पराओं के,
अनसुलझे पहेलियों के भारी बोझ लेकर अंधेरों से गुजरता है।
वोआदमीअपनी छाया से डरने लगता है।
प्रश्न करने से कतराता है।
स्वयं को भाग्य भगवानभरोसे छोड़ देता है।
शायद इसी लिए वह वंचित रह जाता है।

जब आदमी के जीवन में
अन्धेरे को चीरता हुआ उजाला आता है।
उसका अस्तित्व गरमाता है।
वह कुछ सपने देखने लगता है ।
अपने को ताकतवर समझकर,
उसमें स्वाभिमान जागने लगता है।
तभी वह आदमी वंचितों के न्याय के लिए संघर्ष करने लगता है ।
'अ'से अम्बेेेडकर जानने लगता है ।
जय भीम का अर्थ समझने लगता है।
तभी !वंचित आदमी-
अंधेरों से लड़कर,दुश्मनों से भिड़कर, 
कुपरम्पराओं को तोड़कर,
आदमी से आदमी को जोड़कर।
संघर्ष के लिए अग्रसर होता है ।

रविवार, 4 अप्रैल 2021

चुनावी नशा. स

है गजब का नशा चुनावी,जो मतदान के बाद उतरता।
पी ली कभी जोअधिक तो,कुछ वक्त उतरने में लगता।

आम,मध्यावधि या उपचुनाव,रहता इनमें सब प्रभाव।
ग्राम प्रधान एम पी,एम एल ए,है सबका यही स्वभाव। 

हर चुनाव वोटों की खेती,जाति धर्म के बिना न होती।
नशे में बहकते कदम नेता के देख बेचारी जनता रोती। 

उड़ान नशे में भरते हैं नेता,नहीं दिखाई देता आसमान।
लुड़क पड़ते चन्द कदमों पर उन्हें दिखाई देता श्मशान।


मंगलवार, 23 मार्च 2021

शहीद दिवस **



इतिहास हमारा गौरवशाली , 
  देता हमको नित्य सुयश।
    शत् शत् नमन शहीदों को हो, 
     अमर रहे शहीद दिवस।
सुखदेव राजगुरु भगतसिंह,  
  हो गये शहीदों के सरताज ।
    फांसी के फंदों को चूम कर-
      चढ़ गये हंसते सूली आज।
इन वीर सपूतों ने गोरों का,
  कर दिया  घमंड सब चूर चूर।
    मिलकर अपनी ताकत के बल,
      किया देश छोड़ने को मजबूर।
ये आजादी के अमर परवाने,
   रच गये इतिहास गौरवशाली।
    उनके त्याग बलिदान से मिली,
       हमें आजादी की खुशहाली। 
अक्षुण्ण बनाये रखने को अब, 
   जन गण संकल्प जगाना होगा।
      शहीदों के सपनों के भारत में,
         समतामूलक समाज बनाना होगा।

शनिवार, 20 मार्च 2021

दर्दे एहशास ***स




तुम्हें देखा एक जमाना याद आया।
भूला हुआ वह खजाना यादआया।
तलाशने लगा मैं उन लम्हों को जब,  
उनमें तुम्हारा मुस्कुराना याद आया।

यूं दुख तो बिछुड़ने का बहुत होता है।
ये मन भी कभी हंसता कभी रोता है।
बहुत से लोग मिलते हैं सफर में यूँ ही,
दर्दे एहशास कुछों का खास होता है। 


मंगलवार, 16 मार्च 2021

फूल देई छम्मा देई ***(3)


फूल देई छम्मा देई,य भुकि चाटि अम्मा लेई ।
फूल फूल त्यर भनार,भरी रौ सबोंक भकार। 
दैंण रहौ सबौंक द्वार,फूल देईक छा त्योहार।
हाथम गुड़कि डई धरी,यूं फूलों टुपरि पकड़ी।
दूध भात खूब खया तुम मुलमुल हंसनें रैया।
सारिपन दौड़ लगाइ फूल पिहूली टिपि ल्याइ।

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

बन गई काल हिमानी ** स


प्रकृति केअनेक रूप,छाया कहीं कहीं है धूप।
जंगल नदी पहाड़ हर,पठार भी इसके स्वरूप।
कहींअतल समतल कहीं,ये बड़े बड़े पहाड़ हैं।
कहीं तलहटी गुफा कहीं,ये घुमावदार पठार हैं।

अनुपम छटा प्रकृति की,जो लगे रानी रूप की।
विकृत जो हुई कभी,लगी कालाग्नि कुरूप भी।
सुन्दर मुकुट हिमाल जो,उत्तराखंड की ढ़ाल है।
जनपद चमोली के लिए,आज बनी महाकाल है।

सात फरवरी इक्कीस को,ऐसी घटी यहआपदा। 
कई लोग हुए हैं जमींदोज,और कई हुए लापता।
बर्फ से लदे शिखर,हिमनद कई यहां हैं ढ़के हुए। 
ताप जब बढ़ा तो हिमनद बहे उफान लिए हुए।

जरा देखिए तो प्रकृति की प्रकृति भी अजीब है।
कहते हैं लोग यहां स्वर्ग और नर्क सब नसीब है।
जी रहा है चैन से यहां  उम्र कम है सौ साल भी।
आपदाओं से घिरा कोई भेंट चढ़ जाता काल की।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

