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मंगलवार, 29 नवंबर 2022

बचपन

मैंने भी देखा है बचपन,
 गाँव की पगडंडियों में।
  नंगे पैरों  पैदल  चलते-
   लाते कांफल कंडियों में। 

लकड़ी की तख्ती लिए,
 वहां स्कूल को जाते हुए।
  जंगल से लकड़ी बटोरे,
   गाय बकरी चराते हुए। 

गुल्ली डंडा खेल खेल में,
 साथियों से लड़  जाना।
  बातों बातों में ही अपने,
   साथियों से भिड़ जाना।

मैंने भी देखा है बचपन,
 गाँव का  प्यारा बचपन।
  सावन बरसता रोज ही,
   वो बेचारा प्यासा बचपन।

ये बंदिशें.......

हमें बांधकर रखा जिसने,
 उसको ही हम   पूज रहे। 
  जीवन  भर बंदिश  में ही,
   हम हर  वक्त   जूझ  रहे।

हमेंअबला कहके जिसने,
 हाथों में  बंधन डाल दिए।
  मर्यादा की चिता लगाकर,
   सपने  हमारे  जला  दिए।

भाग्य  व  भगवान भरोसे,
 लिखी ऐसी जीवन गाथा।
  सीता  और  द्रौपदी जैसी ,
   यह  नारी की रही व्यथा।

जागें अब  हम तोड़ें बंधन,
 शिक्षित हो संविधान पढ़ें। 
  समझेंअपनेअधिकारों को,
   आज विज्ञान कीओर बढ़ें।

अब त्यागें पुरानी परम्परा,
 लड़का लड़की में न भेदकरें।
  रूढ़िवाद के चक्कर में हम,
   कुंडलियों का न उल्लेख करे।













सोमवार, 28 नवंबर 2022

महात्मा फुले परिनिर्वाण

एक राह हमको सत्य की,
तुम  दिखाकर  चले गये।
माली से बन कर महात्मा।
ज्ञान  ज्योति  जला  गये,

नमन  हो  ज्योतिबा  फुले,
तुम्हें कोटि कोटि नमन हो।
भारत के महान राष्ट्र  पिता,
आपका यह अमर चमन हो।

कुरीतियों से जब ये समाज,
विकृत हो सिसक रहा था।
आदमी आदमी से यहाँ पर,
अछूत जान विदक रहा था।

बाल विवाह सती प्रथा से,
नारी  शोषण  हो  रहा था।
छुआ-छूत महा रोग से तब,
वो वंचित पीड़ित हो रहा था।

सत्य शोधक समाज बनाकर,
सबको आपस  में जोड़ा गये।
पत्नी  सावित्री बाई  के  संग,

समाज सुधारक लेखक तुम, 
महान दार्शनिक, शिक्षक हे।
आपके ज्ञान विज्ञान से अब,
भारत का बच्चा बच्चा जागे।




रविवार, 27 नवंबर 2022

मना लिया करो

लग रही है गर आग तो बुझा दिया करो।
तब हाल अपने दिल का सुना दिया करो।

चुप रहने से कभी हालात नहीं बदलते,
रूठे हैंअपने तो उनको मना लिया करो।

दूर रहने से गलत फहमियां हो जाती हैं,
वक्त पर अपनों से बात कर लिया करो।

वो भी इतने बुरे नहीं थे जमाने में कभी,
उन्हें भी जमाने की याद दिला दिया करो।

देख कर दुनिया हमें सपना सा लगता है।
कभी सपनों में अपनों के खो जाया करो।

 



 







शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

संविधान दिवस

ऐतिहसिक छब्बीस नवम्बर, 
है संविधान  दिवस  हमारा। 
इसकी सुचिता संरक्षण को,
यह पावन संकल्प हमारा ।

नफ़रत न हो कभी दिलों में,
आपस में रहे ये भाई-चारा।
मानवता हो हृदय में सबके, 
कहता है  संविधान हमारा। 

कैसे देश चले अपना यह,
कैसी व्यवस्था हो इसकी,
सबको हक मिले यहांपर,
जैसी योग्यता हो जिसकी।

हर हाथ को काम मिले व,
उचित काम के  दाम मिले,
घर घर ढेरों खुशियों फैले,
डाली -डाली  फूल  खिले।

क्या हैं मूलअधिकार हमारे,
संविधान में है सब अंकित।
कर्तव्य हमारे  निर्धारित  हैं, 
कोई न्याय से रहे न वंचित।

समता समानता बन्धुत्व पर,
आधारित संविधान हमारा।
राजनीतिक सामाजिक और-
आर्थिक न्याय से राष्ट्र संवारा।

संविधान के जनक आप हैं,
डाक्टर भीमराव अम्बेडकर।
कोटि कोटि नमन  करते  हैं,
चरणों में हम शीश झुकाकर। 









शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

तस्वीर

आ अधरों से पिला दूँ जाम तुझको,
सब्र कर कुछ देर को मुरली हटा ले।
देखके बंसी मेरे सीने में आग जलती,
तेरे प्यार में पागल हूँ ये प्यास मिटादे।

कृष्ण तुम नटखट तुम्हारा प्रेम छल है,
मुझसे अधिक बांसुरी में प्रेम प्रबल है।
मैं तुमको पूर्ण सर्वस्व अपना दे चुकी ,
और तेरे बिना बेचैन मेरा हरेक पल है।

बाँसुरी को छोड़कर मुझेआगोश में भर, 
जाम अधरों से पिला मुझे मदहोश कर।
मैं तुझमें समा जाऊं तू मुझमें समा जा,
देखती रहूँ  सदा तेरी तस्वीर  मुरलीधर।


कांटों से डरो नहीं

फूलों का गर शौक हैतो  काटों से डर कैसा। इरादा मजबूत हैतो  ख्याल ये मुकद्दर कैसा। कभी धूप कभी छांव रहा करती जिन्दगी में, साथ न हो हमसफ़र का त...