हम गांव घर शहर शहर।
ये कर दिया ऐलान हमने,
चुप्पी नहीं अब जुल्म पर।
यह जिस्म है फौलाद की,
शोले हमारी मुट्ठियों में।
जिन्दगी गुजरी बहुत है,
जलती हुई इन भट्टियों में।
बांधकर सर कफन अब,
युग बदलने चल पड़े हैं।
कारवां के साथ मिल कर,
हम हर कदमआगे बढ़े हैं।
हम आग हैं छूना नहीं,
छू लिया जल जाओगे,
वक्त को समझो नहीं तो,
फिर बहुत पछताओगे।
अब तोड़ देंगे बेड़ियाँ हम,
आत्म निर्भर खुद बनेंगे।
शिक्षा का अवलम्ब लेकर,
अपना दीपक खुद बनेंगे।
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