मेरा गांव। स

कल तक था गांव जहां,शहर वहां हो गया।


कल तक था गांव जहां शहर वहां हो गया।
आज चकाचौंध में वो गाँव यहां खो गया।

संसार  के भूल भुलैया में फंसा है आदमी,
कोई मिला हँस दिया दूर हुआ भुला दिया। 
 
पनघट की रौनक चिड़ियों का शोर कहीं।
नैसर्गिकता देख मन भाव विभोर होगया।

बदल गया सब कुछ अब सब नया हो गया। कल तक था गांव जहां,आज शहर हो गया।

ऊंची अट्टालिकाऐं देखकर मन घबराता था।
अब तो नीलाआसमां छूने का मन हो गया।

छोड़ कर अपनों  को घर, सब शहरआ गये,
माता-पिता के बिना साथ अधूरा हो गया है।

 

उजाला हो गया ***(पी)

""""""उजाला हो गया """"""""
रात काअवसान हुआ,और उजाला हो गया।
खूब उजली मोतियों को  हार में पिरो गया। 
क्रांति की मशाल जो भीमराव जला गया ।
बहुजनों को बुद्ध का धम्म पथ दिखा गया। 
कृतज्ञता प्रकट कर, वह बीज नया बो गया।
रात का अवसान हुआ,और उजाला हो गया

तू नया अक्षर तलाश,और शब्द नया तराश।
स्वयं सम्यक कर्म से ,लोक में जगा विश्वास।
वह रात रात जाग कर,अक्षर रहा तलाशता।
इतिहास नया लिख गया,उसकी ये महानता।
लक्ष्य दे गया विशाल,जगा गया वो अन्तराल।
काट करके फैंक गया बंदिशों का तुच्छ जाल।

बुनियाद हो मजबूत समतामूलक समाज की।
प्रबुद्ध राष्ट्र के लिए हो मुखर पुकारआज की।
ज्ञान से विज्ञान का युगअब निराला हो गया।
रात काअवसान हुआऔर उजाला हो गया ।
रूढ़ियों से आज भी इन्सान कुचला जा रहा।
भगवान के ही नाम पर पाखंड रचा जा रहा।

पहचान भीम ज्योतिबा कबीर पेरियार को। 
चन्द्रशेखर भगतसिंह सुभाष के विचार को।
अज्ञानता से तू निकल समाज कोअभेदकर।
लिख गये हैं संविधान भीमरावअम्बेेेडकर।
 मान और सम्मान हक  वंचितों को दे गया। 
 रात का अवसान हुआऔर उजाला हो गया।


सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

एक नागरिक ***स

जनवरी का महीना,बाहर बहुत ठंड ।
चारोंओर धुंध ही धुंध।
आस-पास कोई नजर नहीं आ रहा था। 
इक्का-दुक्का गुजरने वाला भी मूंह ढ़का हुआ जा रहा था , 
कोई किसी को नहीं पहचान पा रहा था।
रेलवे स्टेशन की तरफ भी-
धुंध का कुछ ऐसा ही हाल था।
इसीलिए गाड़ियों के आने में विलम्ब का सवाल था।
मुसाफिरों के लिए सरकारी अलाव जल रहा था।
अलाव के पास एक नव जवान बीड़ी फूक रहा था।
खांसते हुए मुड़कर पीछे दीवार पर थूक रहा था।
जहां लिखा था "स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत"
मैं कुछ सवाल करने की चेष्टा कर ही रहा था,
कि वह तपाक से बोल पड़ा सरकार !
राशन कार्ड,वोटर कार्ड,पैन कार्ड,
सारे दस्तावेज हैं मेरे पास।
क्या पहचान के लिए कुछ और चाहिए खास।
मैंने कहा भाई कहां है आपका निवास ? 
उसने कहा मैं एक पथिक हूँ निवास रहित हूँ।
घर नहीं है तो क्या? 
मैं भारत का एक नागरिक हूँ।
फुटपाथियों का मालिक हूँ।









रविवार, 31 जनवरी 2021

व्यवस्था बदलनी चाहिए ***स

आओ ऊँचे आसमां में तिरंगा फहराऐं।
  गणतंत्र दिवस कीअमर दास्तां सुनाऐं।
    वीरों की शहादत को हो नमन शत् शत् ,
     जन जन को गणतंत्र का रास्ता दिखाऐं। 

गैरबराबरी की व्यवस्था बदले ये बताऐं।
  इन्सानियत की सदा राह चलना सिखाऐं।
   हो धूँआं गर कहीं हवाओं का रुख भी हो,
      तो हम उस धूँए में आग जाकर लगाऐं।

तुम शिक्षित बनो ऐसा कह गये अम्बेेेडकर।
  बदलें व्यवस्था को जहां है जाति का जहर।
    असहिष्णुता से कभी भला नहींआदमी का,
      मनुजता जहां हो करें गर्व उस संस्कृति पर।



बुधवार, 27 जनवरी 2021

तार तार तिरंगा**स





हो गई है तार तार,तिरंगे की शानआज, 
लुटने लगी है लाज, आज गणतंत्र की।
आजादी के इतिहास,का हुआ उपहास,
भीड़ में पड़ी है आज,लाश जनतंत्र की।

उदघोष जैहिन्द का, कहां वन्दे मातरम,
लगता ये खोखली है,शान लोकतंत्र की।
किसानों का मेलाअब,दूर हुआ रेला सब,
किसने कहानी रची,इस  षडयंत्र की।

जनता बेचारी की तो,लचर लाचारी बड़ी,
उसी की लाचारी पर,राजनीति होती है।
कभी जात-पात पर,कभी खुरापात पर,
राजपाट के लिये तो,कूट नीति होती है। 

जन तंत्र में जो नेता षड यंत्र रच  लेता,
ऐसे नेताओं को बड़ी,कूटनीति आती है।
राजनीति खेल ही है,कठपुतली का जैसा,
निज ऊंगलियों पर ,जन्ता को नचाती है।







कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...