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सोमवार, 30 दिसंबर 2019

#बाबा साहेब--कुमाऊनी गीत(15)

जय जय जय भीम राव,अमर है जया भीमराव ।

बखत पै जगै मुच्छ्याव,और तुमुल लगै हुक्याव।
हमों कैं दिखाइ उज्याव,अमर है जया भीम राव।
जय जय जय भीम राव।
जय जय जय भीम राव।

चौदअप्रैल जनम महू में,राष्ट्रभक्ति तुमर लहू में।
बहुजनोंक है गया ग्वाव,अमर हैजया भीम राव।
जय जय जय भीम राव। 
जय जय  जय भीम राव। 

राम जी राव भीमा बाई,नन छना य छोड़िगे माई।
तुमूपै बुआली किटऔंगाव,अमर है जया भीमराव।
जय जय जय भीम राव।
जय जय  जय भीम राव। 

नन छना स्कूल गया,लिखण पढ़णअघिल रया।
कर गया सबुकैं चितौव,अमर है जया भीम राव।
जय जय जय भीम राव।
जय जय जय भीम राव। 

पढ़ण लिखण में होशियार,छिया महान शिल्पकार। 
भौत सह गया तुम भेदभाव।अमर है जया भीमराव।, 
जय जय जय भीमराव।
जय जय जय भीम राव ।

शिक्षा लिजी विदेश गया,ज्ञान विज्ञान गुणि ल्यया।
तुमर गुणोंक पडों प्रभाव,अमर है जया भीम राव।
जय जय जय भीमराव।
जय जय जय भीम राव।

बताइ तुमुल यूं तीन मंत्र,मजबूत हौय लोकतंत्र।
जगै गया नई मुच्छ्याव,अमर है जया भीमराव।
जय जय जय भीम राव।
जय जय जय भीम राव । 

सम्विधान तुमुल ल्यखौ,तबै हमुल दुनी द्यखौ।
मिटै गया सारै अभाव।अमर है जया भीमराव।
जय जय जय भीम राव।
जय जय जय भीम राव। 






#सावित्री बाई फुले(16)

महिला श्रृंगार छू ,महिला जगी अंगार छू।
महिला मां शक्तिपीठ,महिला प्रतिकार छू।
महिला छू शिक्षिका,महिला महा संरक्षिका।
महिला जन्म दायिनी महिला सदा सुरक्षिता।
महिलाभलि सेविका महिला ठुलि शिक्षिका। 
नाम प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले का।

रविवार, 29 दिसंबर 2019

#नव वर्ष की सुप्रभात (35)

हैं मंगलकामनाऐं आपको,
नव वर्ष की सुप्रभात हो। 
स्वतंत्रता समानता का,
जन गण में नव संवाद हो।

कोई बंचित न रहे न्याय से,
सबको ही सम्मान मिले।
समतामय बन्धुत्व लेकर,
 मानवता अभियान चले।

मिटाकर सब संकीर्णताऐं,
नव वर्ष की सुप्रभात हो।
तोड़कर बन्धन कलुषित,
ढहर एकआदमीआजाद हो।
       
सत्कर्म पथ पर अग्रसर सब,
 हर व्यक्ति समृद्धिशाली हो।
  हो राष्ट्र उन्नतिके शिखर पर,
हर तरफ देश में खुशहाली हो।
     
हैं मंगलकामनाऐं आपको।
नव वर्ष की सुप्रभात हो ।

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

#इजा(18)

इज ज्यौनजियक आधार छा।
 इज लिबै सुखी परिवार छा।
  इज छा, तौ बार त्योहार छा।
   इज लिबै य दुनी संसार छा।
       सब जग भ्यार-भतेर,आर-पार,
        मान-सम्मान,एतिआदर सत्कार ।
         उंण कुंण,बट-घट ,सब गौं गाड़ -
           इजै लिबैजी छा एति ,खूब उदंकार।
               इजै लिबेर छा हमरि दुनी संसार, 
               हमुकैं उनिकै देई छैं य संस्कार।
                इज पारि एति कैक नि आनि अन्वार।
                 इजैकि महिमा छा सदाअपरम्पार।
इज आश छा,अटूट विश्वास छा।
 सक सकानि मनक निशाश छा।
  ह्यौंन में चटक घामैंकि ताति जसि,
   गूड़क कटक दगै चहा गिलास छा।
          मडुवा र् वट पिनाउक साग,
            भटुक डुबुक, झुंगरक भात छा।
             खीर, लापैसि,छोउ, कसार ,
              इजै हाथोंक स्वाद औरी बात छा।
                    हाकक मंतर जुकै दवा इज-
                     ब्या काजोंक सगुनआंखर छा।
                      अणी जणी पौंण पछि ईष्ट मित्र,
                        अपणि इज गागर में सागर छा।
इज जात न पात हमरि थात छा। 
  उ समाज राष्ट्रीय एकता बात छा।
     दूदक घटाक बुलाण दुदबोलि ,
        बराबरीक क्या भल संवाद छा।

      जी रहे इजा तू खूब दड़ मोटि रहे।
        अपण आशीर्वाद हमुकैं दिनैं रहे।
           ज्ञान विज्ञान भाषा दुनी कतू रचिल,
             पर हम सब त्यर रहोंल त्यरै पछिल।
               इजा तू अघिलअघिल हिटनै रहे।
                 कान पकडि दुदबोलि सिखानै रहे।        



बुधवार, 25 दिसंबर 2019

#क्य नयीं क्य पुराण(19)












यूं दिन,महैंन,सालों कैं,
लैंरों हम गठ्यांण पारि।
बची छोंआजतक एति,
हम नयीं पुराणों पारि।

मैंस कस -कसआय,
पर सनातन क्वे निरहय।
क्वे काम करि गय, 
क्वे क्वर फसक मारिगय।

गीत पैली जो नई हैनी,
 उ भोव पुराण है जानी।
देखनै देखनै बखत कैं, 
लोग तिथांण नै जानी।

बखतकआंखर जालि बांच,
बखत जालि जांच। 
ऊ दुनी में बखतक 
अपणि पछ्याण धरि जांछ।

तुम नयीं साल भेटनै रया,
भल स्वींण देखनैं रया। 
तंदुरुस्त सुखी रया,
घर समाज में पूजनीय रया।
 
क्य नयीं क्य पुराण,
जो भौल-भौल वी समांण।
नौं साल हम सबुलै नवांण,
पुराण सबुलै तपांण।

आओ  सब मिलिबेर आज,
खितखित कनैं हंसि ल्युल।
भोव जब कुतक्याइ लागलि,
तब दगडियों कैं याद कुल।

हम सब इसकै आज भोव,
 कनै दिन काटनैं रहौंल।
दिन महैन साल रोजअपण ,
आंगुव में गणनै रहौंल।


सोमवार, 23 दिसंबर 2019

#अभिनन्दन(पी )

"""""""अभिनन्दन """"
नया साल !नये विचारों का अभिनंदन ।
जन गण के नये संस्कारों का अभिनंदन ।

सुबह होती रहेगी, शाम ढलती रहेगी।
हम दिन गिनते रहेंगे, उम्र बनती रहेगी।
सुबह-शाम का, यही सिलसिला रहेगा।
दिवस मास,ये साल से जाकर मिलेगा।

नया साल बनकर ,नयी सुबह आयेगी।
स्वागत में मधुरिम,ये खुशी छा जायेगी।
यूं ही सुबह होगी ,शाम भी ढलती रहेगी।
हम दिन गिनते रहेंगे,  उम्र बनती रहेगी।

नये साल पर, सुबह नये सपने देखेगी।
जीवन को अपने ,वो खुद ही सजायेगी। 
इन गुजरे दिनों की, ये उतरे सपनों की।
उन किताबों में, अपनी कहानी लिखेगी।

यूं ही रोज सुबह, तो शाम ढलती रहेगी।
अपनी सुख-दुख भरी, उम्र बनती रहेगी। 
कल नये साल की ,नई किरणआयेगी। 
नागरिकों की नई, एक तकदीर लायेगी। 

नये साल पर, दुनिया अभिनन्दन करेगी। 
प्रजातंत्र में ,जन -जन का वन्दन करेगी।
यूं ही जिन्दगी में,सुबह शाम होती रहेगी।
अपनी सुख दुख भरी,उम्र बनती रहेगी। 

