हो गई है तार तार,तिरंगे की शानआज,
लुटने लगी है लाज, आज गणतंत्र की।
आजादी के इतिहास,का हुआ उपहास,
भीड़ में पड़ी है आज,लाश जनतंत्र की।
उदघोष जैहिन्द का, कहां वन्दे मातरम,
लगता ये खोखली है,शान लोकतंत्र की।
किसानों का मेलाअब,दूर हुआ रेला सब,
किसने कहानी रची,इस षडयंत्र की।
जनता बेचारी की तो,लचर लाचारी बड़ी,
उसी की लाचारी पर,राजनीति होती है।
कभी जात-पात पर,कभी खुरापात पर,
राजपाट के लिये तो,कूट नीति होती है।
जन तंत्र में जो नेता षड यंत्र रच लेता,
ऐसे नेताओं को बड़ी,कूटनीति आती है।
राजनीति खेल ही है,कठपुतली का जैसा,
निज ऊंगलियों पर ,जन्ता को नचाती है।
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