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रविवार, 19 अप्रैल 2020

# उल्लू का.....

उल्लू! यह कहकर उसने -
मुझको सम्बोधित किया।
उसके इस मृदुभाषी सम्बोधन से ,
मेरा थोड़ा रक्तचाप बढ़ गया।
कुछ देर बाद स्वतःही उतर गया।
लेकिन यह एक सवाल !
मेरा अन्तर्द्वन्द बन गया।
जो बार बार मुझे  चुनौती देता,
और मैं उत्तर खोजने लगता।
मैं शिल्पकार हूँ।
उजालों से क्यों डरता हूँ  ?
पेट भरने को कमाता हूँ।
शिल्पकार बताने में क्यों घबराता हूँ ?
संघर्ष करने से क्यों कतराता हूँ ?
 इत्यादि................ 
उलूक की तरह मुझे भी,
लक्ष्मी का वाहन समझा जाता है ।
चुनावी बैनरों में सजाया जाता है ।
दो चार नारीयल भेंट कर ,
मेरा गुणगान गाया जाता है।
मैं उल्लू ही बना रहता हूँ।
पर अब मैं उल्लू नहीं बनूँगा।
शिक्षित बनूँगा। संगठित रहूँगा।
उजाले से लड़ूँगा।मैं संघर्ष करूंगा।






बुधवार, 15 अप्रैल 2020

#अ से अम्बेडकर होता है** स


अ से अम्बेेेडकर होता है 

जागता है जीवन में कभी नही सोता है। 
महान विधिवेत्ता वो संविधान लिखता है।
वंचितों के न्याय की सदा पहल करता है।
इसी लिए तो 'अ 'से अम्बेेेडकर होता है।
रोशनी में हो कर भीअन्धेरों में रहता है।
आस्तिक हो बात नास्तिक की करता है।
हिन्दू जन्म लेता मगर हिन्दू नहीं मरता है ।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
वंचितों का मसीहा हक की बात करता है।
शोषण के खिलाफ वह लड़ाई लड़ता है ।
नारी सशक्त को हिन्दू कोड विल लाता है ।
इसी लिए तो'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
शिक्षित नहीं है वो जो परम्परा ढोता है ।
शिक्षा का अर्थ वो संघर्ष को बताता है।
तीन मंत्र देकर हमें चलना सिखाता है ।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
नये भारत सृजन का शिल्पकार होता है ।
अन्याय का सदा जो प्रतिकार करता है।
समानता के लिए वो बुद्धपथ खोजता है।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है ।
भारत का मूल है वह भारत में रहता है ।
मनुवाद का विरोधी मनुस्मृति जलाता है।
शोषित व वंचितों का वही मुक्ति दाता है।
इसी लिए तो 'अ'से अम्बेेेडकर होता है।

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

#चेलेअम्बेडकर जी के

चेले अम्बेेेडकर जी के हम।
है कोरोना मिटाने की कसम।
हाथ धोते हुए,दूरी रखते हुए, 
बढ़तेजायें हमारे कदम।
चेले ................
बड़ा वाइरस भयानक हैये।
विश्व का जनसंहार है ये।
सैनेटाइजर लिए,मास्क पहने हुए,
हर मदद को बढाऐं कदम।
चेले ..........
कोई भूखा पड़ा हो कहीं।
भीम मित्र खड़ा हो वहीं ।
करने उनकी मदद,है करुणा का पथ,
हो करने मदद को ए दम।
चेले...........

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

#संगठित रहो

आज विश्व के ये देश,कोरोना से लड़ रहे हैं।
भगवान कोई नया चमत्कार,नहीं कर रहे हैं।
जग में अगर खोज ले,कोई महारोग की दवा,-
तो समझिए धरती पर विश्वगुरु उतर रहे हैं।
वक्त से ये लड़ाई हम संगठित होकर लड़ेंगे। 
शिक्षा केअवलम्बन से स्वाभिमान जगाऐंगे। 
समता,समानता और बन्धुत्व लेकर हृदय में,
प्रबुद्ध भारत को समृद्धशाली राष्ट्र बनाएंगे।

#शिक्षित बनो***स





दीप जलकर अन्धेरों को रोशनी देता है। 
समय के सितम सारे,स्वयं समेट लेता है। 
तमसोमाज्योतिर्गमय है सत्य जीवन का।
स्वयं दीपक बनो यह संदेश भीम देता है। 

शिक्षा केअवलम्बन से,सत्पथ मिलता है।
अन्धेरों से लड़ने का,हमें संबल मिलता है।
शिक्षित हो वंचित जन,है भीम का सपना।
शिक्षा हक होभीम संविधान में लिखता है।

संघर्ष की जो ताकत दे,वह सच्ची शिक्षा है।
मानवता जगाए मन में वह सच्ची शिक्षा है।
सब कुछ  समर्पित किया राष्ट्र को जिसने,
जो कर्तव्यनिष्ठा बनाता वह सच्ची शिक्षा है।


सोमवार, 6 अप्रैल 2020

#बेई रात#नौ बजे

बेई रात !
नौ बजे,नौ मिनट 
बघतैलि नि मारि फटक।
भितेर अन्ह्यार,देहेम उज्याव।
एक मोमबत्ति ,हमुल लै बाव।
रजकि बात रजै ज्याणौ।
समझी कैं क्य समझाणौ।
एति इतू ठुलि दुनी में- 
हमुल मनखी द्वीऐ देखी।
एक ज्यौन एक मरी-
हमुल इनरै किस्स लेखी।
एक हँसणी,एक रूणी ।
एक जागणी एक सींणी ।
काम कणी एक लुकणी।
एक  दीणी एक मांगणी।
एकैक जीत दूसरैकि हार।
फिरि लै द्वीऐ छैं लाचार।
भौल करला ,भौल हौल।
दूनी सारें तुमुकैं देखौल।
नौक करला नौक हौल, 
दुनी तुमु पारि थुकौल।
नौ बजे, नौ मिनट तक-
बेईरात एक स्वींण,नींद में।
मिलजुलि बै रहौ भागी- 
दिन कटनी उम्मीद में।

रविवार, 5 अप्रैल 2020

#पांच अप्रेल #नौ बजे #नौ मिनट(27)

घर कीअपनी देहरी से देखता हूँ, 
आज एक अद्भुत नजारा।
उतरकर आ गया मानो जमीं पर ,
नखत लिएआसमां सारा।
खड़े हैं लोग हाथ में दीपक लिए,
खोज रहे हैंअपने चैन को।
कोरोना महारोग व्यथित मन सोचते- 
हैं गुजारनेऔर भी दिनरैन तो।
आज तो प्रमाण है अपने जीवन्त का,
और आगे हम लड़ेंगे ये लड़ाई। 
हार नहीं मानेंगे जबतक सांस होगी,
एकता जन गण ने दिखाई। 
नौ मिनट के बाद फिर से लौट आई, 
रोशनी घरों में फिर सभी के।
शंख ध्वनि की पूर्णता के बाद फिर भी, -
कोरोना का भय मन में है अभी भी।




कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...