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शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

#विमर्श***(39)


अक्षर तराशने हैं,
शब्द कुछ तलाशने हैं।
हो रहा विमर्श जो,सत्यार्थ कुछ जानने हैं।
रंग रूप वेश भाषा हैश्रेष्ठता अखंडता की।
अभी तो विमर्श बाकी,हैअभी संघर्ष बाकी।

धर्म का उठता बवंडर,आस्थाओं का समन्दर।
संस्कारों के भंवर में,तू मत भटक इधर-उधर।
विशालता हृदय में हो तूआरती उतार मां की।
अभी तो विमर्श बाकी है अभी संघर्ष बाकी ।

पाखंड भरा धर्म क्यों,उदंड भरा कर्म क्यों।
शील का श्रृंगार है पथप्रशस्त में शर्म क्यों।
स्वच्छंद चित श्रेष्ठ में प्रवाहशील ज्ञान की।
अभी है विमर्श बाकी हैअभी संघर्ष बाकी।

मानवता श्रेष्ठ धम्म है संविधान श्रेष्ठ ग्रंथ। 
सहिष्णुता फूले फले वही तो हैश्रेष्ठ पंथ ।
उठो अभय बढे चलो राह है ये न्याय की।
है अभी विमर्श बाकी है अभी संघर्ष बाकी।

शिल्पकार बुद्ध है  चित्त उसका शुद्ध है ।
उसने किया जो सृजन वो बड़ा विशुद्ध है।
राह में खड़ा वह इन्तजार में कारवां की।
है अभी विमर्श बाकी है अभी संघर्ष बाकी ।

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