चलो पल दो पल,हम जिन्दगी को जी लें।
प्यार के अक्षरों से एक परिभाषा बना लें।
मेरा राष्ट्र मुझको,अपने प्राणों से प्यारा रहे।
हमेशा विश्व के राष्ट्रों में, मेरा राष्ट्र न्यारा रहे।

नये साल पर नये विचारों का अभिनंदन ।
जन गण के नये संस्कारों का अभिनंदन ।


 
 

रविवार, 22 दिसंबर 2019

#भूली बिसरी यादें(@)

उनको देखकर दिल मचलने लगा।
मिलन का सिलसिला चलने लगा।
मजबूर इतना क्यों हो गया ये दिल,
कदम उनके घर तक बढ़ाने लगा।

मुलाकातों का ए सिलसिला रहा।
कभी घर कभी बाहर मिलता रहा।
मेरी सीमाएं मर्यादित रही बदस्तूर,
पर हाथों से वक्त निकलता  रहा।

जिन्दगी का सफर बड़ा अजीब है।
दूर  रहकर भी वो इतना करीब है।
कितना ही ऐशो-आराम मिल जाय,
प्रेम के बिना यहां हर एक गरीब है।

अगर दिलों में  किसी का प्यार है।
कभी मोड़ पर मिले वो उपहार है।
नजरअंदाज न कर पायेंगी नजरें,
दिलों में जिनके बेइन्तिहा प्यार है।


शनिवार, 21 दिसंबर 2019

#पहचानिए(@


कौन है येआज यहां,जो घर जला रहा।
जनतंत्र के इस राष्ट्र की जड़ हिला रहा।
वो कोई राष्ट्रभक्त,हमारा हो नहीं सकता, 
पहचानिए उसे जो प्रेममें बिष मिला रहा। 
कोई सांप नाथ है यहां कोई नाग नाथ है।
अपने ही घर में आज भी कोई अनाथ है।
शब्दों के जाल में ये जो उनको फंसा रहा,
पहचानिए वो मदारी जो उनको नचा रहा। 
यहां राज भी उसीका है ताज भी उसीका।
ये सरकार बन गई तो हमराज भी उसीका।
उसी की सोच से बना वो विधान रोक लो।
दंगाइयों का यह नासूर अभियान रोक लो।
यह संविधान राष्ट्र का भीम राव ने बनाया।
समता स्वतंत्रता बन्धुत्व ये रास्ता दिखाया।
यदि भेदभाव की किसी से  कोई खता हो।
उसको सजा मिले जो सबसे बड़ी सजा हो।
नागरिक भारत के हैं स्वराष्ट्र की कसम हमें।
बलिदान राष्ट्र के लिए है निभानी रशम हमें।
चाल है दुश्मन की ये भारतवर्ष कमजोर हो।
घरों को जो जला रहा पहचानिए गद्दार को । 
भारत मेरा,मैं भारतीय सब में  संस्कार  हो।
न होअनाथ वंचित समतामूलक परिवार हो।
संविधान के विरोध में जो कोई  सरकार हो।
अपना विरोध दर्ज बदल दीजिए सरकार को।

 

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

#विमर्श***(39)


अक्षर तराशने हैं,
शब्द कुछ तलाशने हैं।
हो रहा विमर्श जो,सत्यार्थ कुछ जानने हैं।
रंग रूप वेश भाषा हैश्रेष्ठता अखंडता की।
अभी तो विमर्श बाकी,हैअभी संघर्ष बाकी।

धर्म का उठता बवंडर,आस्थाओं का समन्दर।
संस्कारों के भंवर में,तू मत भटक इधर-उधर।
विशालता हृदय में हो तूआरती उतार मां की।
अभी तो विमर्श बाकी है अभी संघर्ष बाकी ।

पाखंड भरा धर्म क्यों,उदंड भरा कर्म क्यों।
शील का श्रृंगार है पथप्रशस्त में शर्म क्यों।
स्वच्छंद चित श्रेष्ठ में प्रवाहशील ज्ञान की।
अभी है विमर्श बाकी हैअभी संघर्ष बाकी।

मानवता श्रेष्ठ धम्म है संविधान श्रेष्ठ ग्रंथ। 
सहिष्णुता फूले फले वही तो हैश्रेष्ठ पंथ ।
उठो अभय बढे चलो राह है ये न्याय की।
है अभी विमर्श बाकी है अभी संघर्ष बाकी।

शिल्पकार बुद्ध है  चित्त उसका शुद्ध है ।
उसने किया जो सृजन वो बड़ा विशुद्ध है।
राह में खड़ा वह इन्तजार में कारवां की।
है अभी विमर्श बाकी है अभी संघर्ष बाकी ।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

#कोलाहल ***(40)

हर तरफ कोलाहल क्यों हो रहा है।
आदमी फुटपाथ पर क्यों सो रहा है ?
           हर तरफ लगी है आग  शहर में,
            फंसे हुए हैं लोग किसी भंवर में।
             हो रहा आतंक आदमी कांप रहा, 
             बाहरी दुश्मन कमजोरी भांप रहा।
जगाओ उसआदमी को जो सो रहा है, 
शहर में क्यों अपना ईमान खो रहा है ।
             नागरिकता संशोधन बिल खास हुआ, 
               संसद के दोनों सदनों में पास हुआ ।
                धर्म निरपेक्षता पर भारत निराश क्यों 
                   संसद में प्रजातंत्र का उपहास क्यों ।
सरकार के पास था यहां प्रचंड बहुमत ,
और समय के साथ था सबकुछ सहमत ।
              फिर क्यों यहांशहर में ऐसा बबाल हुआ ।
                सरकार का क्यों ऐसा बुरा हाल हुआ ।
                  समय की है यह चेतावनी आज हमको ।
                   सम्मान दीजिए हर एक नागरिक को ।
इस तरह कानून बनाने से क्या फायदा है।
लाभ कुछ भी नहीं हो नुकसान ज्यादा है।


बुधवार, 6 नवंबर 2019

#जंग जीत ली

बधाई हो!चुनावी जंग में तुम्हारी जीत है, 
 तेवरों से अभी भी विरोधी भयभीत है।
भूल जाइए जनाब बेरुखेअल्फाज़ों को,
अब तो सबसे गले मिलने  की रीत है।

उनके चेहरों को हमें भी देखने दीजिए,
भीड़ से उनको अब निकलने दीजिए।
जीत से हो गये हैं होंसले बुलन्द उनके,
उन्हें भी नया अध्याय लिखने दीजिए।

शिकवे शिकायतों में अब रख्खा क्या है,
चुनावी भूख में क्या कच्चा क्या पक्का है।
उतार-चढ़ाव का ये हुनर नहीं सीखा कभी ,
वहीआदमी तो यहांआजअधर में लटका है।

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

#नया सफर ***(41)

चुन लिया जो पथ मैंने,
उस पर चलना अच्छा है।
बार-बार गिरने से तो, 
उठकर संभलनाअच्छा है।
जहां की परवाह नहीं ,
कौन अच्छा बुरा कहता है। 
सच्ची बात तो बस यही,
सुपथ पे चलना अच्छा है । 

बुद्ध वही नित शुद्ध वही 
शान्ति का आधार रहा है।
मानवता पल्लवित होती 
मन भावन संसार रहा है।
यहां ऊंच नहीं कोई नीच, 
हर एक मन बराबर है ।
त्रिशरण शील प्रज्ञा का 
पथ सबको स्वीकार रहा है। 

मुक्ति का बोध हो जाय 
जिससे वह पथ अच्छा है ।
मुश्किलों में भी जो साथ दे,
अपना वो मित्र सच्चा है।
रूढ़िवादी बन करके यहां,
 नफ़रत बढाना ठीक नहीं ,  
अंधभक्ति संलिप्त दूरकर ,
खुद का बदलनाअच्छा है।



गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

#अलघतक चुनाव (21)

पंचायती चुनाव है रैई,हिट इजा हम लै वोट दी औंल।
तलि बाखई काकि जामें,हिट माठूं माठूं हम लै जौंल।

अलघत कैक भौजि कैक ब्वारि,कैक  घरवाइ उठि रै,
चुनाव पारि पढ़ी-लिखी च्यल चेलियोंलऔंगाव किट रै।

