बाजार जा के क्या करूँ।
पल में नहीं है एक धेला,
मैं किसको क्या खरीदूँ।
पास जितना भी प्यार था,
सब कब का लुट चुका।
रहने को जो भी ये घर था,
वो अदद भी बिक चुका।
बस बेघर हो गया हूँ अब,
इधर उधर मैं भटक रहा।
थर थरा रहे हैं अब कदम,
चलने में दम निकल रहा।
अब नजर भी कम हो गई,
कैसे किसी को पहचान लूँ।
जाकर किसी दुकानदार से,
अब थोड़ा सा उधार मांग लूँ।
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