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मंगलवार, 29 नवंबर 2022

बचपन

मैंने भी देखा है बचपन,
 गाँव की पगडंडियों में।
  नंगे पैरों  पैदल  चलते-
   लाते कांफल कंडियों में। 

लकड़ी की तख्ती लिए,
 वहां स्कूल को जाते हुए।
  जंगल से लकड़ी बटोरे,
   गाय बकरी चराते हुए। 

गुल्ली डंडा खेल खेल में,
 साथियों से लड़  जाना।
  बातों बातों में ही अपने,
   साथियों से भिड़ जाना।

मैंने भी देखा है बचपन,
 गाँव का  प्यारा बचपन।
  सावन बरसता रोज ही,
   वो बेचारा प्यासा बचपन।

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