हम द्वी,हमर द्वी छैं,य जनुल मानि ली वी चुनाव लड़मीं।
बेरोजगार लिखी पढी लौंड ऊं चुनावक जुगाड़ करमीं।

जिति जैंल जो चुनाव, भो उनर थानम द्यू हमलै बौंल। 
पंचायती चुनाव है रैई,इजा हिट हम लै वोट दी औंल।

है रैआज कल यूं गौं पन, चार दिन चुनाउंक झरफर।
नि देखमय रौंसम एति, यूॅ कुतकी आँख दिन - द्योपर।

हिटन हिटनैं है जानी सब,यूं दगड़ी थाकि बेर अपरौ।
बेई मलि बाखईक बची दा, एति तलि भिड़ घुरी पड़ौ।

ऐलै फ्यर लै एकै परिवारम,द्वी द्वी झण चुनाव लड़मीं।
भ्यारक क्य कर सकनी,यां भितेरकैआपसमें झगड़मीं।

दिल्ली बै ऐरैं बल वोट दी हैंणि, हिटौ हमलै देखि औंल।
पंचायती चुनाव है रैई, हिट इजा हमलै वोट दी औंल। 

कैक जीत हैली कैक हार यूं चुनावौंल बिगै रौ य पहाड़।
गौं घर है रैंई यां उजाड़,दिल्लीवाव उठानी नेता कैं ठाड़।

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

#बहुजन नायक मान्यवर काशीराम

भारत रत्न बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर के विचारों एवं सिद्धांतों से लैस मान्यवर काशीराम ने कारवां को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।उनके प्रयासों वह सफलताओं ने उनको पिच्चासी प्रतिशत दबे कुचले गरीब शिल्पकार समाज का महानायक बना दिया।निस्संदेह उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अविस्मरणीय है।करोड़ों उनके अनुयायी उनको आज श्रद्धा से नमन करते हैं।मान्यवर कांशीराम जी का जन्म पंजाब में एक रैदासी गरीब परिवार में हुआ।ये दो भाई और चार बहनें थी।कांशीराम भाई बहनों में सबसे बड़े एवं पढ़े-लिखे थे।सन्1958 में विज्ञान से स्नातक परीक्षा पास कर' पूना रक्षा उत्पादन विभाग में वैज्ञानिक पद पर सरकारी सेवा में आ गये।
       दबे कुचले इन करोड़ों लोगों की कहानी लम्बी है जो उत्तर बैदिक काल प्रारंभ होती है,जब वर्णव्यवस्था कठोर और रूढ हो गई आम जनजीवन कर्म काण्डों से त्रस्त हो गया शिल्पी वर्ग अपमानित और जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर।जब मानवता तिल तिल कर मर रही थी तब महात्मा गौतम बुद्ध का अवतरण हुआ उन्होंने धम्म चक्र प्रवर्तन कर क्रांति का बिगुल बजाया।मानवता को जगाया ।पल्लवित पुष्पित किया।दुनिया को सत्य अहिंसा प्रेम बन्धुत्व स्वतंत्रता समानता का का उपदेश दिया।चारों तरफ बुद्धं शरणं गच्छामि धम्म शरणं गच्छामि संघं शरणं गच्छामि के उद्घोष से वातावरण गुंजायमान हो उठा।भारत ही नहीं विश्व में यह गूंज विस्तारित होने होने लगी कालान्तर में ब्राह्मण धर्म ने समाज को अपने आगोश में ले लिया।मनुवादियों के सामाजिक अत्याचार बढ़ने लगे।सामाजिक क्रमिक गैरबराबरी की मनुवादी व्यवस्था में सबसे अधिक शूद्र वर्ग अधिक त्रस्त वो शोषित रहा।दोहरी गुलामी के तीक्ष्ण लौह जंजीरों में छटपटाते मानुसों को देखकर ज्योतिबा फुले नारायण स्वामी पेरियार साहू जी महाराज कबीर रैदास जैसे हजारों लाखों क्रांति कारी समाजसुधारक शोषितों के मुक्ति का प्रयास कर संसार से अलविदा कर गये।क्रांति की इन कडियों में आज वे हमारे आदर्श हैं।मनुवादी व्यवस्था दुष्चक्र से समाज विखंडित रहा विदेशियों को भारत में शासन करने का मौका मिला।इसी गैरबराबरी के ढांचे की आड़ में विदेशियों ने भारत को लूटा।दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया ।समाज में फूट डालो राज करो के सिद्धांत पर चलकर खूब ऐश किया।शोषित समाज के ऊपर दोहरी गुलामी थी।अंग्रेजों की दमन कारी नीति के खिलाफ 1857 में स्वतंत्रता की प्रथम चिंगारी सुलगने लगी,जो शोला बन कर दहक उठी वीरों के अभूतपूर्व साहस व बलिदान से 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया।सत्ता के हस्तांतरण पर बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर इन करोड़ों वंचितों के भविष्य और स्वतंत्र भारत में उनके अस्तित्व के विषय में बहुत चिंतित थे।स्वतंत्रता आंदोलन में जहां मनुवादी स्वराज की बात करते वहां बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत स्वतंत्रता समानता की बात करते थे।अपने परम्परागत व्यवसायों से जुड़ा यह वंचित वर्ग  समाज में तिरस्कृत जीवन जी रहा था इस वर्ग के लोगों के जीवन की मान सम्मान स्वाभिमान की क्या गारंटी हो,कैसे उन्हें भारतीय होने का हक मिले इस बात को बाबा साहेब चिंतित थे।स्वतंत्र भारत के संविधान निर्मात्री सभा ने बाबा साहेब को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर संविधान लिखने का उत्तम अवसर प्रदान किया और इसे उन्होंने बखूबी निभाया। संविधान में शोषित समाज महिलाओं मजदूरों तमाम दबे कुचले गरीब नागरिकों के सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकास के लिए समान अवसरों की व्यवस्था संविधान में देकर समतामूलक समाज बना कर महान कार्य किया ।14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहेब ने नागपुुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया।6 दिसंंबर 1956 को उनका महापरिनिर्वाण हो गया । इसके बाद समाज में भारी रिक्तता आ गई।इस रिक्तता को मान्यवर कांशीराम साहेब ने पूरा किया।
    15 मार्च 1934 पंजाब राज्य में मान्यवर कांशीराम जी का अवतरण हुआ ।विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर पूना में वैज्ञानिक पद पर नियुक्ति पा कर राजकीय सेवा से सम्बद्ध हो गये।बाबा साहेब के विचार उन्हें उद्वेलित करते रहे इसी से उन्होंने राजकीय सेवा त्याग कर बाबा साहेब के सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया ।6दिसम्बर1978 को बामसेफ नाम से एक गैर राजनीतिक संगठन बना कर सरकारी सेवाओं से जुड़े अनुसूचित जाति, जन जाति, पिछड़े वर्ग तथाअल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारी कर्मचारियों को संगठित किया।"Pay back to society "की अवधारणा को लेकर अधिकारियों कर्मचारियों को अपने समाज के प्रति उत्तरदायी होने का बोध कराने का प्रयास किया।
 6 दिसंबर 1981 को दलित शोषित समाज संघर्ष समिति DS4 तैयार कर गांव गांव पैदल चल कर संघर्ष के लिए लोगों को जागरूक करने संगठित किया ।साइकिल रैलियों के माध्यम से लोगों के बीच गये।असंगठित वर्ग को संगठित किया बामसेफ के माध्यम से कैडर शिविरों का संचालन कर बहुजन क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया पिच्चासी प्रतिशत लोगों पर केवल पन्द्रह प्रतिशत लोगों की मनुवादी व्यवस्था को चुनौती दीऔर अपना राजनीतिक प्रयोग प्रारंभ किया ।14 अप्रैल 1984 को "बहुजन समाज पार्टी "एक राजनीतिक पार्टी का गठन कर सत्ता में अपनी हिस्सेदारी पाने के लिए संघर्ष किया।यह सत्य है कि मान्यवर कांशीराम साहेब विज्ञान के ही पारखी नहीं थे बल्कि उससे कहीं अधिक मानविकी विज्ञान के पारखी थे।उन्होंने भारतीय राजनीति में बहुत कम समय में क्रांति पैदा कर दी।एक छत्र शासन करने वाली पार्टियों को शासन करने के लिए नाकों तले चने चबवा दिए।राजनीति में गठबंधन सरकार की संस्कृति को जन्म दे दिया।उत्तरप्रदेश जैसे बड़े प्रांत में बहुजन समाज पार्टी का शासन एक बार नहीं बल्कि तीन बार रहा।अस्वस्थ होने के बाद मान्यवर राजनीति से अलग हो गए यद्यपि वे एक बार सांसद भी रहे। भारत के बहुजनों के महानायक मान्यवर काशीराम साहेब हमको कारवां आगे बढाने की प्रेरणा देकर हमसे सदा सदा के लिए अलग हो गए ।
9 अक्टूबर 2006 को लम्बी अस्वस्थता के बाद दिल्ली में आपका महापरिनिर्वाण हो गया ।
"जब तक सूरज चांद रहेगा, मान्यवर कांशीराम साहेब का नाम रहेगा "केवल बहुजन समाज ही नहीं सम्पूर्ण देश उनके कृतित्व के लिए मानवीय मूल्यों के सम्वर्द्धन के लिए उन्हें स्मरण करता है।माननीय कांशीराम साहेब के विचार मूल्य सिद्धांत उनका आचरण प्रजातंत्र का वास्तविक चित्रण करता है ।जातिविहीन समतामूलक समाज में ही "सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय"सुरक्षित रह सकता है ।धन्य हैं ऐसे महानायक शिल्पकार को।

