उसको ही हम पूज रहे।
जीवन भर बंदिश में ही,
हम हर वक्त जूझ रहे।
हमेंअबला कहके जिसने,
हाथों में बंधन डाल दिए।
मर्यादा की चिता लगाकर,
सपने हमारे जला दिए।
भाग्य व भगवान भरोसे,
लिखी ऐसी जीवन गाथा।
सीता और द्रौपदी जैसी ,
यह नारी की रही व्यथा।
जागें अब हम तोड़ें बंधन,
शिक्षित हो संविधान पढ़ें।
समझेंअपनेअधिकारों को,
आज विज्ञान कीओर बढ़ें।
अब त्यागें पुरानी परम्परा,
लड़का लड़की में न भेदकरें।
रूढ़िवाद के चक्कर में हम,
कुंडलियों का न उल्लेख करे।
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