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शनिवार, 10 दिसंबर 2022

याद बहुत आती है

गुजारे हैं  जो  लम्हें  तुम्हारे साथ,
उन लम्हों की बहुत यादआती है।
वक्त का  कुछ  पता  नहीं चलता,
कब सुबह कब रात ढ़ल जाती है।

लिखता हूँ खत आज भी तुमको,
पर खत काफी लम्बे हो जाते हैं।
मन मोहनी घटाऐं  जब घिरती  हैं,
बरसती नैनों से खत भीग जाते हैं।

तमाम तुम्हारे  भीगे हुए खत यहां,
ये मेरी सारी कविताऐं हो जाती हैं।
प्रकाशित हो जायेगी फिर किताब,
उन लम्हों की बहुत याद आती  है।

शब्दों के साथ खेलते दिन गुजारना,
अक्सरआदत सी होगईअब हमारी।
इन  शब्दों को जब भी तराशता हूँ ,
हरेक शब्दों में देखता सूरत तुम्हारी।

अब वक्त का पता कुछ नहीं चलता,
कब  सुबह कब  रात ढ़ल जाती है।
गुजारे हैं जो लम्हें हम दोनों ने साथ, 
उन लम्हों  की बहुत  याद आती है।







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