रविवार, 6 अक्तूबर 2019

क्रान्तिवीर जयानन्द भारती (@)

थे शिल्पकारों का गौरव,वह वीर जयानन्द भारती,
श्रद्धा सुमनअर्पित कर, उनकीआइए उतारेंआरती।
त्याग की प्रतिमूर्ति रहे वे,मन में सेवा का भाव लिए ,
पाखंडवाद के थे विरोधी,वे गुरु कुल के विद्यार्थी।

परतंत्रता से त्रस्त जब, जनाक्रोश फूटने लगा था।
देखकर ,फिरंगियों का भी पसीना छूटने लगा था।
हरतरफ दुन्दुभी बजने लगी थी, जंगे आजादी की,
तब उस जंग में,हर एक भारतवासी कूंदने लगा था।

वीरों की थात बन गयी, कुमाऊं गढवाल की धरती,
जय जयकार का उद्घोष कर, उतारने लगी आरती।
ब्रिटिश सरकार के, दमन चक्र को रोकने के लिए  ,
सिर पर कफन बांध कर ,निकला जयानन्द भारती।

सत्रह अक्टूबर अट्ठारह सौ इक्यासी वह वीर जन्मा,
पौड़ी गढवाल अरकन्डाई, गांव की बनकर गरिमा।
छुआछूत की कुरीतियों से, बड़ा त्रस्त था जो समाज,
उन्हें जगाने कामआया,जयानन्द भारती का करिश्मा।

धन्य वह पट्टी सांवली बीरोंखाल, पौडी गढवाल की,
और आंचल मां रेबुली देवी, और पिता छविलाल की।
अस्पृश्यता का दंश जिसने,एक नहीं सौ सौ बार झेले,
महासंघर्ष की ताकत ,उसमें गम्भीरता बेमिसाल थी।

यहाँ एक ओर थी, फिरंगियों की दमनकारी नीतियां,
दूसरीओर थी ,इन मनुवादियों कीअसहज कुरीतियां।
वहअभय निकल पड़ा,मशाल इन्कलाब का लिए हुए,
नवयुग के नवनिर्माण को,तलाशने कुछ जानकारियां।

इतिहास के पन्नों पर है,पौड़ी काण्ड की कहानी भली,
फहराकर तिरंगा,जयानन्द बोले गोबैक मेलकम हैली।
वहाँ से सब फिरंगीअफसर,तब भागगये दुम दबाकर ।
उस वीरसपूत के मुखसे,भारत मांकी जैकार निकली।

उन्होंने लड़ी मनुवादियों से,डोलापालकी की ए लड़ाई,
कौन करसकता था शिल्पियों के,अपमान की भरपाई।
बीससालों तक लड़े केस,पर फिरभी कभी हार न मानी,
अन्तमें न्यायालय से उन्होंने,ससम्मान कानूनी विजय पाई।

नौसितंबर उन्नीस सौ बावन को,आ गईअवसान की घड़ी,
सम्पूर्ण उत्तराखंड शिल्पकारों केलिए,ये क्षति थी बड़ी।
संतप्त था हरएक,सबने हृदयसे कीश्रद्धांजलि समर्पित,
जुड़ गई उस क्रांतिवीर की,इतिहासश्रृंखला में इक कड़ी।

शनिवार, 28 सितंबर 2019

#सम्यक दृष्टि ***(42)


जो श्रम करता है जमाने में वही है श्रमजीवी,
दूसरों पर निर्भर रहने वाला तो है परजीवी।
स्वावलंबन की संस्कृति अपनाए जो जीवन में,
वही आदमी तो है जमाने में हमेशा चिरंजीवी।
जो श्रम करता है और समय के साथ चलता है,
सबकी सुनता है,मगर बात मन की कहता है।
बेहतर है उस श्रमजीवी का स्वाभिमान में रहना,
सम्यक श्रम से ही जमाने में,चमत्कार करता है।
राग जमाने में बहुत हैं,पर अनुराग अच्छा है।
मुक्ति का बोध हो जिससे, वह ज्ञान सच्चा है।
किताबें जीवन में हम भले ही कितनी पढ़ लें,
सम्यक ज्ञान हो जाय तो वो जीवन अच्छा है।
कहीं मंदिर,गिरजा घर, कहीं मस्जिद बने हैं।
साम्प्रदायिक तनावों में हम कई बार उलझे हैं।
अल्लाह ईश्वर गौड सब बराबर हैं हमारे लिए।
हमें तो एक रोटी चाहिए,बस पेट भरने के लिए।
पत्थरों मेंआस्था से, किसी का पेट नहीं भरता।
परतंत्रता में कैसे लिखें,स्वाभिमान की कविता।
शुद्ध हैं भाव जिसके,चलता वही है बुद्ध पथ पर,
निकलती है शीलों से ही सम्यक ज्ञान की सरिता।
      

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

#अभी हम कहां हैं आजाद!


अभी हम कहां हैं आजाद!
कहो इन्कलाब जिंदाबाद ।          
            जाग रे जाग साथी जाग!
             मुश्किलों से दूर मत भाग।
              होकर निडर तू सामना कर,
              क्रांति की तू कामना कर।             
              जुल्मियों को मार थप्पड़।
               भगतसिंह की राह पकड़।
                जुल्म अब तक सह रहे हैं। 
                  ए हाल अपना कह रहे हैं।
अभी हम हैं कहां आजाद।
कहो इन्कलाब जिंदाबाद।
                   इतिहास के पन्ने पलट ले ।
                     शहीदों के वो गीत रट ले ।
                       भगतसिंह की प्रेरणा से,
                         नवयुग की बुनियाद रख ले।
                           जाग रे जाग साथी जाग।
                            मुश्किलों से दूर मत भाग।
                            होकर निडर सामना कर।
                             क्रांति की तू कामना कर।
अभी हम कहां हैं आजाद!
कहो इन्कलाब जिंदाबाद ।
                       केवल अभी सूरज उगा है।
                        न अभी स्वाभिमान जगा है।
                        धर्म जाति के इस तिमिर में,
                         रोगअस्पृश्यता का लगा है।
                         भगतसिंह के शब्द कोषों से,
                          तू बीज संकल्प के उठा ले।
                           इन्कलाब केअमर स्वर से ,
                            क्रांति की रोशनी जगा ले।
अभी हम कहां हैं आजाद !
कहो इन्कलाब जिंदाबाद ।
                         
                     
                   
                       

सोमवार, 16 सितंबर 2019

#ई.वी.रामास्वामी पेरियार

हे ई वी रामास्वामी पेरियार ,
  तुम पाखंड को करते तार तार।
    मानवता के तुम जीवंत प्राण,
       करते अंधविश्वासों पर तुम प्रहार।
           तुम संघर्षों के पथ आगे चलते,
            तर्कों से करते सत्य उजागर ।
              नव भारत के नव सृजन का तुम,
                अभिनंदन करते शीश झुकाकर।
तुम कहते क्यों जुल्म सहते हो,
       पाखंड भरे मनु ग्रंथ पढ़ते हो।
         पत्थर को नतमस्तक हो करके,
          तुम क्यों शीश झुकाया करते हो।
             जाति धर्म की पोषित गैर बराबरी,
                 हैं मानव विकास की बाधाऐं।
                  ईश्वर का आडम्बर रचकर लिख दी,
                    काल्पनिक पुराणों की गाथाऐं।
शिक्षित हो तो तर्क करो तुम ।
    इन्सानों में न कभी फर्क करो तुम।
        केवल कर्म ही पूजा है यहां,
          निज हक के लिए संघर्ष करो तुम।
             तुम निर्भय हो तुम अमर हो,
                अवरोध मुक्त जीवन सफर हो।
                  अग्निमय संकल्प ले कर बढ़ो,
                    तुम पर पाखंडी का असर न हो।

गुरुवार, 12 सितंबर 2019

समाजसेविका आनन्दी देवी

समाज में बहुत सारे ऐसे पुरुष एवं महिलाऐं होती हैं जिनकी समाज सेवा को लोग निरन्तर याद करते हैं।अपने आस-पास यदि हम झांकें तो हमें ऐसे बहुत से नाम सुनने को मिलेंगे जिनमें समाज सेवा का जज्बा कूट कूट कर भरा था।जिनकी शिक्षा,दीक्षा,नेतृत्व ,मार्ग दर्शन शोषित समाज के लिए जो कभी वरदान रही,लेकिन उनका इतिहास आज भी अन्धेरे में बिखरा हुआ है।आजआवश्यकता है कि हम समाज के ऐसे समाजसेवी लोगों के इतिहास को खोजें और उन्हें प्रकाश में लायें।जो समाज के लिए प्रेरणा स्रोत तथा आदर्श रहे हों। जिनकी बातों को लोग मानते हों जिनके मार्गदर्शन पर लोगआगे बढते रहे हों। ऐसे लोगों की हमेशा हमको  जरूरत होती है ।उनसे हमारी आस्था जुड़ती है,और हम विकास की राह के लिए प्रेरित होते हैं।समाज में व्याप्त भेदभाव को दूर करने,आपस में भाई-चारा बनाने में कई लोगों ने समाज में महान काम किये।कुछ लोग सामाजिक बुराइयों के खिलाफ़ खड़े हुए कुछ लोग समाज के कमजोर वर्ग के मौलिक अधिकारों के लिये आगे आए उन्होंने  भूमिहीनों के लिए भूमि की लडाई लडी।ऐसे ही समाजसेवियों में एक जाना माना नाम था समाजसेविका आनन्दी देवी ।
       
तल्ला विरलगांव सल्ट स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.हरकराम आर्य जी व हीरा देवी की सात संतानें थी।आनन्दी इनकी दूसरी संतान थी। आनन्दी का जन्म 8 सितम्बर सन्1926 को हुआ।एक कन्या के बाद यह दूसरी कन्या थी।आनन्दी अपने माता-पिता की दूसरी संतान थी।हरकराम जी सामाजिक सरोकार से जुड़े रहते थे।समाज में बहुत सारी कुरीतियां व्याप्त थी।कुरीतियों के कारण समाज विकृत था।शिक्षा का प्रचार प्रसार नहीं था।लड़कियों को स्कूल बहुत कम भेजा जाता था ।छोटी उम्र में ही शादी हो जाती थी।शिल्पकारों की सामाजिक आर्थिक राजनैतिक स्थिति अच्छी नहीं थी ये गुलामों के भी गुलाम थे।आनन्दी को घर पर  सभी आनुली के नाम से पुकारते थे।आनुली की प्राथमिक शिक्षा कफल्टा स्कूल में हुई ।केवल कक्षा तीन तक ही उनकी शिक्षा हुई।दस बारह साल की उम्र में उनका विवाह हो गया।इनका दाम्पत्य जीवन बडा कष्टकारी रहा केवल चार साल तक ही गृहस्थ जीवन निर्वाह कर सकी ।उसके बाद जीवन का संघर्ष प्रारंभ हुआ।उन दिनों कांग्रेस का खूब आन्दोलन हुआ करता था ।इनके पिता स्व.हरकराम आर्य समाज के प्रभाव में आगये ,और वे कांग्रेस के भी सदस्य हो गये।घर पर आर्यसमाजियों का आना जाना रहता था।इस बात का आनंदी के जीवन पर भारी प्रभाव पड़ा वे निर्भीक निडर तो थी ही उनका साहस और द्विगुणित हो गया। सन् 1942में जब इनके पिता जी स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल चले गए तो घर की देखभाल वह स्वयं करती।उनके ताऊ कली राम खेती पाती का काम करते थे आनंदी पुरोहित का काम स्वयं करती थी।

आजादी के बाद 1949में आनन्दी देवी ने दायी प्रशिक्षण अल्मोड़ा से किया।कुछ समय काम करने के बाद यह काम छोड़ कर दिल्ली चली गयी ।इन्हें समाज सेवा के प्रति असीम लगाव होने से कारण सामाजिक सरोकारों से जुडती गयी।जयानन्द भारती तथा उनके साथियों के साथ उन्होंने गढवाल में स्कूल खोले शिल्पकार बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।डोला पालकी आंदोलन को प्रोत्साहित किया ।बाल विवाह ,छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ वे मुखर हुई और कुरीतियों का विरोध किया।आर्यसमाज का प्रचार-प्रसार किया।इन्होंने मजगांव के बचीराम गुसांईराम हरकराम अनेक आर्य समाजी कार्य कर्ताओं के साथ काम करते हुए भिक्यासैन में आर्य समाज मंदिर की स्थापना की।रानीखेत भिक्यासैन अनेक स्थानों पर स्थापित मंदिरों में दी जाने वाली पशु बलि का विरोध किया।आर्यसमाज मंदिर भिक्यासैण की जीवनपर्यंत अध्यक्ष रही।
सन् 1960 में जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की।बाबू जगजीवन राम जी से शिल्पकारों की सामाजिक स्थिति के बारे में उनके आर्थिक विकास के लिए काम करती थी ।सन् 1966में आपने श्रीमती इंदिरा गाँधी से मुलाकात की।भूमि हीनों की समस्या को निरन्तर संबंधित मंत्रियों व अधिकारियों से निराकरण करने बाबत कहती रही हैं।
  सन्  1974 में सुन्दरखाल में पर्वतीय भूमि हीन शिल्पकार समिति गठित कर आन्दोलन चलाया। गोठ खत्ते टौगिया आदि वनग्राम समस्याओं के बारे में मा0नारायण दत्त तिवारी मा0 हेमवती नन्दन बहुगुणा  मा0 बल्देवसिंह आर्य से समस्याओं के समाधान के लिए मिले।
   


9 मई सन् 1980 को कफल्टा कांड ने इन्हें बहुत आहत किया तब आनंदी देवी दिल्ली में थी।आनन्दी देवी ने हिम्मत नहीं हारी।जघन्य हत्याकांड के लिए न्यायिक जांच की कार्यवाही की पहल की उच्च न्यायालय से केस को उच्चतम न्यायालय में अपील कर न्याय के लिए संघर्ष किया। भिक्यासैण से दिल्ली जाते वक्त रामनगर श्री मथुरा प्रसाद टम्टा एसओ साहब के निवास में रुकी  भिक्यासैन मेें  गिर जाने के कारण पैर में चोट आने के कारण चलने-फिरने में असुविधा हो रही थी ।दिल्ली जा कर किसी विवाह समारोह में सम्मिलित होना था ,3 मई 1999 की घटना है कि विवाह समारोह मेें सामिल होनेे के लिए जब वे सड़क पार कर रही थी तो रास्ता पार करते समय दुर्घटना घट गई आपने मेंअन्तिम सांस ली।आपके जाने बहुत दुख परिवार को हुआ ।आपकी प्रेरणा व आशीर्वाद हमारे साथ सदा रहे ।आपको नमन करते हैं।

बुधवार, 11 सितंबर 2019

#अशोजक दिन (22)

अशोजक दिन कामक चुट,
थाकि जानी हमर हाथखुट
काम पारि जुटी मैंस हैंणि, 
बस एक घुटुक चहा चैंछ।
धान बतौहैंणि हवा चैंछ।
बिमार पड़ गय दवा चैंछ।
भट,गहत,मास,मडू झुंगर,
कतुक भौल छा इनर दगड़।
रत धानुक खुशबू क्य भौल-
ठंगरों पारि ककड़क फुल्यड़।
चार दिनक य रौंस य तौस कैं,
फिरि यकल पराणि चहा रैंछ।
धान बतौ हैंणि हवा  चैंछ।
बिमार पड़ौ तब दवा चैंछ ।

सोमवार, 9 सितंबर 2019

#बेहाल रामनगर

  • रामनगर का हाल बेहाल है।सड़कों पर अतिक्रमण, आये दिन जाम, रोडवेज का खस्ताहाल, कंडी मार्ग का अधर में लटका सवाल।जबकि रामनगर कुमाऊं गढवाल का प्रवेश द्वार है, यही नहीं यह कार्बेट पार्क के निकट होने के कारण " कार्बेट नगर" के नाम से अपनी पहचान बनाने के लिए,समस्याओं के लिए जूझ रहा है।समस्याऐं इतनी हैं कि किसी समस्या का समाधान ही नहीं निकल पा रहा है।उत्तराखंड बने उन्नीस साल हो गए।समृद्धिशाली व खुशहाल उत्तराखंड बनाने के संकल्प को भूल कर आज हम अपने स्वार्थों में डूब गये हैं ।आन्दोलनकारी शहीदों की कुर्बानियों को भूल गए हैं।अब हर कोई राजनीतिक धुरंधर कोरी बयान बाजी करते हैं,और इसी से चुनाव जीत लेते हैं। उनकी लफ्फाजी आम जनता को भारी पड़ती है।रामनगर का बस अड्डा खुलेआम कितना हमारा उपहास करता है हमें थोड़ी भी शर्मिंदगी महसूस नहीं होती ।
   
 कंडी मार्ग माननीय मुख्यमंत्री महोदय की घोषणा के बाद भी अधर में लटक रहा है, सपने अच्छे  तो लगते हैं पर जब वे पूरे नहीं होते तो बहुत कष्ट कारी होते हैं।जनता वैधानिक परिस्थितियों को नहीं जानती,तकनीकी कारणों को नहीं जानती वह सीधी सादी और बहुत  भोलीभाली होती हैं ।वहअपने लिए मूलभूत सुविधाऐं चाहती हैं जो उनके मौलिक अधिकार हैं।तकनीकी कारणों का हवाला दे कर नेताओं द्वारा  जनता को बेवकूफ नहीं तो और क्या बनाया जा रहा है।पानी विजली सड़क शिक्षा हर क्षेत्र में समस्याओं का अम्बार है।ऐसा नहीं कि सरकार इन समस्याओं से अनभिज्ञ हों लेकिन चुनावी गणित की चुनौती हर बार खड़ी हो जाती है। नेता क्या करे सरकार का कैसे विरोध करे।शहर में जाने-माने कई बुद्धिजीवी नेता पत्रकार सामाजिक सरोकार रखने वाले समय-समय पर सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाते हैं ,परन्तु कोई उनकी बात नहीं सुनता।वे हार नहीं मानते,निरन्तर अपना प्रयास करते रहते हैं ।उनके प्रयास के उस जज्बे को सलाम करता हूँ।जनता उनकी प्रसंशक है उन पर विश्वास करती है परन्तु पता नहीं जब चुनाव का वक्त आता है तो वही जनता रास्ता बदल देती है।लोगों का मौन रहना ,संघर्षशील साथियों के साथ खड़ा न होना उनकी यह कमजोरी रामनगर के खस्ताहाल होने का एक कारण है।
       

रामनगर विधानसभा क्षेत्र में लगभग चौबीस वन ग्राम अपनी-अपनी मूल भूत सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहे हैं ।कई तो ऐसे वन ग्राम हैं जो टोंगिया और खत्तों से परिभाषित हैं ।चुनाव के समय मात्र चर्चा और आश्वासन के बाद उनका परिणाम शून्य मिलता है।वन्यजीवों से मानव संघर्ष की कई बारदातें हुई कई जानें गई हैं ।प्राकृतिक आपदाओं का दंश भी की गांव के लोग झेल चुके हैं।ऐसे पीड़ित वन गांव चुक्कम और सुन्दरखाल को विस्थापित करने के कई बार घोषणाऐं भी हुई पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

#आशीर्वचन

कु  सुम पर्याय कोमल की,
      कोमलता बनीं रहे तुममें।
       खुशबू से महक जाओ,
       खुशियाॅ छलक जाए तुममें।
शा  न हो उत्तम कि ललचाए,
      देख कर हर एक  प्राणी।
      सदा सर्वगुण सम्पन्न हो जाओ.
       तुम सर्वश्रेष्ठ कल्याणी।
ग्री   ष्म,वर्षा,शरद ऋतु का,
      तुम्हारा हर सुखद पल हो।
     प्रिय कुशाग्री! आशीष !
      तुम्हारा जीवन उज्ज्वल हो।

सोमवार, 26 अगस्त 2019

शिल्पकारों के आदर्श हरिप्रसाद टम्टा

उत्तराखंड में शिल्पकार समाज प्राचीन काल से ही शोषित समाज रहा है।विभिन्न शिल्प कलाओं के ज्ञाता शिल्पकार समाज केवल अपने पेट भरने मात्र तक सीमित नहीं था,बल्कि वह उत्तराखंड की संस्कृति का पोषक संरक्षक एवं वाहक रहा है।कालान्तर में समाज  सामाजिक रूढ़िवादी मानसिकता के कारण उसकी संस्कृति का ह्रास होने लगा तो समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अस्पृश्यता से मुक्ति के लिए जयानन्द भारती बूथा सिंह खुशीराम व  मुंशी हरिप्रसाद टम्टा सरीखे क्रांति वीरों ने आगे आकर पहल कि और आज वे शिल्पकारों के आदर्श हैं।
श्रद्धेय हरिप्रसाद टम्टा जी का जन्म 26अगस्त 1887को अल्मोड़ा में हुआ।प्राथमिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई।1905 में शिल्पकार सुधार सभा का गठन कर सामाजिक सरोकारों से जुड़े ।वे वकील थे।अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे ।वे एक पत्रकार भी थे ।शिल्पकार वर्ग पर होने वाले जुल्म जादतियों को अपने समाचार पत्र समता के माध्यम से प्रकाशित करते थे ।उन्होंने 1934 में समता साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन किया।23 फरवरी 1960 को उनका परिनिर्वाण हो गया।
          श्रद्धेय रायबहादुर मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी के जयन्ती पर अथवा  परिनिर्वाण दिवस पर कारक्रम आयोजित करते हैं और श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैैं समाज के उन तमाम लोगों को हृदय से साधुवाद ,जो क्षेत्रों में आयोजित कार्यक्रमों में प्रतिभाग करते हैं।श्रद्धेय हरिप्रसाद टम्टा जी बाबा साहेब डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर जी के अनुयायी थे यह इस बात से स्पष्ट होता है कि उन्होंने इंग्लैंड मेंआयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में उपस्थित डाक्टर भीमराव अम्बेेेडकर को अनुसूचित जाति का वास्तविक प्रतिनिधि होने में विश्वास व्यक्त करते हुए एक तार प्रेषित किया था।अस्पृश्यता का दंश सह कर बाबा साहेब ने संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई।गणतंत्र की इस व्यवस्था में दलित शोषित समाज,महिलाओं खेती हर मजदूरों के अधिकारों को सुरक्षित रखा।
आज भी जब हम उन महान व्यक्तियों पर चर्चा करते हैं तो हमारी चर्चाऐं आज भी उन्हीं बिन्दुओं तक सीमित रहती हैं।यह इस बात का प्रमाण है कि समाज में आज भी जातिवादी मानसिकता में कोई खास बदलाव नहीं आया है।आरक्षित वर्ग के पढ़े-लिखे नौजवानों और सुरक्षित क्षेत्रों से जीत कर गये सांसद विधायकों की निष्क्रियता के कारण भी इस ठहराव के लिए जिम्मेदार हैं।आज जब हम इक्कीसवीं सदी के पायदान पर हों,चांद मंगल ग्रह पर जाने की बात कर रहे हों तब जातीय बातें विकास का उपहास करती हैं।
          उत्तराखंड में शिल्पकारों के पारंपरिक व्यवसाय के ह्रास का मुख्य कारण भी जातीय भेदभाव रहा है जिसका प्रभाव उनकी आर्थिक विकास पर पड़ा है।आज हमें अपने पारम्परिक व्यवसायों को पुनःस्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि आर्थिक रूप से समाज सुदृढ हो।समाज में उभरते प्रतिभाओं को आदर व सहयोग दे कर आगे बढाया जाय।शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ कर
सकारात्मक सोच विकसित करनी होगी ।मनुवादी ताकतें जो जातीय तानों बानों को बुनकर इस समाज को उलझाए रखना चाहती हैं अम्बेडकर वादी बन कर हमें प्रपंचों से दूर रहना होगा।नयी तथा स्वस्थ परम्पराओं का सृजन कर प्रबुद्ध समाज बनाना होगा, तभी प्रबुद्ध भारत बन सकेगा ।
    आज हमारा संकल्प हो कि हम मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी के बताए हुए मार्ग का अनुसरण करें,और समाज के तमाम उन लोगो को प्रकाश में लायें जो हमारे आस-पास समाज के संगठन के श्रोत हैं।

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

#भावपूर्ण श्रद्धांजलि

तुम अटल विश्वास अटल,
तुम्हारा ज्ञान अटल था।
काल चक्र के साथ तुम्हारा-
हर अभियान सफल था।
तुम बढ़ते गये निरन्तर,
तुमने कभी हार नहीं मानी ।
तुम मानवता से परिपूर्ण,
तुम थे निर्भीक स्वाभिमानी ।
तुम जन प्रिय जन नायक,
नव युग प्रेरणा दायक थे।
जाति धर्म सम्प्रदाय से ऊपर,
राष्ट्र धर्म सहायक थे।
तुम कवि लेखक रचना धर्मी,
प्रखर वक्ता युग दृष्टा थे।
नव भारत निर्माण के तुम,
सशक्त निर्भय अभिकर्ता थे।
हो गये आज तुम मौन,
काल चक्र भी रुक गया है ।
हे अटल श्रद्धांजलि अर्पण में,
ये राष्ट्र ध्वज भी झुक गया है ।
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!
भाव पूर्ण श्रद्धांजलि! 

शनिवार, 4 मई 2019

ठहर जा वक्त (45)

ठहर जा वक़्त जरा कुछ दर्द और बाकी है।
   हवाओं में भीअभी  कुछ सर्दऔर बाकी है।
    भाई जाना तो है दुनिया से सभी को एक दिन, 
      पर वक्त के साथ कहीं मेरा एक ठौर बाकी है।

वक्त के थपेड़ों ने मुझे चलना सिखाया है।
  गिर गिर कर सम्भलने का हुनर बताया है।
    नहीं हैं कमजोर,बड़े मजबूत हैं इरादे मेरे ,
      सपनों का मैंने एक सुन्दर घर सजाया है।

आशाओं के समन्दर में उठ रही हैं लहरें।
  हमसे कहती हैं खड़े होने की कोशिश करें।
    कहां किसने कभी थामा है वक्त कोअबतक,
      हम तो वक्त बदलेंगे तो फिर क्यों शोषित रहें।

आज तोआसमां में काली घटा घिरआई है।
  धरती पर वक्त की ये मुसीबतें फिर आई हैं।
    पता नहीं कब कहां पर फट जाय ये बादल,
      अनहोनी की आशंका से आँख भर आई है।

फर्ज उतना है कि सहिष्णुता जीवित रहे।
  जनतंत्र व्यवस्था में मानवता संचित रहे।
    देश का हर नागरिक कर्तव्यनिष्ठ बनकर,
     अपने मौलिक अधिकारों से वंचित न रहे।
            स्वरचित कविता "  वक्त """"स्नेही """"
              रामनगर नैनीताल  (उत्तराखंड )



बुधवार, 3 अप्रैल 2019

जंग ए चुनाव


जंगे ए चुनाव में हर तरफ होती वोट की चर्चा।
जलसों नुक्कड़ नाटकों पर नेता करते हैं खर्चा।
जीत किसकी होगी यह तो कोई नहीं जानता,
हर कोई हाथ पर थमा देताअपने नाम का पर्चा।

हुनरमंद हो गये होते यदि मेरे शहर के मतदाता,
तो चाय -पानी के झांसे में वह कभी नहीं आता ।
वह सुनता सबकी पर बात अपने मन की करता,
अगर समझदार हो गया होता शहर का मतदाता।

जंग ए चुनाव का मौसम जब भी इधर आता।
उधर शहर में रंजिशों का हर द्वार  खुल जाता।
बहुत मासूम और भोले,होते हैं गांव मतदाता,
नेताओं के चक्रव्यूह में वह फंस कर रह जाता।

जंग ए चुनाव में सबका सजग रहना बेहतर है।
सबकोअपने वोट की कीमत समझना श्रेष्ठतर है।
मतदान हो योग्यता से नेतृत्व सही हाथों में जाए,
कभी नहीं हो सकता कि ये लोकतंत्र खतरे में है।

शुक्रवार, 29 मार्च 2019

#चुनावी गपशप

"लोकसभा आम चुनाव 2019की घोषणा, नामांकन नाम वापसी की सारीऔपचारिकताओं के बाद अब चुनावी शोर सराबा जोरों पर है ।
कौन जीतेगा ?कौन हारेगा? ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है ।फिर भी वोटों का गुणा भाग करने वाले गणितज्ञ अपना हिसाब किताब लगा रहे हैं।गलियों मुहल्लों चौराहों व चौपालों पर चुनावी गपशप जारी है ।अपनी-अपनी पार्टी के वफादार चौकीदार अथवा कार्यकर्ता सतर्क व जुनून से ओतप्रोत हैं ।कभी कभी बातों बातों में आपसी द्वन्द्व भी हो जाते हैं।"स्वयं सम्मान के लिए अपेक्षा करते हैं तो औरों को भी सम्मान देना आवश्यक है "।2009 केआम चुनाव के जो नेता जीते, अगले 2014लोकसभा चुनाव में पाला बदलते नजर आए।पार्टी बदलना आज एक फैशन सा हो गया ।भाषण देना आए या न आए पर प्रतिद्वंद्वी पर आक्षेप लगाना उस पर कीचड़ उछालना जो अधिक करे उसको भाषण का सिद्ध हस्त माना जाता है ।
              11 अप्रेल चुनाव के लिए मतदान की तिथि है।मुझे ये लोकसभा चुनाव विगत वर्षों से भिन्न नजर आ रहा है।अपने दोस्तों, नौजवानों ,महिलाओं, बुजुर्गों से बातचीत कर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसबार लोगों में उत्साह नहीं है ।
                 "एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं सब"कई लोगों ने ऐसा कहा।
कई नेतागणों की आपसी निकट या करीबी रिश्तेदारी भी है।पार्टी भले ही भिन्न-भिन्न हों।काम तो रिश्ते दारों के होंगे ही भले ही किसी कार्यकर्ता को असहज महसूस कराया जाए।
            मतदाता इस चुनाव में किसी भी नेता के बहकावे में नहीं आएगा।"शिल्पकार वर्ग ने कांग्रेस भाजपा को आइना दिखाने का फैसला लिया है "।आरक्षित क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले नेताओं के खिलाफ भी यह वर्ग खड़ा दिखता है क्योंकि उन्होंने व्यक्तिगत के अतिरिक्त कुछ भी इस वर्ग के लिए नहीं किया जिसके लिए वे नैतिक जिम्मेदार थे।NOTAभी इस चुनाव में एक संभ्रांत वर्ग की पहचान होगी। आइए संकल्प लें कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए निर्भय हो कर किसी के बहकावे में न आकर अपने मत का प्रयोग करेंगे ।योग्य उम्मीदवार के अभाव में  "नोटा" का बटन दबाकर परिवर्तन के लिए सहभागी बनेंगे ।

गुरुवार, 28 मार्च 2019

वंचित स्वर


इतनी भी बेरुखी अच्छी नहीं है  हमसे ,
जीते जागते तुुम जैसे इंसान हैं हम भी।
वतन हमारा हम ही मूलनिवासी हैं यहां,
मनुवादी व्यवस्था से परेशान हैं अब भी ।
बताऐं हाल क्या परेशाानियों का अपनी,
समाज में गैर बराबरी सेअपमानित हैं।
जानते हैं हमारी अज्ञानता पर ही आज, 
पाखंड के सभी महारथी सम्मानित हैं।
सिंन्धु घाटी की सभ्यता के  वोअवशेष, 
जो वहाँ पर खुदाई में हमको मिले थे।
गवाह हैं आज भी वो इतिहास के पन्ने,
आर्यआक्रान्ताओं से कैसे हम छले थे।
न जान पाए श्रमण संस्कृति के वाहक।
कितने क्रूर छद्मी हैं मनुवाद के  पोषक।
हमको गुलामी की बेड़ियों में जकड़ कर,
स्वयंभू बन गये हमारे राह के अवरोधक।
आज आवाज दे कह रहा है वक्त हमसे ,
कि हे मूल निवासिओ तुम एक हो जाओ।
बुद्ध धम्म पथ के पथिक बन आगे बढो ,
ये मनुवादी व्यवस्था से तुम मुक्ति पाओ।


        

शनिवार, 2 मार्च 2019

स्मृतियाँ(48)


आते-जाते हैं लोग दुनियां में,
कहां काल चक्र रुकता है।
कभी नहीं निष्काम स्नेह,
स्मृति पटल से मिटता है।

समय केआदर्श वहीं हैं,
जो समय के गीत बने हैं।
अपने जीवन के प्रवाह में,
परिवर्तन के साथ खड़े हैं।

जाने कितने खेल चुके हम,
खेलें जीवन के इन पड़ाव में।
राग द्वेष से पीड़ित जन हम,
जीते हैं क्यों आज तनाव में।

क्यों नहीं खोजा करते हैं हम,
अपने भीतर केअवगुण को।
क्यों नहीं बांटा करते हैं हम,
अपने भीतर के सद्गुण को।

आओ मिल कर हँस लें थोड़ा,
सहज बनायें  जीवन को।
शिक्षा के अवलम्बन से कुछ,
हम और बढायें उद्दीपन को।

आवागमन के शाश्वत सत्य से,
भला कहां कोई रुकता है ।
जागृत सदा ही जीवन जीता,
गीत स्मृतियों का लिखता है।

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

#बीज(47)

बीज गिरता है धरती पर,माॅटी में दब जाता है।
पाकर थोड़ी नमी,चीर धरती से ऊपर आता है।
ताकत है उसमें लड़ने,कुछ साहस भिड़ने की।
चिर सत्यकथा जीवन की,उठने और गिरने की।
उठता वही जो गिरता है,सम्भलता बढ़ता है।
गिरकर उठने का साहस,तो वह नहीं डरता है।
मूल निवासी भारत के,बीजों की तरह उगते हैं।
आँसू की इस नमता से ,बट वृक्ष से बन जाते हैं।
बीज कभी क्षय नहीं होते,ए फूले और फलते हैं।
बीजों से उपवन में ना ना,सुन्दर पुष्प खिलते हैं।
उनसे ही धरती सजती है,हर दिशा महकती है।
सुरमई रंगों की रचना में,प्रेम प्रवाहित करती है।
आओ मूल निवासी,बीजों से सुन्दर चमन बनाऐं।
मूलनिवासी भारतवासी,हम स्वाभिमान जगाऐं।
प्रबुद्ध भारत की रचना में,सर्वस्वअर्पित करते हैं।
हम मूलनिवासी हाथमिलाकरआगे-आगे बढ़ते हैं।

सोमवार, 21 जनवरी 2019

#गणतंत्र दिवस

गांव गांव,शहर शहर,नारे आज गूंजते हैं।
राष्ट्रभक्त देश के,स्व संविधान  पूजते हैं
संविधान देश का,जो भीमराव लिख गये, 
उसी के सहारे ही तो, प्रजातंत्र ढूँढ़ते हैं।
               
          
मंत्र संविधान में ,समता समानता के ।
  भ्रष्टाचार अन्त को, हैं दंड विधान में।
    वंचितों को न्याय, शिक्षा का हक मिले,
     स्वतंत्रता के मंत्र सारे,रचे संविधान में।

गणतंत्र देश में,बस गण ही महान है ।
राजा नहीं कोई यहां,कोई भगवान है।
खान पान वेष भाषा,भले असमान हों,
आजादी सभी को,सर्व श्रेष्ठ संविधान है।
                    
     जन गण मन गाते,आज एक स्वर से-,
      राष्ट्र का पवित्र पर्व ,गणतंत्र अमर रहे।
       हाथ पे तिरंगा ध्वज,धम्म चक्र लहराते
       विश्व विजय को हम, कस ये कमर रहे।

आज भी हमारे बीच,ऐसे जयचंद हैं।
गणतंत्र के लिए जो,रच रहे द्वन्द्व हैं।
जात-पात धर्म की,राजनीति करते हैं,
मतदाताओं का चूसे,अब मकरन्द हैं।
   
संविधान की शपथ,आज लेंगे मिलकर,
    दुश्मनों का करें हम, मुकाबला डठकर।
     शांति अमन सदा,शान ए वतन की हो,
       फहरायेंगे तिरंगा, घरों से निकलकर ।

शनिवार, 19 जनवरी 2019

#लोक बाणि (23)

चार दिनोंकि जुन्याइ,फिर अन्ह्यारि रात।
धन छैं उन मैंसों हैंणि,जो कै गई य बात ।

भ्यार भ्यार नौणि छा, भितेर भितेर कौंणि ।
ऐन मौक पै दबै दिनी, यूॅ दगड़ियोंक मौंणि ।

मांगहैंणि जाण ,फिर ठिठौर क्य लुकाण ।
हाथ पारिआर्सी ,तब मुखौड़ क्य देखण ।

भौल अघिलआं,जगी मुच्छ्याव पछिल जां।
तीर्थ ब्रत कतुकै करौ,ऊ कर्मों फल एती पां।

गौं तिराण भौल हौय,मौ तिराण नौक छा।
स्यापें कैं जो दूध पिलां,उ पछिल ध्वक खां।

कामकाजोंम शराब,वां शराबियोंक बख्यड़।
कुकुरक पुछड़ थोई होंन,भ्यार ट्यौड़ै ट्यौड़।

काक भाग क्यछ, क्य हौल य कैल ल्यखौ।
च्यलैकि कुनैइ क्य देखंचा, वक मुनैइ द्यखौ।

लोगौंक कहण कांणिक भाग पै नौ खंचोव।
सही कैनी कभैंअड़पट तौ में नि बन छोव।

मडू छुंगर बुत बलड़ नैं,खाइ पी गल्यढ़ नैं।
म्यर छै म्यर छै अपण नैं,जागि जा दगड़ नैं।

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

शिल्पकारो ठाड़ उठो (24)

शिल्पकारो ठाड़ उठो!अब सिणौंक बघत कां छा।
तुम बघत छा फिर किलै तुम बघत कैं भ्यार चांछा ।
फन्द परि येति फन्द पड़ी, भाग परि बदनाम जड़ी।
कब तक तुम बैठी रला,य हाथ परि एति हाथ धरी।
           शिल्पकारो ठाड़ उठो! बघत पारी ।
बगि गो गध्यर सब तुमर,अब बगण क्य रै गो बाकी।
हाथ फैलै बेर कब तक, इसिक दूसरों कै रैला ताकी ।
तुम बघत छा तुम शकत छा, तुम छा जैअम्बेेेडकरी।
बघत कैं उज्याव दिखाओ, शिल्पकारो बघत पारी ।
             शिल्पकारो ठाड़ उठो!  बघत पारी ।
जात परि यां जात बनै,फिरआपसी भेदभाव रचै।
हमुल यूं जो यूं ढुंग तरासी, उनुल ऊं भगवान् वनै।
हाथ जोड़ि बै हम ठड़ी छों,वीं हैरैंई एति पुजारी।
बुद्ध त्रिशरण लिबै,उज्याव दिखाओ बघत पारी।
             शिल्पकारो ठाड़ उठो! बघत पारी ।
बुद्ध शुद्ध धम्म छा,संविधान महा धम्म ग्रंथ छा।
समतामय बन्धुत्व जति न दास छा न सामंत छा।
शिल्पकारो ठाड़ उठो यस काम करो समय पारी।
समय कै उज्याव दिखाओ  शिल्पकारो बघत पारी।

कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...